SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 224
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ૨૫૭ तृतीय उवास. हारे वली मोदक खातां वहाले माग्युं नीरजो, पायुमें शुनवासित जल प्रेमातुरी रे लोल ॥ हारे कडं पिउडे गंगाजल जो इहां कणे होय जो, मोदकनीतो लागे मुजने माधूरी रे लोल ॥ ३ ॥ हारे हुँ तो पामी विस्मय निसुणी सरिता नामजो, ते तो डे पूरवनी दिशे सुर वाहिनी रे लोल ॥ हारे वली कीधां थाना नगरीना व्याख्यान जो, वाणीतो कोण मीठी हूती नाहनी रे लोल ॥४॥ अर्थ-मारा स्वामीए लाडु खातां पाणी माग्युं तेथी प्रेमनी श्चक एवी में तेने सारू सुगंधी जल आप्यु, मारा स्वामीए कह्यु के जो अहींथा गंगाजल होय तो आ लामुनी मिगश मने बहुज लागे. ॥३॥ ते नदीनुं नाम सांजली हुँ अत्यंत आश्चर्य पामी कारणके ते गंगानदी तो पूर्व दिशामांज वहे . वली तेमणे आनापुरीना बहुज वखाण कर्या. श्राहा! मारा स्वामीनी वाणीमां शुं मिगश हती! ॥ ४॥ हारे एम करतां श्राव्यो हिंसक मंत्री तत्र जो, उगड्यो पिउ महारो को शमस्या करी रे लोल ॥ हारे मुज वारी राखी पात कीए करी रीस जो, पाडो ते नवी श्राव्यो जे गयो परिहरी रे लोल ॥५॥ हारे गृहमांहे आव्यो ए पुष्टी मातंग जो, मुंजश्रीतो तेणे खोटी प्रीतलडी धरीरे लोल ॥ हारे में तो एके एहनुं वचन न मान्युं कोय जो, मुजने एणे सघले विषकन्या करी रे लोल ॥६॥ अर्थ-एटलामां हिंसक मंत्री त्यां आव्यो. तेणे शमस्या करीने मारा पतिने मारी पासेथी उगड्यो. ए पापीए मारा जपर गुस्सोकरी मने रोकी राखी अने मारो नाथ मने तजी चाल्यो गयो, ते पागे आव्यो नही. ॥ ५॥ ते कोढी चंमाल पनी घरमां आव्यो अने तेणे मारी साथे खोटी प्रीत करवा मांमी. में तेनुं एकपण वचन मान्युं नही एटले तेणे सर्वनी पासे कडं के आ तो विषकन्या ने. ॥ ६ ॥ हारे ए तो कुष्टी एहनी स्त्रीनो होशे कंत जो, महारो तो प्राणेशर थानानो धणी रे लोल ॥ हारे एणे सिंहले तातजी तुमने जो लव्या ठीक जो, विण वांके एणे मुजथी कीधी डे घणी रे लोल ॥७॥ हरे में नाखी तुमने जे मुज मननी वातजो, साचुं जो करी मानो तो घणुं ए नलु रे लोल ॥ हारे जो तुमने एहना वचन तणी परतीत जो, कीजे जे मन मान्युं कहीए केटबुं रे लोल ॥॥ अर्थ-ए कोढी एनी स्त्रीनो धणी हशे. मारो प्राणनाथ तो आना नगरीनो राजा . ते सिंहल राजाए, हे पिताजी! आपने खुब बेतर्या ने अने वगरवांके मारा उपर पण करवामां बाकी राखी नथी.॥७॥ मारा मनमा जे वात हती ते में आपने कही. ते वात जो साची मानो तो घणुं सारूं; परंतु जो सिंहल राजानी उपरज आपने विश्वास होय तो आपना मनमां होय ते करो. हुँ हवे वधारे शुं कहुँ ? ॥ ७॥ Jain Education International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005375
Book TitleChand Rajano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1905
Total Pages396
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy