Book Title: Yatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Author(s): Jinprabhvijay
Publisher: Saudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
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- यतीन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थ - इतिहास - श्री जिनचन्द्रसूरि
को संधारा कर १५ दिन की संलेखना पूर्ण कर १० वर्ष ५
माह ५ दिन का आयुष्य पूर्णकर स्वर्गवासी हुए। आप बड़े आप मंत्री कुलधर के वंशज थे। दीक्षा का वर्णन ऊपर
प्रभावक आचार्य थे। आ गया है। आपके मारवाड़ कच्छ, गुजरात देश में विचरने एवं तीर्थयात्रा करने का पट्टावली में उल्लेख है। समियाणा छाजहड़गोत्र के लेख (अभिलेख) (गढ़सीवाणा) के राणा देवकरण स्वागतार्थ आए। श्री जयरत्नसूरि
(नाहर २००८) सं. १४६४ वै. ब.८ शनिवार उपवेश छा. ने आचार्य पद दिया, वन्ना गुणराज ने महोत्सव किया। जयरत्नसूरि गोत्रीय जठिल वंशीय मंत्री निणा भा. नामलदे पत्र में सीहा भा का दश सभलाकर जाधपुर, तिमरा, सातलमर हात हुए जसलमर सरमदे पत्र मं. समधर भा. सक्तादे. पु. सदारंग कीका सहित पधारे। काल मंत्री के वंशज मंत्री सीहा के पुत्र मं. समधर, श्रेयांसनाथ प्रतिमा खरतरगच्छीय श्री जिनचंद्रसरि पट्टे श्री समशेरसिंह ने प्रवेशोत्सव किया। गणधर वसही की भरतप्रतिमा जिनमेरूसरि से प्रतिष्ठा कराई। सीहा-समधर ने बनवाई थी, प्रतिष्ठा की। श्री महिमा मंदिर को,
२. (नाहर २१५९) सं. १५१३ माघ सुदि ३, सोमवार को अपने पाट पर स्थापित कर श्री जिन मेरुसूरि नाम प्रसिद्ध किया।
उपकेश ज्ञातीय छाजहड़गोत्रीय मं. झूठा। ल सुत महं कालू भा. पौ १५५९ सं. ब. १० को स्वर्गवासी हुए।
कर्मादे के पुत्र म. नोडने स्वपुत्र श्रेयांसनाथ बिंब कराके श्री जिनमेरुसूरि
खरतरगच्छीय जयशेखर सूरि ने प्रतिष्ठा की। छाजहड़गोत्रीय समरथ साह की पत्नी मूला देवी की कोख
३. (नाहर २१६९) सं. १५१३ मिती माघ सुदि ३ शुक्रवार से आपका जन्म हुआ। दीक्षा का नाम महिमामंदिर था। ये राजस्थान,
उपकेशज्ञातीय छाजहड़गोत्र के मंत्री देवदत्त भार्या रयणादे के गुजरात और सिंध में विचरे। जयसिंह सूरि को आचार्य पद व
पुत्र मं. गुणदत्त भार्या सातलदे सहित धर्मनाथ बिंब बनवाकर
खरतरगच्छ के आचार्य जिनशेखर सूरि पट्टे भ. श्री जिनधर्मसूरि भावशेखर, देवकलोल, देवसुंदर, क्षमासुंदर को उपाध्याय पद एवं
से प्रतिष्ठा करवाई। ज्ञानसुंदर, क्षमामूर्ति, ज्ञानसमुद्र को वाचक पद दिया। विहारक्षेत्र व जीवनी का वर्णन पड़ावली में है।
... ४. (नाहर २३६८) सं. १५८१ के माघ बदि ६ बुध को
उपकेशवंशीय छाजहड़ गोत्रीय मंत्री कालू भार्या कर्मादे पुत्र म. श्री जिनगुणप्रभसूरि
रादे छाहड़ा नयणा सोना नोडा ने पितृ मातृ श्रेयार्थ श्री सुमतिनाथ वेगड़ गच्छ पट्टावली में इनकी जीवनी विस्तार से दी गई बिंब बनवाके खरतरगच्छीय श्री जिन हंससूरि से प्रतिष्ठा कराई। है एवं गुणप्रभसूरि-प्रबंध भी उपलब्ध है। ये छाजहड़गोत्रीय जूठिल
५. (नाहर २४०१) सं. १५३६ मिती फाल्गुन सुदि ५ कलशृंगार नगराज नागलदे के पुत्ररत्न थ। त्रिपुरा देवी के संकेत भौमवार को उपकेशवंश के छाजहदगोत्रीय मंत्री कलधर संतानीय से इन्हें दीक्षा दी गई। स. १५६५ मार्गशीष चतुर्थी गुरुवार को मं जढिल पत्र मं काल भार्या कर्मा दे प. नयणा भा. नामलदे जन्म, सं. १५७५ में दीक्षा व सं १५८२ में जोधपुर में फाल्गुन सुदि
के प्र.मंत्री सीहा की भार्या चोपड़ा सा.सवा के पुत्र सं. जिनदत्त ४ को पट्टाभिषेक हुआ। जोधपुर के गंगेवराव, जेसलमेर के रावल,
भा..लखाई की पुत्री श्राविका अपूर्व नामक ने पुत्र समधर, इनके भक्त थे। ये बड़े प्रभावक थे। अनेक चमत्कारों का वर्णन ।
समरा, संदू के साथ स्वपुण्यार्थ श्री आदिदेव के प्रथम पुत्र भरत पाया जाता है। अकबर-प्रतिबोधक श्री जिनचंद्रसूरि (चौथे दादा
चक्रवर्ती की कायोत्सर्गमय प्रतिमा बनवाई। श्री खरतरगच्छ के साहब) को इन्होंने ही सं. १६१२ में सूरिपद दिया था, रावल
श्री जिनदत्तसूरि श्री जिनकुशलसूरि संतानीय श्री जिनचन्द्रसूरि, मालदेव ने पट्टाभिषेकोत्सव किया। मंत्री राजसिंह के संघ
पं. जिनेश्वरसूरि शाखा के जिनशेखसूरि के पट्टधर श्री जिनधर्मसूरि सहित तीर्थ यात्राएं की। दुष्काल के समय वर्षा के लिए श्री धरणन्द्रादि का आह्वान कर वर्षा कराई। रावल लूण करण ने
पट्टे पूज्य श्रीजिनचन्द्रसूरि ने प्रतिष्ठा की (श्राविना सूरमदे कारित) मोतियों से वधाया अनेक चमत्कारपूर्ण जीवनी के लिए पट्टावली ६. (नाहर २४३७) सं. १४३२ फाल्गुन सुदि ३ रविवार देखनी चाहिए। सं. १६५५ वैशाख बदि ८.को तिविहार ग्यारस को उपकेश वंश के छाजहड़गोत्रीय सं. वेगडा श्रेयार्थ देवदत्त
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