Book Title: Yatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Author(s): Jinprabhvijay
Publisher: Saudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
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- यतीन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थ आधुनिक सन्दर्भ में जैनधर्म भ्रष्टाचार, सामाजिक अत्याचार व मानसिक विकार एक प्रकार से अपरिहार्य ही हैं तथा जिसमें मानव समाज के अधिकांश भाग को, अपरिहार्य रूप से गरीबी, महँगाई, भुखमरी, बीमारी, अभाव, मिथ्या अकाल व काल की निरंतर काली छाया में रहने को ही विवश रहना पड़ता है। अतः इस संबंध में यहाँ तर्कसंगत रूप से यह प्रश्न उठता है कि क्या इस आदिमकालिक समाज सांस्कृतिक व्यवस्था की निजी सम्पत्ति जैसी अति जर्जर व भ्रष्टाचारजन्य सामाजिक संस्था के उन्मूलन, अथवा इसमें गंभीर संशोधन की आवश्यकता नहीं है? इस संबंध में यहाँ यह भी देखा जाना आवश्यक है कि मानवसमाज में मानव के मूल अधिकारों के दमन व शोषण तथा सामाजिक अत्याचार व भ्रष्टाचार के लिए राजनीतिक स्तर पर सामान्यवाद व उपनिवेशवाद कहाँ तक उत्तरदायी हैं?
निजी सम्पत्ति की प्रचीन संस्था में व्यापक परिवर्तन की आवश्यकता-
वस्तुतः स्थायी मानसिक चिकित्सा व मानसिक स्वास्थ्य के लिए वर्तमान पूँजीवादी व्यवस्था पर आधारित प्रत्येक राष्ट्र को अपनी ऐतिहासिक व राजनीतिक पृष्ठभूमि में भारी परिवर्तन अथवा आमूल परिवर्तन की आवश्यकता जान पड़ती है, क्योंकि व्यापक रूप से संसार में एक प्रकार से मूलदुश्चिन्ता की कुण्ठाकारक व विकासजन्य स्थिति समाजवादी व्यवस्था वाले राष्ट्रों में प्रायः देखने को नहीं मिलती। निश्चिततः यहाँ इस कथन का यह उद्देश्य कदापि नहीं है कि वर्तमान लोकतांत्रिक व पूँजीवादी व्यवस्था के स्थान पर समाजवादी व्यवस्था का अंधा अनुकरण किया जाए, परंतु यहाँ यह समझना कि पूँजीवादी समाजों की वर्तमान सामाजिक व्यवस्था ही अनेक मानसिक व्याधियों की जननी है, क्योंकि इसके अंतर्गत अनेक निजी सम्पत्ति व विशेषाधिकारों जैसी लगभग आदिकाल की संस्थाओं को जो कि इस आधुनिक युग में अपनी जर्जर अवस्था में पहुँच गई हैं, इस युग में उन्हें स्थिर रखना, सामाजिक न्याय की दृष्टि से कहाँ तक उचित व न्यायसंगत है। स्पष्टतः इसमें व्यापक स्तर पर आमूल परिवर्तन की ऐतिहासिक आवश्यकता है व इसमें व्यापक परिवर्तन लाने से ही मानव समाज अनेक भ्रष्ट विचारों, मिथ्या विश्वासों, भ्रामक लालसाओं व दूषित तथा विकारजन्य प्रभावों से मुक्त हो सकता है।
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चिकित्सा एवं ध्यानयोग
(i) भावातीत ध्यान (Transcendental Meditation)
तनाव मुक्ति (Tension reduction or relaxation) की यह एक ऐसी महत्त्वपूर्ण विधि है, जिसके अंतर्गत व्यक्ति एक ऐसी सीधी परंतु शिथिल ध्यानआसन की स्थिति में बैठा होता है, जिसमें संबंधित व्यक्ति के मन (अथवा मस्तिष्क के चिंतन संबंधी केन्द्रों) पर न तो किसी प्रकार का भार रहता है और तनावशील नियंत्रण ही रहता है। वस्तुतः यह ध्यान (Meditation) की ऐसी शारीरिक व मानसिक स्थिति होती है, जिसमें व्यक्ति का तंत्रिका तंत्र व्यावहारिकतः शिथिल तथा निष्क्रिय ही बना रहता है, परंतु इस प्रक्रम में वह प्रायः एक मंत्र का अपने मन में कुछ उच्चारण व जाप अवश्य करते रहता है।
इस भावातीत ध्यान की स्थिति के सुबह व शाम के अभ्यास से एक तनावग्रस्त व्यक्ति कुछ ही दिनों में अपने मानसिक तनाव से मुक्त होते देखा जाता है। वस्तुतः भावातीत ध्यान की स्थिति में व्यक्ति की विचार की गति, श्वास की गति व नाड़ी की गति भी एकदम शिथिल पड़ जाती | इस स्थिति में व्यक्ति को पसीना भी कम ही आता है, जो कि प्रायः शारीरिक दृष्टि से, इस सत्य की ओर संकेत करता है कि व्यक्ति इस स्थिति में पूर्णतः विश्रामदायक व शांतिदायक मुद्रा में है। वस्तुतः भावातीत ध्यान की ऐसी स्थिति के निरंतर अभ्यास से एक व्यक्ति अपने उत्तेजनशीलता, आक्रामकता, विरोध, अवसाद व उन्माद आदि भावों से कुछ ही समय पश्चात् मुक्त होते देखा जाता है।
तनावमुक्ति की इस पद्धति के प्रतिपादक महर्षि महेश योगी हैं। आधुनिक काल में यह पद्धति न केवल भारतवर्ष में, बल्कि विदेशों के अनेक बड़े नगरों जैसे लॉस एंजिल्स, कनाडा, साउथ अफ्रीका आदि में भी अधिक उपयोगी सिद्ध हुई है तथा इस कारण इसके प्रचलन में नित्य वृद्धि होती जा रही है।
(ii) योग चिकित्सा (Yoga Therapy)- मूलरूप से इस चिकित्सा पद्धति के प्रतिपादक महर्षि पतञ्जलि है, जिन्होंने लगभग ईसा से ४०० वर्ष पूर्व इसका सूत्रपात किया था। इस चिकित्सा पद्धति की मूल अवधारणा यह है कि जब तक व्यक्ति का मन व व्यवहार उसके पर्यावरण के प्रभाव के कारण दूषित
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