Book Title: Yatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Author(s): Jinprabhvijay
Publisher: Saudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
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- यतीन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थ- आधुनिक सन्दर्भ में जैनधर्म
आदर्श की विशेषताओं के अनुरूप अपने अंदर विशेषताएँ विकसित करने का प्रयास करता है, जैसे बच्चे अपने मातापिता या अन्य सदस्यों के व्यवहारों की नकल करके उनके जैसा व्यवहार करने का प्रयास करते हैं। आजकल युवक एवं युवतियाँ फिल्मी कलाकारों के हावभावों की नकल करते देखे जा रहे हैं। इसी प्रकार विभिन्न दलों के कार्यकर्ता अपने दलों के अध्यक्षों जैसा व्यवहार करते देखे जाते हैं। इससे स्पष्ट है कि तदात्मीकरण अपनी कमजोरी छिपाने का एक तरह का प्रयास कभी-कभी व्यक्ति संभावित कष्ट से बचने के लिए उस व्यक्ति के अनुसार कार्य करने लगता है जो उसे कष्ट पहुँचाने में सक्षम है Bettetheim 1943। यहाँ तदात्मीकरण का रूप एक प्रकार से अनुकरण का ही होता है। अतः यहाँ अनुकरण तथा तदात्मीकरण के अंतर को स्पष्ट करना भी आवश्यक है।
अनुकरण तथा तदात्मीकरण में अंतर
अनुकरण का रूप प्रायः स्थूल व भौतिक होता है, जैसे जब एक बालक अन्य बालकों को ताली बजाते देखकर स्वयं भी ताली बजाने लगता है, तब व्यवहार का ऐसा रूप अनुकरण कहलाता है, परंतु जब बालक या व्यक्ति अपना व्यवहार किसी प्रतिष्ठित व्यक्ति के व्यवहार के अनुकूल उस जैसी प्रतिष्ठा, प्रभाव व सम्मान पाने के लिए करता है, तब उसके व्यवहार में तदात्मीकरण की मनोरचना देखने में आती है। दूसरे, अनुकरण की प्रक्रिया में उद्दीपक विषय-वस्तु या घटना का होना एक प्रकार से आवश्यक होता है, जबकि तदात्मीकरण के लिए व्यक्ति के सम्मुख संबंधित व्यक्ति की उपस्थिति प्राय: इतनी आवश्यक नहीं होती। तीसरे, अनुकरण एक सरल, शारीरिक क्रिया है, जबकि तदात्मीकरण एक अपेक्षाकृत जटिल मानसिक क्रिया है, इसके
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अतिरिक्त अनुकरण अधिकांशतः एक चेतन क्रिया होती है, जबकि तदात्मीकरण का रूप प्रायः अचेतन प्रक्रिया का होता है।
विस्तृत रूप से तदात्मीकरण की रक्षायुक्ति न केवल व्यक्तित्व के अहम् के विस्तार तथा रक्षा में ही सहायक होती है, बल्कि व्यक्ति की दमित प्रबल इच्छाओं की पूर्ति का साधन भी होती है। उदाहरणार्थ जब एक विद्यार्थी में एक प्रसिद्ध डाक्टर अथवा प्रशासनिक अधिकारी बनने की इच्छा रहती है, परंतु कुछ कारणवश उसकी ये इच्छाएँ उस समय पूरी नहीं होने पातीं, तब वह अपनी इन दमित इच्छाओं की संतुष्टि बड़े होकर एक पिता के रूप में अपने एक लड़के को डाक्टर तथा दूसरे को प्रशसानिक अधिकारी बनाने में देखने में आती है। ऐसे ही, एक व्यक्ति स्वयं अशिक्षित रहने पर अपनी सन्तान को उच्च स्तर की शिक्षा-दीक्षा देकर अपने व्यक्तित्व की शिक्षा के दमित अभाव की पूर्ति में तदात्मीकरण की रक्षायुक्ति ही अपनाते देखा जाता है।
९. उदात्तीकरण - उदात्तीकरण से तात्पर्य उस मानसिक विरचना से है, जिसके द्वारा व्यक्ति किसी लक्ष्य को प्राप्त करने में असफल होने पर किसी दूसरे लक्ष्य का चयन करके अपनी इच्छा पूर्ति करने का प्रयास करता है। यद्यपि नवीन लक्ष्य से उसे उतनी संतुष्टि नहीं मिलती है जितनी की मूल लक्ष्य से संभावित थी फिर भी ऐसा करने से उसकी समस्या का समाधान हो जाता है और समायोजन स्थापित करने में भी सहायता मिलती है। जैसे आक्रामकता के स्थान पर पहलवानी, मुक्केबाजी या खेलकूद में भाग लेना । इससे मिलती-जुलती एक और विरचना है जिसे प्रतिस्थापन कहते हैं इसमें भी व्यक्ति मूल लक्ष्य की जगह नया लक्ष्य चुनकर अपना काम चलाता है।
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