________________
द्वितीय उवास. प्रथमज कवले मक्षिका, शो तेमांहे सवाद ॥ स्वामी अबला उप रे, एवमो शो उन्माद ॥३॥ पेहेली रामतमा प्रजु, काढी बेग
वेश ॥ आगल केम निरवाहशो, मुजथी नेह विशेष ॥४॥ अर्थ ॥ पेहेलाज कोली आमां मक्षिका आवे तो पनी तेमां शो स्वाद ? हे स्वामी, अबलानी उपर आवो उन्माद शुं करो गे? ॥ ३ ॥ हे प्रनु, पेहेलीज रमतमा वेष काढीने बेठा तो पनी मारी साथे श्रागल स्नेहनो निर्वाह केम करशो? ॥४॥
मूकीयो चलचित्तता, करो सुरंगो नेह ॥ जिणे तुमथी खलता तस मुख पम खेह ॥५॥ वाला तुम मलवा तणो, शलजो
इतो अनंत ॥ पण मननी मनमां रही, इण श्राचरणे कंत ॥६॥ अर्थ ॥ चित्तनी चपलता गेडी द्यो. सुरंगी नेह करो. जेणे तमारी साथे खलता करी के तेना मुख उपर धूल पडशे.॥ ५॥ हे व्हाला, तमने मलवानो कोड अनंत हतो, पण हे कांत तमारां आवां श्राचरणथी ते मननी वात मनमां रही. ॥६॥
जे गाथा कही तुमे, पामीळ तस नेद ॥ जावा
नही देखें हवे, ते तुमे जाणो वेद ॥ ॥ अर्थ ॥ जे गाथा तमे कही हती, तेनो नेद हुँ समजी वं. तेथी हुँ तमने जावा दश नहीं. तेनो वेद तमे जाणो. ॥७॥
॥ ढाल गणीशमी ॥ . हुं तुज पागल शी कहुं केशरीश्रालाल ॥ ए देशी॥ श्रलवेसर अवधारीये ॥ केशरीया लाल ॥ अबलानी अरदासदो ॥ के० ॥ पा मीश्राशना पासमां ॥ के ॥ केम हवे कीजे निराशहो ॥ के ॥ रहोरदो राजे सरा ॥ रहोणा॥१॥ कहो ते करुं हुं कबुलहो ॥ के० ॥ पण फोगट शाने ददो ॥ के० ॥ करी करी कूमा कुशूल हो ॥ के० ॥ रहो ॥२॥
अर्थ ॥ हे केसरीश्रा लाल, आ अबलानी अरज अवधार जो. मने आशाना पाशमां पाडीने हवे केम निराश करो गे? माटे हे राजेश्वर, अहिं रहो. ॥१॥ जे तमे कहो, तेहुँ कबुल करुं, पण मने आवा कुमा कुशूलथी फोगट शामाटे बालो गे ? ॥२॥
महिल कहिल कारी इस्या ॥ के० ॥ टहिलनी हुं करणारहो ॥ के० ॥ . तोपण मनमाने नही ॥ के० ॥ अहो जोवन शिणगारदो ॥ केणारहो ॥३॥ हुँ तुम पगनी उपानही ॥1॥ तुमे मुज शिरनामोमहो ॥॥
गोद बिगडं पाये पहुं॥ के ॥ केम रह्या मुंह मचकोमहो ॥के॥ रहो ॥४॥ अर्थ ॥ दे यौवनना भंगार, याची सर्व सामग्री जे. ९ वचन प्रमाणे वर्तनार अने टेखनी करनार हुँ,
Jain Education International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org