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________________ द्वितीय उल्लास ॥ सु० ॥ स० ॥ रंगरली राजा घडे ॥ रा० ॥ सहु को अबे निज गेह स०॥ आगल संबंध मीठो ॥मी ॥ तेम वली नवले नेह ॥ ० ॥२१॥ ० ॥ वीशे ढालेको ॥ ढा० ॥ मोहने बीजो उल्लास ॥ सु०॥ ० ॥ श्री जिन धर्म थकी लहे ॥ ०॥ चंद नरिंद प्रकाश ॥ सु०॥ २२ ॥ अर्थ ॥ राजा पोताना रंगे खुशी रह्यो. बीजा पोतपोताने घेर रह्या बे; हवे श्रावातनो संबंध चागल मीठो आवे बे. तेमां वली नवीन स्नेह नरेलो बे. ॥ २१ ॥ या बीजा उल्लासनी त्रेव शमी ढाल श्रीमोहन विजये कही बे. राजाचंद श्रीजैन धर्मश्री पोतानुं तेज प्राप्त करे बे ॥ २२ ॥ १२४ ॥ इति श्रीचंद चरित्रे प्राकृत प्रबंधे चंदसिंदल मिलनस्वरूपा ( १ ) कनकध्वजकथाश्रवणरूपा ( २ ) जाटकपाणिग्रहणात्मिका (३) पुनरा पूरी नगरीगमनका ( ४ ) या निश्चतसृभिः कला जिः प्रबोधोद्वितीयो वासः समाप्तः ॥ सर्व गाथा १००० श्री चंदराजाना चरित्रना प्राकृत प्रबंधमां १ चंद ने सींहल राजानो मेलाप, २ कनकध्वजनी कथानुं श्रवण, ३ चंदराजाए जाडे करेलुं पाणिग्रहण, अने ४ पुनः श्राजापुरीमां गमन ए चार कलाउंथी युक्त एवो आ बीजो उल्लास समाप्त थयो. ॥ सर्व गाथा १०९ ॥ ॥ अथ तृतीयोल्लास प्रारभ्यते ॥ ॥ दोहा ॥ विनाशी काशीधणी, शिववासी हरितंग ॥ स्वर्ग निवासी दा सजस, नमो पास जिन रंग || १ || चिदाकार विज्ञानघन, चि दानंद चिप ॥ चिदानास करुणाथकी, होवे त्रिलोकी नूप ॥२॥ अर्थ | जे विनाशने पामता नथी, जे काशी नगरीना स्वामी, मोक्ष्मां निवास करनारा ने जेना शरनो रंग नीलो बे, वली जेनी देवतार्ज सेवा करे बे एवा श्रीपार्श्वनाथ प्रजुने हर्षथी नमस्कार था ॥ १ ॥ जे चैतन्य आकृतिवाला बे, जे चैतन्य ज्ञान समूह रूप बे, जे श्रानंद स्वरूप बे जे चैतन्य रूप बे, एवा चैतन्य स्वरुपी परमात्मानी करुणाथी आत्मा ऋण लोकनो नाथ थाय बे ॥ २॥ ॥ जे दर्शन दर्शन विना, दर्शन ते प्रतिपक्ष || दर्शन दर्शन होय जिहां, ते दर्शन प्रत्यक्ष ॥ ३॥ जंग जाल नरवाल मति, रचे विविध प्रयास || तिहां दर्शन दर्शन तो नही निदर्शना जास ॥४॥ ॥ जे दर्शन श्रात्म स्वरूपना अनुभव विनानुं बे, ते दर्शन ( मत ) विरोधी मतवालुं बे ने जे दर्शनमात्मस्वरुपना अनुभवरूप सम्यग् दर्शन थाय बे तेज दर्शन प्रत्यक्ष दर्शन बे. ॥ ३ ॥ जे पुरुष ज्ञान बुद्धि अनेक प्रकारना प्रयास करी वचनोना जंग जालनी रचना करे बे तेना मतमां शुद्ध आत्म दर्शननो अनुव नथी परंतु ते मात्र दर्शनानास बे. ॥ ५ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005375
Book TitleChand Rajano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1905
Total Pages396
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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