Book Title: Yatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Author(s): Jinprabhvijay
Publisher: Saudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
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-यतीन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थ - जैन साधना एवं आचार. इन सबकी सूचनाओं से भरे पड़े होते हैं और हम उनको पढ़ने इन विकृत परिस्थितियों में यदि मनुष्य के चरित्र को उठाना है तथा देखने में अधिक रस लेते हैं। इनके दर्शन और प्रदर्शन से हमारी और उसे सन्मार्ग एवं नैतिकता की ओर प्रेरित करना है तो हमें अपने जीवनदृष्टि ही विकृत हो चुकी है, आज सच्चरित्र व्यक्तियों एवं उनके अध्ययन की दृष्टि को बदलना होगा। आज साहित्य के नाम पर जो जीवन-वृत्तान्तों की सामान्य रूप से, इन माध्यमों के द्वारा उपेक्षा की भी है वह पठनीय है, ऐसा नहीं है। आज यह आवश्यक है कि सत्जाती है। अत: नैतिक मूल्यों और सदाचार से हमारी आस्था उठती साहित्य का प्रसारण हो और लोगों में उसके अध्ययन की अभिरुचि जा रही है।
जागृत हो। यही सच्चे अर्थ में स्वाध्याय है।
लाल दोशी, ३२/२-३५. कोठारी
५. ६.
१. उत्तराध्ययनसूत्र- संपा०- रतनलाल दोशी, प्रका०- श्रमणोपासक जैन
पुस्तकालय, सैलाना, वीर सं० २४७८, ३२/२-३। २. आवश्यकनियुक्ति (हरिभद्रीय वृत्ति), संपा०- बी० के० कोठारी,
प्रका०-रिलीजियस ट्रस्ट, बम्बई, १९८१, ८८-८९। ३. उत्तराध्ययनसूत्र, २९/२०-२४। ४. स्थानांगसूत्र, संपा०-मधुकर मुनि, प्रका०- श्री आगम प्रकाशन
समिति, ब्यावर, १९८१, ५/३/२२३। वही-५/३/२२४। तत्त्वार्थराजवार्तिक, संपा०- डॉ० महेन्द्रकुमार जैन, प्रका०- भारतीय ज्ञानपीठ, काशी, १९५७, ९/२५। उत्तराध्ययनसूत्र, संपा०-रतनलाल दोशी, प्रका०- श्रमणोपासक जैन पुस्तकालय, सैलाना, वीर सं० २४७८, २६/११,१२,१७,१८।
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