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________________ ११७ चंदराजानो रास. जाग्यो कपट निसातजी, स्त्रीवचने हो हलफलतो चंद के ॥ रेरे वेला बहु थइ, नवि जाण्यो हो उदयो जे दिणंद के॥ निगाए। रजनीए जे थयुं मावहुं, घेराणुं हो तेह थी मुज दिलके ॥तेणे सेजडीथी उठतां, यश् मुजने हो राणीजी ढीलके नि० ॥१०॥ अर्थ ॥ आ प्रमाणे स्त्रीनां वचनथी राजाचंद कपट निषा बोडी बेबाकलो जागी उठ्यो. अने कहेवा लाग्यो के, अरे बहु वेला यश् गइ. सूर्यनो उदय थयो ए वाततो जाणवामांज श्रावी नहीं. ॥ ॥ राजा चंदे कडं के, हे राणीजी, रात्रिए मावतुं श्रयं दतुं, तेथी मारुं दिल घेराइ गयु. तेथी करीने शय्यामांश्री उठतां मने वार थश्वे. ॥१०॥ तमे पण दीसो उजागरां, श्राचरणे हो जाणु बुं एम के ॥ श्राज तो वात घणी नली, दिन उदयथी दो तमे मांड्यो जे प्रेमके ॥ नि॥११॥ वात रसीली श्राजनी, लागे के हो बानिकनो रंग के ॥ जाणीए किहां क क्रीडा करी, आज एवा हो दीसे डे ढंग के ॥ नि ॥ १२ ॥ अर्थ ॥ तमारां आचरण उपरथी जणाय ने के, तमारे पण उजागरो थयो लागे जे. तेमां आजनी वात तो घणी सारी के तमे सर्यना उदयश्री प्रेम करवा मांड्यो. ॥११॥आज वात रसिली अने रंगी ली लागे जे. जाणे तमे आज को ठेकाणे क्रीडा करी होय तेवो ढंग वर्ताय ॥१२॥ कहोजी कहो मुज श्रागले, रातडीए हो रामत किहां कीध के ॥ पठी श्रमने प्रतिबोधजो, कही कहीने हो वातो अप्रसिद्धके । नि० ॥१३॥ कहे राणी राजा नणी, रामतडी हो जाणुं नवि कोय के ॥ हुं किहां जा साहिबा, ए मूकी हो चरणांबुज दोयके ॥ नि० ॥ १४ ॥ अर्थ ॥ हे राणी, मारी आगल वात कहो, तमे आज रात्रे क्यां रमत रम्यां ? पनी अमने अप्रसिद्ध वातो कही प्रतिबोध श्रापजो. ॥१३॥राणी ए राजाने का, हं को जातनी रमत जाणत हेब, श्रा तमारां बे चरण कमल मुकीने दुं क्यां जालं? ॥ १५॥ जोली नेद लहे नही, मुखे मीठी हो करे पिउथी वात के ॥ तमे पिज क्यां एक श्राजनी, रमी श्राव्या हो दीसोडो रातके ॥ नि० ॥ १५ ॥ हुँ अबला थाझा विना, किम विण कहे हो बाहिर धरूं पायके ॥रे रढी श्राला राजिया, मबराला हो मानो महाराय के ॥ नि० ॥ १६ ॥ अर्थ ॥ ते नोली स्त्री कांश नेद समजे नहीं अने पोताना प्रिय साथे मीठी मीठी वार्ता करवा लागी अने पुग्यं के, हे प्रिय ! आजनी रात तमे क्यांश्क रमी आव्या हो, तेम लागो गे.॥ १५ ॥ हुँ अबला स्त्री तमारी आझाविना घरनी बाहेर पग केम मुकुं ? हे रढीपाला, अने मनराला राजा, ए मारी वात जरूर मानजो. ॥१६॥ मोहने बीजा उदासनी, एकवीशमी हो कही सुंदर ढाल के ॥ जावी कथा नृपचंदनी, एह बागल हो अतिही डे रसाल ॥ नि ॥ १७ ॥ Jain Education International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005375
Book TitleChand Rajano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1905
Total Pages396
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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