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________________ तृतीय उदास. थापडे कंद एकेक हयवर तणा, मुंबवल घाली संग्राम रसीया ॥ नाल आज क्षत्री तणा पारखां, केड कसीया तणा दे तसीया ॥ प्र॥४॥ अर्थ ॥ ज्यारे लावाजिंत्रथी कार शब्दोनो नाद प्रगट अयो त्यारे कइक योजाए कीर्तिरूपी लक्ष्मीने ग्रहण करवा उजमाल अया. वली केटलाएक सुजटो उत्तम कविजनी कविताने अमर करवा सारू ब्रह्मांडमांज मात्र दृष्टि लगामी युधमा मच्या रह्या. ॥३॥ केटलाएक योद्धा पोताना उत्तम अश्वोनी कांधने धाबडता हवा. केटलाएक मुंब उपर ताव देता संग्रामनो रस लेता हता. वली केटलाएक एम बोलताहताके लाल आजे देत्रियोनी परीक्षानो वखत श्राव्यो. जे केड कसीने तैयार थया गे ते पोतानुं स्वरूप तो बतावो. ॥४॥ निसुणी निशान अवसान चूको रखे, खेलशुरा तणो तो लडाइ ॥ लोहजे लांकधी वांक धरी बांधीए, श्राज तस लाज रहेतो वमा ॥प्र० ॥५॥ शूर पुरातणो तीर्थ रण नूमिका, शस्त्रधारा जीहां तीर बाबा ॥ एक मुकी करी अवर तीरथ जणी, धरणी धरता रखे चरण पाबा ॥ प्र॥६॥ अर्थ ॥ शूरनां वाजां सांजलीने निशान ताकवाना अवसरने चुकशो नही. शुर वीर लोकोनी रमत ते लडाइज बे. वांकी केड उपरजे मरोडवाली तलवार बांधीए बीए तेनी जो आजे लाज रहे तोज वडाइ समजवी. ॥ ५ ॥ जे संपूर्ण शुरवीरोने तेमनुं तीर्थतो रणसंग्रामनी नुमिकाज. ज्यां शस्त्रोनी तीक्ष्णधारा रूपी निर्मल नीर वहे माटे तेज तीर्थने गेडी बीजा तीर्थमां गमन करवाने हे ! योघाउँ रखे तमारा पगलां पृथ्वीउपर पागं करो.॥६॥ खुणसधरी फणसथी देह पोरस चड्यो, वीर वमवीर हांको वजामी ॥ बेल बंगाल मराल बेहु दलतणे, मुकीया तुरंग वागो उपामी ॥ प्र॥ ७॥ रज चड्यो गयण रणथंन जेम उपड्यो, पाखरे रोल धमसाण वाजी ॥ राउला वा उला नेल नेला हुश्रा, श्राफल्या ताजीए जाय ताजी ॥प्र० ॥ ॥ . अर्थ ॥ श्रांखमां खुन जरावाश्री फणस करतां पण विशेष पोरस योघाऊना. शरीरमां चडीगयो जेथी ते शुरवीरोए खडाश्मां वीरहाक वगडावी. केटलाएक शुरवीर बंजेडायेला बेल अनिमान करता बंने बाजुऊना लस्करमा घोडाउने लगाम ढीली करी उपाडता हवा. ॥ ७॥ आकाशने विषे धूलनो गोटो एवोतो चड्यो के जाणे रणस्थल खडो अयो होयनी. वली केटलाएक घेलगए चडेला राजवीरो एवातो नेट नेटा थइ गया के तेऊना अश्वो साम सामा उपरा उपरी अफलावा लाग्या जेथी महा धमसाण मची रही ।। ॥ सांतरी अांतरी बगतारो उपरे, वीजली जेम वहे खग्गधारा ॥ तिरबीन बर बीउ पार निरगबीयुं, एकशुं एक करता जुहारा ॥ प्र॥ ए॥ सणण वहे बाण तेम चणण गोली वहे, धुम धमरोल बुटे अराबा ॥ बाटबड उपडी नूमिपम धम हडे, पुरी आ जाणी अरबे गराबा ॥ प्र० ॥ १० ॥ Jain Education International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005375
Book TitleChand Rajano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1905
Total Pages396
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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