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चतुर्थ उल्लास
॥ ढाल मी ॥ ॥ खंजाती सोहलनी ॥ ए देशी ॥
मकरध्वज महीपाल, चंद संगाथे हो श्रीजिन नेटीयाजी ॥ कीधी जति शेष, जव जव केरांहो पातिक पातिक नीठीयाजीं ॥ १ ॥ प्रेमला प्रणमी पाय, मात पिताने हो विनये विनवेजी ॥ जे में परण्यो कंत, ते तुम पुण्ये हो एह पामी हवेजी ॥ २ ॥
॥ मकरध्वज राजा, चंद राजानी साथे श्री जिनराजने नेटता हवा. तदनंतर परमात्मानी सर्व प्रकारनी नक्ति करी तेर्जए अनेक नवोनां पापनो नाश कर्यो ॥ १ ॥ प्रेमला लम्बी पोतानां मातपिताने प्रणाम करी विनयपूर्वक कहेवा लागी के श्रापना पुण्यना पसायथी मारा स्वामिनाथने में मेलव्या. ॥ २ ॥ ए श्राजा अवनीश, वीर नृपतिनो हो अंगज गुण निलोजी ॥ रवि कुंड जलने प्रभाव, कुंर्कट मिटीने हो थयो छावनीतिलोजी ॥ ३॥ जोवोए तुम जामात, नयणा निहाली हो सुपरे लखोजी ॥ सरिखा सरखो संसार, पण नही कोई हो एहना सारिखोजी ॥ ४ ॥
अर्थ ॥ तेन॑ आजा नगरीना राजा बे ने वीरसेन राजाना गुणवंत पुत्र बे. सूर्य कुंडना जलना प्रनाव कुकडा मटीने पृथ्वीना तिलक समान पुरुष थया बे || ३ || आ आपना जमाइराजने नेत्रोथी निहालीने जुने उत्तम रीते तेनी उलखाण करो. संसारमां सरखे सरखा अनेक बे परंतु एमना सरखो तो कोइ प जगत्मां नथी. ॥ ४ ॥
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प्रजुए मुज जगमांहि, शशिनी कलाथी दो कीधी उजलीजी ॥ ए सेव्ये गिरिराज, मादारी एहनी हो आश सवि फलीजी ॥ ५ ॥ पुत्री वचन श्रवधार, विस्मय पामो हो सोरठनो धणीजी ॥ नयण सलुणे सेहेज, जरी जरी जोवे दो श्रजापति जीजी ॥ ६ ॥
अर्थ ॥ जगत्मा परमात्माना पसायथी चंद्रमानी कलाथी पण मने तो उज्ज्वलता प्राप्त थइ. वली गिरिराजनी सेवाथी तो मारी सर्वे शार्ट फलीभूत थइ ॥ ए ॥ पुत्रीनां वचन मनमां ध्यानमां लेतां मकरध्वज राजा घणोज आश्चर्य पाम्यो. वली पोताना प्रेम नरेलां नेत्रोथी वारंवार प्रजापति चंद राजने निरखवा लाग्यो. ॥ ६ ॥
दरखेशुं मोतीए वधावि, ससरो जमाइ हो आत्म प्रदेश, जाणीए सघलाई मांहोमांहि ता सामंत, लली लली लाग्या हो चरणे परीक्षा कीध, सही तुमे स्वामि दो एम पंखी मिसेजी ॥ ८ ॥ अर्थ ॥ चंद राजाने हर्षथी मोतीए वधावीने, सासरो ने जमाइरस परस श्रालिंगन देवा पूर्वक नेय्या, ते वखते बनेना सर्व आत्म प्रदेशी जाणे एक बीजानी साथे एकत्र थइ गया होय तेम जास्युं ॥ ७ ॥
लिंगी मव्याजी ॥ बेहुना मव्याजी ॥ ७ ॥ चंद बहु दिसे ॥ कड़े श्रम
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