Book Title: Yatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Author(s): Jinprabhvijay
Publisher: Saudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
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गतीलगनिमारक गत्य गवतिक सन्दर्भ में जैनधर्महै कि भगवान महावीर ने मनुष्य की संचय-वृत्ति एवं भोगवृत्ति अनेकान्त और अपरिग्रह की यह त्रिवेणी मानव-जाति के कल्मषों पर संयम रखने का उपदेश देकर मानवजाति के आर्थिक संघर्षों को धो डालने के लिए उतनी ही उपयोगी है, जितनी महावीर के के निराकरण का मार्ग प्रशस्त किया था। वस्तुतः भगवान युग में थी। महावीर ने वृत्ति में अनासक्ति, विचारों में अनेकान्त, व्यवहार में
आज मात्र वैयक्तिक स्तर पर ही नहीं सामाजिक स्तर पर अहिंसा, आर्थिक जीवन में अपरिग्रह और उपभोग में संयम के भी अहिंसा. अनेकान्त और अपरिग्रह की साधना करनी होगी, सिद्धान्त के रूप में मानवता के कल्याण का जो मार्ग प्रदर्शित
० तभी हम एक समतामूलक समाज की रचना कर मानव-जाति किया था, वह इक्कीसवीं सदी में भी उतना ही प्रासंगिक होगा,
को सन्त्रासों से मुक्ति दिला सकेंगे और यही महावीर के प्रति जितना कि आज से २५०० वर्ष पूर्व था। आज भी अहिंसा, हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
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