Book Title: Yatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Author(s): Jinprabhvijay
Publisher: Saudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
View full book text
________________
एक्क
कि
क
यतीन्द्रसूरी स्मारक ग्रन्थ : व्यक्तित्व - कृतित्व
जीवननिर्माता गुरुदेव
आचार्य श्रीमद्विजययतीन्द्रसूरीश्वर जी महाराज
- ज्योतिषाचार्य ज्योतिषसम्राट् मुनिप्रवर श्री जयप्रभविजयजी श्रमण-शिष्य, मुनि दिव्यचन्द्रविजय 'सुमन'......
आचार्य भगवन् श्रीमद्विजययतीन्द्रसूरीश्वर जी म.सा. ने अपने एक प्रवचन में फरमाया कि संसार में जिस प्रकार चिन्तामणिरत्न अखण्ड साम्राज्य, स्वाधीन समृद्धियां और वांछित सुखोपयोग बिना भाग्य के नहीं मिलते। उसी प्रकार मणु अत्तं बहुविहभव भमणस एहिं कहमक्लिद्धं अर्थात अनेक भवों के संचित महान पुण्योदय के बिना मनुष्यजन्म भी नहीं मिल सकता। चौरासी लाख जीवयोनि हैं, उनमें मनुष्य भव सबसे अधिक महत्त्व और उत्तमता रखता है। प्रभु श्री महावीर स्वामी ने स्पष्ट फरमाया है कि चुल्लक, पाशक आदि दृष्टान्त किसी तरह सिद्ध किये जा सकते हैं, परन्तु विषय-पिपासा की आशा में जिसने मनुष्य जन्म को खो दिया, तो फिर लाख प्रयत्न करने पर भी नहीं मिलता। आप ने आगे फरमाया कि अतिशय पुण्य से लम्यमनुष्यजन्म को प्रमादों का परित्याग करके सफल बनाने के लिए सदा सावधान रहना ही वास्तविक मनुष्यता है और इसी मनुष्यता की प्रशंसाजनक समुन्नति होती है, जो अटूट सामर्थ्य को देने वाली तथा स्वपर का कल्याण करने वाली होती है।
इस मनुष्यभव को दुर्लभ कहा गया है कि इसमें जन्म लेने के लिए देवता भी आस लगाये रहते है। कारण कि यह वह भव है, जिसमें रहकर व्यक्ति आत्मसाधना तथा धर्माराधना करते हुए मोक्ष प्राप्त कर सकता है यदि हम जीवन पर विचार करें तो प्रतीत होता है कि यह एक अनबूझ पहेली है, जिसे सुलझाने का प्रयोग युग-युग में अनेक चिंतकों द्वारा होता रहा है, किन्तु यह तथ्य उसकी अपूर्णता का द्योतक ही है कि आज भी विचारकों के लिए यह पहेली जस की तस बनी हुई है। विचारक जीवन के स्वरूप को अपनी-अपनी दृष्टि से देखते हैं वे उसका स्वरूप उसी रूप में स्वीकार करते हैं, जर्मन विद्वान् गेटे के अनुसार जीवन अमरत्व का शैशव है। एक अन्य विद्वान्शापनहावर के कथन मृत्यु का स्थगित होते रहना ही जीवन है- के संबंध में और भी बहुत कुछ लिखा जा सकता है, किन्तु अधिक विस्तार न करते सांकेतिक रूप से इतना ही पर्याप्त समझते हैं।
हुए
चिन्तकों ने जीवन का भी वर्गीकरण किया है। एकमान्य वर्गीकरण का लें तो जीवन को तीन भागों में विभक्त किया गया है- १. आसुरी जीवन २. दैवी जीवन और ३. आध्यात्मिक जीवन संक्षेप में इनका विवरण इस प्रकार है
Jain Education International
१. आसुरी जीवन - आसुरी जीवन भोगवादी है। खाओ, पीओ और मौज करो। भोग विलास, राग-द्वेष, सत्ता-महत्ता के दल-दल में निमग्न तथाकथित सांसारिक सुखोपयोग का जीवन ही आसुरी जीवन का है।
24anent
For Private & Personal Use Only
Groni
www.jainelibrary.org