Book Title: Yatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Author(s): Jinprabhvijay
Publisher: Saudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
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- यतीन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थ - इतिहास. के रूप में उल्लेख है। शेष ७ आचार्यों के बारे में मात्र पट्टावलियों से ही न्यूनाधिक सूचनाएं प्राप्त होती हैं, अन्य साक्ष्यों से नहीं। लगभग २०० वर्षों की अवधि में किसी गच्छ में ८ पट्टधर आचार्यों का होना असंभव नहीं लगता, अतः आगमिक गच्छ के विभाजन के पूर्व इन पट्टावलियों की सूचना को स्वीकार करने में कोई बाधा नहीं है।
जैसा कि पूर्व में कहा जा चुका है अभयसिंहसूरि के पश्चात् उनके शिष्यों अमरसिंहसूरि और सोमतिलकसूरि की शिष्यसन्तति आगे चलकर क्रमशः धन्धूकीया शाखा और विडालंबीयाशाखा के नाम से जानी गई, यह बात निम्न प्रदर्शित तालिका से स्पष्ट होती हैशीलगुणसूरि ( आगमिकगच्छ के प्रवर्तक)
अभयसिंहसूर
1
अमरसिंहसूर
I
हेमरत्नसूर
1
अमररत्नसूर
1
सोमरत्नसूर
15 Ikybab
विजयसिंह सूरि
।
प्रारंभ ..........
सर्वानन्दसूरि
I
जिनचन्द्रसूरि
I
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गुणसमुद्रसूरि
1
सोमतलिकसूरि
1
सोमचंद्रसूरि
1
गुणरत्नसूर
1
मुनिसिंहसूर
विडालंबीया शाखा प्रारंभ ............
देवभद्रसूरि
।
धर्मघोषसूरि
।
यशोभद्रसूरि
।
अभयदेवसूरि
सिंहसूर
अध्ययन की सुविधा के लिए दोनों शाखाओं का अलग-अलग विवरण प्रस्तुत किया जा रहा है। इनमें सर्वप्रथम साहित्यिक साक्ष्यों और तत्पश्चात् अभिलेखीय साक्ष्यों के विवरणों की विवेचना की गई है।
శర
वज्रसेनसूरि
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रत्नाकर
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