Book Title: Yatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Author(s): Jinprabhvijay
Publisher: Saudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
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वाराणसी, सिंहपुर, हस्तिनापुर, राजगृह, निर्वाणगिरि आदि । दिगम्बर परम्परा की तीर्थ सम्बन्धी शेष प्रमुख तीर्थवन्दनाओं की सूची इस प्रकार है
रचना
शासनचतुस्त्रिशिका निर्वाणकाण्ड
तीर्थवन्दना
जीरावला पार्श्वनाथस्तवन
पार्श्वनाथस्तोत्र
माणिक्यस्वामीविनति
मांगीतुंगीगीत
तीर्थवन्दना
तीर्थवन्दना जम्बूद्वीपजयमाला
जम्बूस्वामिचरित
सर्वतीर्थ वन्दना श्रीपुरपार्श्वनाथविनती
पुष्पांजलिजयमाला तीर्थजयमाला
तीर्थवन्दना
बलिभद्र अष्टक
बलिभद्र अष्टक मुक्तागिरि जयमाला
रामटेक छंद
पद्मावती स्तोत्र षट्तीर्थ वन्दना
मुक्तागिरि आरती
अकृत्रिम चैत्यालयजयमाला
पार्श्वनाथ जयमाला तीर्थवन्दना
रचनाकर
मदनकीर्ति
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उदयकीर्ति
पद्मनंदि
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श्रुतसागर
अभयचन्द
गुणकीर्त
मेघराज
सर्वत्रैलोक्यजिनालय जयमाला विश्वभूषण
मेरुचन्द्र
गंगादास
धनजी
यतीन्द्रसूरि स्मारक अन्य समाज एवं संस्कृति
से प्रकाशित ।
३. भारत के प्राचीन जैनतीर्थ डॉ० जगदीशचन्द्र जैन, जैन संस्कृति संशोधन मण्डल, वाराणसी-५ ।
तीर्थजयमाला
सुमतिसागर
राजमल्ल
ज्ञानसागर
लक्ष्मण
सोमसेन
जयसागर
चिमणा पंडित जिनसेन
मकरंद
तोपकरि
देवेन्द्रकीर्ति
जिनसागर
समय
१२वीं - १३वीं शती
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१४ वीं शती
१५ वीं शती
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१६ वीं शती
१६वीं १७वीं शती १७वीं शती
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१७वीं शती
१७वीं - १८वीं शती १८वीं शती
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राघव
पं० दिलसुख ब्रह्म हर्ष
कवीन्द्रसेवक
:
नोट उक्त तालिका डॉ० विद्याधर जोहरापुरकर द्वारा संपादित तीर्थवन्दनसंग्रह के आधार पर प्रस्तुत की गयी है ।
२८ वी - १९वीं शती १९वीं शती
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४. भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ १,२,३,४,५, (सचित्र)
- श्री बलभद्र जैन प्रका० भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थ क्षेत्र कमेटी, बम्बई । ५. तीर्थदर्शन भाग १ एवं २
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प्रकाशक - श्री महावीर जैन कल्याण संघ, मद्रास ६००००७ इसके अतिरिक्त पृथक् पृथक् तीयों पर भी कई महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ उपलब्ध हैं ।
संदर्भ
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७.
आधुनिक काल के जैन तीर्थ विषयक प्रन्यः १- जैन तीर्थोनो इतिहास (गुजराती), मुनि श्री न्यायविजय जी श्री चारित्र स्मारक ग्रन्थमाला, अहमदाबाद १९४९ ई० २- जैनतीर्थसर्वसंग्रह, भाग-१, (खण्ड १-२), भाग-२ पं० अम्बालाल पी० शाह, आनन्द जी कल्याण जी की पेढ़ी, झवेरीवाड़, अहमदाबाद ९. मिथिले १२६]
८.
(अ) अभिधानराजेन्द्रकोष, चतुर्थ भाग, पृ० २२४२ (ब) स्थानांग टीका । जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, ३/५७,५९,६२ (सम्पा० मधुकर मुनि) सुयधम्मतित्थमग्गो पावयणं पवयणं च एगट्ठा । सुत्त तंतं गंथो पाढो सत्थं पवयणं च एगट्ठा ।। -विशेषावश्यक भाष्य, १३७८
के ते हरए ? के य ते सन्तितित् ? कहिंसि णहाओ व रयं जहासि ? धम्मे हरये बंभे सन्तितित्थे अणाविले अतपसन्प्रलेसे । जहिंसि व्हाओ विमलो विसुद्धो सुसीइओ पजहामि दोस ।।
-उत्तराध्ययनसूत्र, १२/४५-४६ देहाइतारयं जं वज्झमलावणयणाइमे च । गंताणच्चतिफलं च तो दव्वतित्थं तं । इह तारणाइफलयंति ण्हाण-पाणा ऽवगाहणईहिं । भवतारयंति केई तं नो जीवोवघायाओ ||
- विशेषावश्यक भाष्य १०२८ २०२९ देहोवगारि वा तेण तित्थमिह दाहनासणाईहिं । महु-मज्जमंस वेस्सादओ वि तो तित्थमावनं ॥
वही, १०३१
सत्यं तीर्थं क्षमा तीर्थं तीर्थमिन्द्रियनिग्रहः । सर्वभूतदयातीर्थं सर्वत्रार्जवमेव च ॥ दानं तीर्थ दमस्तीर्थं संतोषस्तीर्थमुच्यते । ब्रह्मचर्यं परं तीर्थं तीर्थं च प्रियवादिता ।। तीर्थनामपि तत्तीर्थं विशुद्धिमनसः परा ।
शब्दकल्पद्रुम- 'तीर्थ', पृ० ६२६ भावे तित्यं संघो सुयविहियं तारओ तहिं साहू । नाणाइतियं तरणं तारियव्यं भवसमुद्दो यं ॥
विशेषावश्यक भाष्य, १०३२ जं नाण- दंसण-चरितभावओ तव्विवक्खभावाओ ।
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