Book Title: Yatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Author(s): Jinprabhvijay
Publisher: Saudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
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- यतीन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थ - इतिहास
जैसा कि पूर्व में ही स्पष्ट किया जा चुका है, अभयसिंहसूरि के पश्चात् उनके शिष्यों अमरसिंहसूरि और सोमतिलकसूरि से आगमिकगच्छ की दो शाखाएं अस्तित्व में आईं। अमरसिंहसूरि की शिष्यसंतति आगे चलकर धंधूकीया शाखा के नाम से जानी गई। उसी प्रकार सोमतिलकसूरि की शिष्य परंपरा विडालंबीया शाखा के नाम से प्रसिद्ध हुई ।
मुनिसागरसूरि द्वारा रचित आगमिकगच्छपट्टावली में अभयसिंहसूरि के पश्चात् सोमतिलकसूरि से मुनिरत्नसूरि तक ७ आचार्यो का क्रम इस प्रकार मिलता है-
सोमतिलकसूरि
I
सोमचंद्रसूरि
I
गुणसू
1
मुनिसिंह सूरि
I
शीलरत्नसूरि
I
आनन्दप्रभसूर
मुनिरत्नसूरि
साहित्यिक साक्ष्यों के आधार पर इस पट्टावली के गुणरत्नसूरि और मुनिरत्नसूरि के अन्य शिष्यों के संबंध में भी जानकारी प्राप्त होती है।
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गजसिंहकुमार रास ६ ( रचनाकाल वि.सं. १५१३) की प्रशस्ति में रचनाकार देवरत्नसूरि ने अपने गुरु गुणरत्नसूरि का ससम्मान उल्लेख किया है।
इसी प्रकार मलयसुन्दरीरास ७ (रचनाकाल वि.सं. १५४३) और कथाबत्तीसी (रचनाकाल वि.सं. १५५७) की प्रशस्तियों में रचनाकार ने अपनी गुरुपरंपरा का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है-
मुनसिंहसूर
I
मतिसागरसूर
I
उदयधर्मसूरि ( रचनाकार)
आगमिकगच्छीय उदयधर्मसूरि (द्वितीय) द्वारा रचित धर्मकल्पद्रुम की प्रशस्ति में रचनाकार ने अपनी गुरु-परंपरा का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है-
आनन्दप्रभसूर
मुनिसागरसूरि
I
उदयधर्मसूरि
( धर्मकल्पद्रुम के रचनाकार)
मुनिरत्नसूर
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आनन्दरत्नसूर
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