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________________ चंदराजानो रास. २४ए खर प्रेमला लबी श्राव्या चहुटा लगे हो लाल यामाहाजन पण तत खेव मल्या मन उमगे हो लाल ॥माथाव्या ते दरबार तेमीने पुत्रीका हो लाल तेणा विनवे नूपति आगल जे हती वृत्तिका हो लाल ॥ जे॥१४॥ अर्थ ॥ ते प्रेमलाने साथे लश् चाल्या. राजाना चित्तमां जरापण दया श्रावी नहीं. कुंवरीनी एक वात पण कोइए सांजली नहीं. मंत्रीए राजानी श्रागल घणुं करगरी कहेवा मांड्योः ॥ १३ ॥ प्रेमला लक्ष्मीने ला ते चौटामां आव्या. त्यां तत्काल तेमने महाजन मट्युं ते पाग कुंवरीने लश् दरबारमा श्राव्या अने राजाने जे कहेवार्नु हतुं ते कही विनववा लाग्या. ॥ १५ ॥ अहो इश्वर अवतार सुताए उगरे हो लाल ॥ सु०॥ कुष्टी थयो जामात तेमां ए शुं करे हो लाल ॥ते॥ पंचनो वचन प्रमाण करो अलवेसरू हो लाल ॥॥ एम पुत्रीथी कोप न कीजे हित करु हो लाल ॥न॥१५॥ बगसो गुन्हो महाराज काज न कीजीए हो लालपानिज संततिनी उपर एम केम खीजीए हो लाल ए॥ पुत्रीनी एकवार तो वातडी सां जलो हो लाल ॥वा॥ उर्जन वाते स्वामीन राखो आमलो हो लाल ॥न॥१६॥ अर्थ ॥ महाजन कहेजे- हे इश्वरावतारी राजा,श्रा पुत्रीनेजगारवी जोइए. ते पुरुष कुष्टी श्रयेलो तेमां श्रा पुत्री शुं करे? राजाजी, आ पंचनुं वचन प्रमाण करो. श्रावो कोप पुत्री उपर न करवो जोश्ए. ॥१५॥ हे महाराजा, कदि अपराध थयो होय तोपण श्रा, अकार्य न करवू जोश्ए. पोतानी संतति उपर श्रा प्रमाणे खीजवावु न जोइए. एकवार तो ए पुत्रीनी वात सांजली ट्यो. पुर्जन लोकोनी वात सांजली मनमां आमलो राखो नहीं. ॥ १६ ॥ आग्मी ढाल रसाल ए बीजा उदासनी हो लाल ॥ए॥मोहन कहे मन रंगथी पुण्य प्रकाशनी हो लाल ॥पु॥ शीलढुंती उपसर्ग सयल रहे वेग ला हो लाल साशील थकी सुखजोग लहेशे प्रेमला हो लाल ल॥७॥ अर्थ ॥ श्रा प्रमाणे आ रस नरेली त्रीजा उवासनी आग्मी ढाल श्रीमोहन विजये कहेली . श्रा ढाल मनमां नंद अने पुण्यने प्रकाश करनारी जे. शीलवती स्त्रीनी पासेथी बधा उपसर्गो वेगला रहे. वटे प्रेमला लक्ष्मी शीलवडे करीने सुखलोग प्राप्त करशे.॥ १७ ॥ ॥दोहा॥ माने नही माहाजन तj, एके वचन लगार ॥क्रोध कषाय जुजंगविष, धार्यो अति वसुधार ॥१॥ साजन जन तिहां शुं करे, राजन जिहां कगेर ॥ माहाजन पोहोता सहु घरे, न बने कीधे जोर ॥२॥ अर्थ ॥ राजाए महाजननुं वचन जरापण मान्यु नहीं अने उखटो तेणे क्रोध कषाय रुप सर्पना फेरने धारण कयु. अर्थात् क्रोध को. ॥१॥ ज्यां राजा कोर हृदयनो होय त्यां साजन के महाजन शुं करी शके १ पनी ते महाजन सोको घेर चाट्या गया. जोर करवाथी ते वात बनती नथी. ॥२॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005375
Book TitleChand Rajano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1905
Total Pages396
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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