Book Title: Yatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Author(s): Jinprabhvijay
Publisher: Saudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
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- यतीन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थ : जैन-धर्म - जस-शस्-ङसित्तो-दो-द्वानि दीर्घः। सूत्र से अजन्तांग को दीर्घ। टा आमोर्णः १३. 'नमो लोए सव्व साहूणं' लोक शब्द से सप्तमी एकवचन का सूत्र से आम् के आ का ण और मोऽनुस्वारः से मकार का अनुस्वार होने पर प्रत्यय ङि आया। लोक + ङि बना। लशक्वतद्धिते सूत्र से की इत्संज्ञा और आयरियाणं सिद्ध होता है।
तस्यलोप: सूत्र से लोप होने पर लोक + इ रहा। तब आद्गुणः ६।१८६ सूत्र से १२. उवज्झायाणं (उपाध्यायेभ्यः) सभीपाथीं उप और अधि पर्वं में पूर्व-पर के स्थान में गुणादेश होने पर लोके बना। फिर कगचजतदपयवां प्रायो लक है जिसके ऐसे इङ् (अध्ययने धातोः) धातु से धब् प्रत्यय होने पर उप + ८।१।१७७ सूत्र से ककार का लोप होने पर लोए यह प्राकृत रूप बना। अधि + इ + घञ् बना। उप + अधि में अकः सवर्णे दीर्घः ६।१।१०१ सूत्र सर्व शब्द से प्रथमा बहुवचन का प्रत्यय जस् आया जसः शी ७।१।१७ से पूर्व-पर के स्थान में दीर्घादेश होने पर उपाधि + इ + धञ् बना। धञ् की सूत्र से जस् के स्थान पर शी हुआ। शकार की लशक्वतद्धिते सूत्र से इत् संज्ञा लशक्वतद्धिते सूत्र से इत् संज्ञा व ञ् की हलन्त्यम् सूत्र से इत्संज्ञा और और तस्यलोपः सूत्र से शकार का लोप होने से सर्व+ इ रहा। आद्गुणः सूत्र तस्यलोपः सूत्र से लोप हुआ। तब उपाधि + इ + अ रहा। अचोणिति से पूर्व-पर के स्थान पर ए गुणादेश होने पर सर्वे बना। उसको सर्वत्र लव ७।२।११५ सूत्र से अजतांग को वृद्धि। उपाधि + ह + अ बना। इको यणचि रामचन्द्रे ८।२।७९ सूत्र से रेफ् का लोप तथा वकार का द्वित्व होने से सव्व सूत्र से यण। उपाध्यै+ आ एचोऽयवायावः६।१७८ सूत्र से ऐ के स्थान पर सिद्ध होता है। आय हुआ आ मिला ध्य् में य मिला धञ् के शेष रहे अ में तब बना साधू संसिध्धौ धातु से कृदन्त के क्रियादिभ्यो उण् सूत्र से उण् प्रत्यय उपाध्याय। उपाध्याय का उवज्झायाणं इस प्रकार बनता है -
आया, तब साधु + उण् बना । वुढू ।१।३।७। सूत्र से ण् की इत् संज्ञा होकर पोवः ८।१।२३१ सूत्र से पकार का बकार हुआ। साध्यसध्यह्यां झः तस्यलोप: सूत्र से लोप होने पर पूर्व-पर को मिलाने पर साधु सिद्ध होता है। ८।२।२६ सूत्र से ध्या के स्थान पर ज्झा हुआ तब उवज्झाय बना। उवज्झाय
साध का खघथघभाम् ।८।१।१८७। सूत्र से धकार के स्थान पर से नमः के योग से शक्तार्थवष्ड नमः स्वस्तिस्वाहा-स्वधामि: २।२।२५ सूत्र हकार हआ तब साह बना। साह शब्द के शक्तार्थ वषडनमः से चतुर्थी का भ्यस् का भ्यस् प्रत्यय आया। चतुर्थ्याः षष्ठीः। सूत्र से भ्यस् के स्वस्तिस्वाहास्वधाभिः सूत्र से नम: के योग में चतुर्थी बहुवचन का प्रत्यय स्थान पर आम आया। उवज्झाय + आम् जस्-शस-ङसि-त्तो-दो-द्वामि भ्यस आया। चताः षष्ठी सत्र से भ्यस के स्थान पर आम आया। तब साह दीर्घः। सूत्र से अजन्तांग को दीर्घ हुआ 'टा आमोर्णः' सत्र से आम् के आकार + आम्। जस्-शस्-ङसित्तोदोद्वामि दीर्घः सूत्र से अजन्तांग को दीर्घ। टा का ण और अन्त्य मकार का मोऽनुस्वार ८।१२३ से अनुस्वार होने पर आमोण: सत्र से आम के आकार का ण हुआ और मोऽनुस्वारः सूत्र से अन्त्य उवज्झायाणं बनता है।
हल् मकार का अनुस्वार हुआ, तब बना साहूणं। सब को क्रमशः लिखा, तब बना णमो लोए सव्व साहूणं।
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