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________________ चंदराजानो रास. दो पली नृप मस्तकें, उज्वल जेम शशि रेख ॥ स० ॥ राणी वदन कैरव परें, संकोचाणुं विशेष ॥ स ॥ वी० ॥३॥ चंडावति कहे कंतने, प्रीतम प्रगट्यो पूत ॥ स ॥ तुम जयपण न गण्यो किशो, मोटो खोटोधूत ॥स०॥वी॥४॥ अर्थ ॥ वाल उलतां राजाना मस्तकमां चं जेवं उज्वल एक पली जोवामां आव्यु. ते जोई राणीनु मुख कमलनी जेम विशेष संकोच पामी गयु. ॥३॥ चंजावतीए पोताना स्वामीने कह्यु के, हे प्रियतम एक दूत प्रगट अयो, ते मोटा धूतारा दूते तमारा जयने पण गण्यो नहीं. ॥ ४ ॥ तुमथी श्ररि वार्या रह्या, पण एक न रह्यो एह ॥ स ॥ईम निसुणि राजा कहे, श्हा कुणा दूत ने तेह ॥ स ॥ वी० ॥ ५॥ ते किम आवे अंते उरे, उलंघियाणा वाम ॥सा एहने श्रति देखें सजा, ते एकवार देखामासावी॥६॥ श्रर्थ ॥ हे ! राजा, तमाराथी शत्रु वार्या रह्या हता, पण आ एक दूत वार्यो रह्यो नहीं. ते सांजली राजाए कह्यु, थहीं कोण दूत आव्यो ? ॥ ५॥ ते दूत मारी श्राज्ञा उलंघीने अंतःपुरमां शीरीते श्रावे ? तेने बताव्य, दुं सजा करूं.॥६॥ जोय नृपति परूं, पूत न दीगे ताम॥सातव राणी कहे रायने, थाकुल केम हुथा श्राम ॥ स॥ वी०॥७॥ अंदर किम श्रावी शके, दूत धरावे देह ॥ ॥ स० ॥ श्राव्यो पूत जरा तणो, धवल पली शिर एह ॥सणावी ॥ अर्थ ॥ राजा श्राम तेम जोवा लाग्या, पण दूतने दीगे नहीं, त्यारे राणीए कह्यु, श्राम आकुल व्याकुख केम था बगे? ॥ ७॥ जे दूत देह धारी होय ते अंदर केम आवी शके ? पण था तो जरावस्थानो दूत मस्तकमा पलिया रूपे श्राव्यो बे. ॥ ७ ॥ निसुणी रायने ऊतर्यो, क्रोध चड्यो हतो जेम ॥ स ॥वी खरी जाणी जरा, एहवे थनोपम देह ॥ स वी० ॥ ए॥ बाल्यो काम सदाशिवें, लोक कहे एम ॥ स ॥ तेम बाली नहीं किम जरा, शोच न होतो जेम ॥ स०॥ वी॥१॥ अर्थ ॥ ते सांजली राजाने जे क्रोध चड्यो हतो, ते उतरी गयो. अने आवा अनुपम देहमां जरावस्था वी, ते खरी रीते जाणी लीधी. ॥ ए॥ लोको कहे ने के, शंकरे कामदेवने बाली नांख्यो, पण श्रा ज-, रावस्थाने केम न बाली, के जेथी कोस्ने शोक न थात. ॥ १० ॥ रजकवधूसम ए जरा, श्यामता तजि करे श्वेत ॥ स०॥राजन कहे निज चित्तने, रे रे चेतन चेत ॥ सम्॥ वी० ॥ ११ ॥ बाह्य प्रकाश जरा करे, नीतर न कर तुं केम ॥ स० ॥ राज्य नरक दायक सदा, त्यां किम मुंज्यो एम ॥सवी ॥१२॥ अर्थ ॥श्रा जरावस्था धोबीनी स्त्रीना जेवी ने के जे श्यामता त्यजीने श्वेत करे . राजा पोताना चित्तने कहे जे के, हे चेतन !तुं चेती ले.॥ ११ ॥ हे ! चेतन! श्रा जरावस्थाबाहेरनो प्रकाश करे , तुं अंतरनो प्रकाश केम करतुं नथी ! राज्य हमेशां नरक आपनारूं , तेमां तुंकेम मोह पामी रहे ॥१२॥ Jain Education International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005375
Book TitleChand Rajano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1905
Total Pages396
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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