Book Title: Yatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Author(s): Jinprabhvijay
Publisher: Saudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
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- यतीन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थ इतिहासकी एक सौ पीढ़ियों का उल्लेख मिलता है, जिसे इस लंबे इतिहास-दर्शन और उसकी दृष्टि में अंतर उत्पन्न करता है। आधुनिक अंतराल को देखते हुए कम बताकर विश्वसनीय नहीं माना गया। भारतीय एवं पाश्चात्य इतिहासकारों द्वारा राजछत्रों के इतिहास किन्तु पुराणों में केवल राजतन्त्रों को सम्मिलित किया गया पर ही अधिक ध्यान दिया जाता है। परन्तु सच्चा इतिहास प्रजा उसमें उन गणराज्यों के शासन को नहीं गिना गया है जो लंबे के आदर्शों के उत्थानपतन के साथ गतिशील होता है। कहने का समय तक चलते रहे थे। संभवतः पुराणों में कालगत व्यतिक्रम तात्पर्य यह है कि इतिहास संबंधी अवधारणाओं में काफी का दोष इसीलिए आया हो।
वैषम्य है। केवल राजनीतिक इतिहास ही सही इतिहास नहीं है भूमिदान के समय दानपत्रों पर दाता राजा की वंशावली
या केवल भूतकालीन घटनाओं का विवरण मात्र इतिहास नहीं लिखे जाने का उल्लेख याज्ञवल्य, बृहस्पति और व्यास भी।
र है और न ही केवल राजा, सामंत, राजपुत्र या राजपुरुषों का करते हैं, लेकिन बाद में विजेता शासकों ने इसमें काट-छाँट वणन हा झतहास ह। झतहास का विषय प्रजातन्त्र, प्रजा, उनके किया या नष्ट किया। कई वंशावलियों का अन्य ग्रन्थों में उल्लेख उत्थान-पतन, अ
उत्थान-पतन, आर्थिक और सांस्कृतिक स्थिति का लेखाहै पर वे ग्रन्थ लुप्त हो गए जैसे-अस्माकवंश, ससिवंश, क्षेमेन्द्रकृत .
जोखा भी है। सी.एच.फिलिप्स ने अपनी पुस्तक में एक महत्त्वपूर्ण नृपावली, हेलराजकृत पार्थिवावली, ११ राजकथा (कल्हण द्वारा बात कही है, वह यह कि 'इस ग्रन्थ के विभिन्न ख्यातिलब्ध उल्लिखित) आदि। भाग्यवश अतुलकृत मुशिकवंश एवं रुद्रकृत ।
विद्वान इतिहास-लेखन की कोई सर्वसम्मत परिभाषा नहीं दे राष्ट्रौधवंश सुरक्षित है। सारांश यह कि वंशावलियाँ थीं पर वे नष्ट
सके हैं ९३। मेरी दृष्टि में इसका कारण यही होगा कि वे भारतीय हो गईं। इसलिए कालगणना में व्यतिक्रम हो गया। इसीलिए यह और पाश्चात्य दृष्टिकोण में सामंजस्य नहीं स्थापित कर सके। कहना कि यहाँ इतिहास ही नहीं था या यहाँ के लेखकों में उपर्युक्त वर्णन से यह स्पष्ट हो जाता है कि भारत में इतिहास-बोध नहीं था, गलत है।
इतिहास की स्पष्ट अवधारणा थी। इसके प्रमाण में एक भारतीय वस्तुतः इतिहास-संबंधी अवधारणाओं का यह अंतर दो इतिहासकार कल्हण' के विचार अधिक महत्त्वपूर्ण और प्रासंगिक संस्कृतियों के अंतर के कारण है। भारतीय संस्कृति संश्लिष्ट ।
हैं। वह कहता है कि इतिहासकार का पवित्र कर्त्तव्य व्यतीत युग संस्कृति है और अनेक को एक में मिलाकर बनी है। सच्चा
का सच्चा चित्र पाठक के समक्ष प्रस्तुत करना है। मिथकीय
का सण इतिहासकार इन भेदों के भीतर छिपे ऐक्य-विधायक तत्त्वों को
अमृत किसी एक व्यक्ति को अमरत्व प्रदान कर सकता है,
अमृत कर पहचानकर उनका उद्घाटन करता है न कि भारतीय महाप्रजा किन्तु एतहासिक सत्य क लखन द्वारा हातहासकार अनेक को निषाद, द्रविड, किरात, आर्य आदि खण्डों में बाँटकर अनेक .
महापुरुषों के साथ स्वयं को भी अमर कर देता है। इतिहासकार स्पर्धात्मक संघर्षों को जन्म देता है। सच्चे इतिहासकार की दृष्टि
का लक्षण बताता हुआ वह कहता है कि अनासक्त होना और में भारतीय इतिहास का आद्य देवता प्रजापति है और उसका रागद्वेष से दूर रहना इतिहासकार का प्रथम गुण है। समीक्षात्मक आराध्य तत्त्व भारतीय महाप्रजा है। इस अखण्ड तत्त्व को नहीं बुद्धि और संदेहवादी विचारणा इतिहास-लेखक को प्रथम श्रेणी भूलना चाहिए। भारतीय दृष्टि में अध्यात्म, दर्शन. ज्ञान और का इतिहासकार बनाते हैं४ कल्हण ने उन्हीं आदर्शों के अनसार संस्कृति पर विचार करने के लिए एकत्र महासभा अधिक काफी खोजबीन के पश्चात् काश्मीरी शासकों और वहाँ की ऐतिहासिक घटना थी न कि किसी राजनेता की मृत्यु या किसी व
यथार्थ राजनैतिक घटनाओं को आधार मानकर इतिहास लिखा। शासक के युद्ध इत्यादि की घटना। वह इतिहास जो भारतीय दृष्टि
किन्तु प्रायः अन्य लेखकों ने इन आदर्शों का पालन नहीं किया। से ग्रन्थों में अंकित है उसे पाश्चात्य इतिहासकार इतिहास ही नहीं अपने नायक के गुणों को लिखने की प्रवृत्ति, काव्यात्मक कल्पना. मानते। उनकी दृष्टि में महावीर की धार्मिक यात्राओं या गौतम
काल तथा तिथिक्रम की उपेक्षा आदि के कारण उनके लेखन में के महाभिनिष्क्रमण से अधिक महत्त्वपूर्ण घटना कोलम्बस की
वह उदात्त रूप नहीं मिलता जो रागद्वेष से ऊपर उठकर, गुणदोष यात्रा मानी जाती है। एक की यात्रा अनन्त की खोज के लिए थी, का सम्यक विवचन
का सम्यक विवेचन करके तथा घटनाओं का यथातथ्य विवरण दूसरे की देशों पर विजय के लिए थी। संस्कतियों का यही भेट देकर कल्हण ने अपनी रचना में प्रस्तुत किया है। जैन रचनाकार
भी इस प्रवृत्ति से अछते नहीं रहे। उन्होंने महत्त्वपूर्ण पात्रों और
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