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________________ ՋԵ चतुर्थ उल्लास. मुजने जो एहना अवगुण नासे, नरकमां गम न होवे रे ॥ तुं जे ए हनुं विरूलं कहे , मेलते एहनो धोवे रे ॥ मा० ॥ १७ ॥ गुरूपीए मारी पशुता टाली, नारी उसे आणी रे ॥ थाजो एहने कल्याण श्र होनिशि, अविचल एहनी वाणी रे ॥ मा० ॥ १० ॥ अर्थ ॥ जो मने एनामां अवगुण बे एम लागशे तो मने नर्कमां पण गम मलवानुं नथी, अर्थात् नर्कधी पण नीची गतिमां जाइश. अने तुं जे एनुं वांकुं बोले ने ते तो तुं एना मेल धोवे .॥ १७ ॥ए मारी गुरूपीए मारूं पशुपणुं मटाडीने मने स्त्री जातिनी हारमा आणी. एनुं हमेशां कल्याण श्राजो अने रेनो उपदेशपण अविचल रेहेजो. ॥ १७ ॥ एहनी चेली हुँ जनमजनमनी, परमेश्वर साखी रे ॥ ढाल चोवीशमी चोथे उबासे, मोहन विजये नाखी रे ॥ मा०॥ १५ ॥ __ अर्थ ॥ हुँ परमेश्वरनी शादीए कहुं बुं के हुँ तो एनी नवोनवनी चेली बु. एवी रीते चोथा उल्लासमां मोहनविजयजीए चोवीशमी ढाल कही. ॥१५॥ ॥दोहा॥ प्रणम्या योग्य प्रवर्तिनी, पुण्य पात्र एह ॥ बाइ एम नविनि दीए, एहथी धरीए नेह ॥ १॥ जो ए रूषिणी निंदीए, पुण्य मूल कुमलाय ॥ तटिनी तट तरू मूल जेम, सहेजे विलये जाय ॥२॥ अर्थ ॥ वली हे बेहेन ! ए साध्वी नमस्कार करवा योग्य. ए पुण्यनुं पात्र जे. एनी या प्रमाणे निंदा नहीं करतां एना उपर तो पवित्र स्नेह राखवो जोइए ॥१॥ जो ए साध्वीनी निंदा करीए तो जेम नदीना तट उपर उगेला वृदो, पुरनी वखते मूल यी नखडीजाय तेम आपणुं पुण्यरूपी मूल कुमलाइ जाय.२ ते दिन एम कही अतिक्रम्यो, गश् नृप पुत्री गेह ॥ बीजे दिन श्रावी वली, मंत्री गृह ससनेह ॥३॥ बेहु सही क्रीडा करी, बेठी में दिर बार ॥ प्रोये सुता श्रमात्यनी, निज मोतीनो दार ॥ ४॥ अर्थ ॥ ते दिवसतो ए प्रमाणे वातो करतां वीती गयो. पनी राजपुत्री पोताने घेर गइ. वली बीजे दिवसे स्नेह सहित राजपुत्री मंत्रीने घेर आवी. ॥ ३ ॥ बंने सखी रमत गमत करीने घरना बारणा पासे बेठी. ते वखते मंत्री पुत्री पोतानो मोतीनो हार परोक्वा बेगी. ॥ ४॥ कर्ण काली बहु मूलनी, मूकी थाली मांहि ॥ बेहु सजनी वातो करे, क्षण घाले गले बांहि ॥ ५॥ श्रावी साध्वी वहोरवा, थयो जाम मध्यान ॥ पय प्रणमी मंत्री सुता, पडिलाने पकवान ॥६॥ अर्थ ॥ बहु मूट्यवाली काननी काल हती ते तेवखते थालमा मुकीने बंने बेहेनपणी वातो करती हती. कणेकमां एक बीजाना गलामां हाथ नांखती हती. ॥ ५॥ ज्यारे मध्यान्हनो पहोर थयो त्यारे साध्वी वहोरवा श्रावी. ते वखते मंत्री पुत्रीए उना थई नमस्कार करी पकवान साध्वीने वहोराव्यु. ॥६॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005375
Book TitleChand Rajano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1905
Total Pages396
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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