Book Title: Yatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Author(s): Jinprabhvijay
Publisher: Saudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
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- यतीन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थ आधुनिक सन्दर्भ में जैनधर्म. स्वप्न में जब कोई जानवर या मनुष्य दिखाई देता है, तब उसका पहला एकान्त कथन अनावश्यक रूप से उस चोर ने व्यापारी कारण वह जानवर या मनुष्य नहीं होकर स्वप्न देखने वाला के जीवन में आकर व्यापारी को यातना पहुँचाई व धन छीना, स्वयं ही होता है, उसी प्रकार हमारे जीवन में भी जो कुछ दिखाई अतः चोर सजा का पात्र है। देता है, वह हमारे आमंत्रण से ही आता है।
इस तरह की आध्यात्मिक व्याख्या को भौतिक विज्ञान या गणित के सूत्रों की तरह से नहीं समझाया जा सकता है किन्तु एक बार ऐसी आध्यात्मिक समझ होने पर जीवन के कई तनाव हल हो सकते हैं। हमारे जीवन में कई घटनाएँ ऐसी हो सकती हैं, जिनमें हमें ऐसा लगता है कि दूसरों की गलती से हमें नुकसान हुआ नुकसान की पूर्ति हेतु हमारे जो भी लौकिक प्रयास होते हैं, वे किसी अपेक्षा से उचित व किसी अपेक्षा से अनुचित हो सकते हैं किन्तु हमारे विचारों में जो तनाव एवं घृणा उस व्यक्ति के प्रति होती है, उससे हमारा ही समय कष्टप्रद बनता है एवं शारीरिक स्वास्थ्य बिगड़ता है। इसके विपरीत जब हम अपने नुकसान के लिए दूसरों को पूर्णतया जिम्मेदार नहीं मानते हैं, तब हमारे तनाव बहुत कम रह जाते हैं।
विज्ञान के विकास के लिए भी यह एक अच्छा विषय कुछ या कई वर्षों बाद बन सकता है ।
यह व्याख्या समस्या का एक पहलू है । अन्य पक्षों पर भी विचार करने की आवश्यकता है। चोर या हत्यारे को सजा देना भी समाज में क्या आवश्यक है? इस तरह के प्रश्न को अब हम अनेकान्त के साथ आगे देखते हैं।
(ग) अध्यात्म पर विश्वास रखने वाला व्यापारी उक्त बिन्दु (ख) में विश्वास के कारण हानि के लिए कम खेद श्रेय देने व श्रेय लेने से संबंधित समस्याओं पर भी उपर्युक्त महसूस करेगा। उसके तनाव कम होंगे। अध्यात्म को जानने विश्लेषण उपयोगी सिद्ध हो सकता है। वाला बिन्दु (क) को भी जान रहा हो सकता है। बिन्दु (क) एवं (ख) विपरीत प्रतीत होते हैं किन्तु दोनों में विरोध नहीं है। ये (क) और (ख) एक साथ लागू होते हैं ।
अपराध एवं अपराधी की अनेकान्तमयी व्याख्या
इतना सब पढ़ने के बाद पाठक के मस्तिष्क में कई प्रश्न उपस्थित हो सकते हैं। संभावित प्रश्नों का समाधान अनेकान्त व्याख्या द्वारा हो सकता है। निम्नांकित उदाहरण द्वारा एकान्त व्याख्याओं एवं अनेकान्त व्याख्याओं का अंतर समझने से कई प्रश्नों के हल हो सकते हैं।
एक घटना पर विचार करें। घटना यह है कि एक चोर ने एक व्यापारी को यातना पहुँचाई व उसका धन छीना । इस घटना से संबंधित एकान्त कथन निम्नांकित हो सकते हैं -
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दूसरा एकान्त कथन - व्यापारी की हानि एवं यातना उसकी ही आत्मा द्वारा किए गए पिछले कर्मों का फल है अतः चोर दोषी नहीं है। चोर को सजा नहीं मिलना चाहिए ।
अब अनेकान्त दृष्टि से देखें, तो हमें उपर्युक्त दोनों कथनों की त्रुटियाँ ज्ञात होंगी। अनेकान्त दृष्टि से निम्नांकित चार बिन्दु एक साथ महत्त्वपूर्ण हैं
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(क) चोर ने लालच किया । चुराने के लिए बुरे भाव रखे । चुराने का बुरा प्रयत्न किया। चोर के बुरे भाव एवं बुरे प्रयत्न हेतु चोर जिम्मेदार है व सजा का पात्र है।
(ख) व्यापारी की हानि उसके ही कर्मों का फल है।
(घ) अध्यात्म को चूँकि व्यापारी ने समझा है, विश्वास किया है, श्रद्धा है किन्तु उसके जीवन में अभी अध्यात्म थोड़े ही अंशों' में उतरा है (संत नहीं है ) । अतः व्यापारी अपने पुराने संस्कारों के वश स्वयं के हित की भावना से या जनहित की भावना से चोर को पकड़वाने व वापस धन प्राप्त करने के प्रयत्न करे, तो कोई आश्चर्य नहीं ।
इस उदाहरण से कई संभावित प्रश्न हल हो सकते हैं। जो गृहस्थ व्यक्ति जीने की कला में चतुर हैं व जिन्होंने अध्यात्म उक्त रहस्य समझा है, वे किसी भी हानि से अधिक समय तक अशांत नहीं बने रहते हैं। आक्रोश व क्रोध अधिक समय तक ऐसे व्यक्तियों को परेशान नहीं करता है। जहाँ तक हानि की क्षतिपूर्ति का प्रश्न है, वे परिस्थिति के अनुसार या तो हानि को स्वीकार करके भूलने का प्रयास करते हैं या यथायोग्य कार्यवाही करते हैं। किन्तु दोनों अवस्थाओं में, संबंधित व्यक्ति के प्रति हृदय में शत्रुता के भाव शून्य के बराबर करने का सहज ही प्रयास होता है।
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