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________________ चंदराजानो रास. १७७ अर्थ ॥ शुरवीरोना बख्तरो उपर तलवारनी जेम अरस परस जनोइ वट चालवा लागी. वली बरनी वांकीथ एवीतो आर पार उतरवा मांडीके जाणे एक बीजाने जुहार वेहेवार शरू थयो.॥ए॥ योहाना बाण सण सणाट चालवामांड्यां अने बंकनी गोली एक बीजा उपर चणणण करती चोटवा लागी. तोपोना बहार थवाथी धुमाडाना गोटे गोटा निकलवा लाग्या अने तोपमांथी गोला बुटतांज नूमिनापड उखडता होय तेवो पृथ्वीमां आस्फोटन श्रवा लाग्यो ॥१०॥ एक नासे वली एक वांसे पडे, बापमा किहां लगे जाइश नागो ॥ोड हथी यार उगार जो संनवे, साद सादे इस्यो वाद लाग्यो । प्र॥ ११॥ केश लडे के पडे केश धड तड फडे, केश हय गय पडया पय पसारी ॥ ग्वारने जाणीए हारडे हारमे, वणजवा काज बालद उतारी॥प्र०॥ १२ ॥ अर्थ ॥ युनु रमखाण मचतां अने अरस परस मारतां जे कोइ योघो नासवा मांड्यो तेनी पुंचे लागी बीजाए हाक मारी कडंके हे रांकडा हवे लागीने क्यां सुधी जश्श ? हवे उगरवानो विचार होय तो हथीयार बगेमीदे. एवीरीते राडो पाडता साम सामा विवाद करवा लाग्या. ॥ ११॥ केटलाएक लडता हता, केटला एक पडता हता. केटलाएकनां धड तमफतां हतां. केटलाएक घोमा तथा हाथी पग पहोल करी पड्या हता. जाणे को मोटा वेपारीए हारो होर वेपार करवाने माटे पोग्नी पोउ लादेली उतारी होय तेवू लागतुं हतुं. ॥१॥ लोहवाहे केश ताकमे श्रापमी, एक कायर धरे हाथ थामा ॥ केश्रण श्रांगणे टुक टुके उडया, शिरविना धड करे केश पवामा ॥प्र० ॥१३॥ के गजराज दंतुशखे अश्वना, चरण खुर रोपि रण रंग माहे ॥ नाक सिस कारने ताकी शिर दारने, दोममी दोटशुं चोट वाहे ॥॥१४॥ अर्थ ॥ को शुरीए तक सांधीने तलवार एवीतो वहेवा मांडीके तेनी सामेना कायर श्रइ गयेला योघाने आडा हाथज मात्र करवानो वखत आव्यो. कोकना रणांगणमां टुकडे टुकमा थश् गया; वली कोइकना मस्तकविनाना धमलढाई करता रडवडवा लाग्यां.॥ १३॥ केटलाएक रणसंग्राममां पोताना घोडाना पगनी खरी बीजाउना हाथीना दंतुशलो उपर रोपीने खडारह्या अने नाकथी सिसकारो करता बीजा सरदारो उपर बेवडी दोट मुकीने ताकी ताकीने चोट चलवता हता. ॥१५॥ तीरथी वीर चकचूर थश्ने पम्या, जाणीए केकीए कलाज मंडी ॥ जनम दीधा फरी तरूण सुनटो नणी, धार तलवारनी अवल चंमी ॥प्रण॥१५॥ बत्रधारी घणां पूर घाए पमया, वीररस सरस ते मस्त चाखे ॥ एहवे ना रथे सिंदनी वाहिनी, थापणा दासनी लाज राखे ॥ प्र० ॥ १६ ॥ श्रर्थ ॥ केटलाएक योघा तीरना घाथी नूमिपाट पड्या हता तेश्री जाणे मोरे कलापुरी होय तेवा दीसता हता. केटलाएक युवान सुनटो एवं समजता हता के श्रापणे नवे अवतार श्राव्या. कारणके ते एq धारता हताके तलवारनीधारतो अवल चंडी रांड जेवी. ॥ १५॥ केश्क बत्रधारी राजा अनेकघा वाथी जमि उपर पड्या हता. तेन मस्त थाने जाणे वीररसनो स्वाद चाखता होय एवा लागता हता. श्रावा युधना प्रसंगमा सिंहना आसनवाली युद्धनी देवी मात्र पोताना दासनी लाज राखती हती.१६ Jain Education International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005375
Book TitleChand Rajano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1905
Total Pages396
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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