SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 322
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५५ चतुर्थ उल्लास. होवो दो राज ॥ १३ ॥ कयुं न लोपाणुं चंद, जाणीए हाथ मेलावा माहे नृपे एह दीधा हो राज ॥ चंद कीरति जग विस्तरी, सिंहल श्रादि पांचे तिहां निरबंधन कीधा हो राज ॥ १४ ॥ अर्थ ॥ खरेखरूं विचारीए तो तमारी पुत्रीनांज मागं कर्मना उदयथी आ सघळु बन्यु जे. ए बिचारा शुं करी शके तेम बे? ए रांकातोनुं मोढुं तो जुर्म केवा निर्मात्य जेवा दीसे ? वली तेनो दीकरो पण कोढी ने, माटे तेऊना उपर दया लावी हे राजन् श्राप तेजेना उपर सारी रीते प्रसन्न था॥ १३ ॥ चंदराजानां वचनो कोइ पण रीते सोपी शकायां नही अने जाणे हस्त मेलाप वखते राजाए तेउने दीधा होय अर्थात चंदराजाने अर्पण कर्या होय तेवी रीते तेजने मत कर्या. श्रा बिनाश्री चंदराजानी कीर्ति जगत्मां बहुज फेलाइ. सिंहल राजा प्रमुख पांचने केदश्री मुक्त कर्या. ॥ १४ ॥ पियुंनुं देखाडवा पारखं, भावी प्रेमला लछी चंद तणो पद धोयो हो राज ॥ बांट्यो कनकध्वज जणी, ततखिण जोता मांहि तेहना कुष्टने खोयो हो राज ॥ १५॥ देवे चंदनी उपरे, वृष्टि करी कुसुमनी जय जय शब्द उचारी हो राज ॥ कनकध्वज प्रणमी कहे, धन्य धन्य वीर नृपतिना सुत जग उपगारी हो राज ॥ १६ ॥ अर्थ ॥ पोताना स्वामिनी महत्वतानी परीक्षा बताववा सारूं प्रेमला खबीए तरतज श्रावीने चंद राजा ना चरण- प्रक्षालन कर्यु अने ते प्रदालन करेला जलनो कोगलो कनकध्वज कोढिया उपर गंत्यो के जेना प्रजावधी जोत जोतामां तेनो कोढ नाश पाम्यो ॥१५॥ ते वखते देवताए जय जय शब्दनो उच्चार करी चंद राजानी उपर पुष्पनी वृष्टि करी. कनकध्वज कुमारे पण प्रणाम करी कडं के हे वीरसिंह राजाना पुत्र, जगत्ना उपकारी तमने धन्य ने धन्य बे. ॥ १६ ॥ दास थया सवि चंदना,पियुथी प्रेमला खही नित नित रहे रसलीनी हो राज॥ दसमी चोथा उहासनी,मोहन विजयेनांखी ढाल ए निपट नगीनी हो राज ॥१७॥ अर्थ ॥ ते सर्वे जणा चंद राजाना सेवक अया. प्रेमला लल्ली पोताना पतिनी साथे निरंतर सुख विलास जोगववा खागी. ए प्रमाणे चोथा उदास मध्ये दसमी ढाल मोहनविजयजी महाराजे बहुज सुंदर कही१७ ॥दोहा॥ सन्मानी सिंहल नृपति, चंदे दीधी शीख ॥ सिंहलपुर पहोता सुखे, देतां चंद आशीष ॥१॥ एहवे समये चंद नृप, निशामध्य - सुपवित्त ॥ चिंतवतां ओवी चढी, गुणावली निज चित्त ॥५॥ अर्थ ॥ सिंहल राजाने सन्मान पुर्वक चंद राजाए विदाय कर्या, अने ते सर्वे चंद राजाने आशीरवाद थापीने सिंहलपुरे सुखेथी पहोंच्या ॥ १ ॥ हवे ते समये एक पवित्र रात्रिने विषे चंद राजाने विचार करतां तेना हृदयमा गुणावली चढी श्रावी. ॥२॥ Jain Education International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005375
Book TitleChand Rajano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1905
Total Pages396
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy