Book Title: Yatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Author(s): Jinprabhvijay
Publisher: Saudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
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-यतीन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्य - जैन साधना एवं आचारभावनाएँ और उसकी विधि की चर्चा है।
समाधिमरण से सम्बन्धित प्राचीन आठ ग्रन्थों के आधार पर निर्मित महाप्रत्याख्यान नामक प्रकीर्णक में १४२ गाथाएँ हैं। इसमें बाह्य हुआ एक सङ्कलन-ग्रन्थ है। यद्यपि इसमें इन आठ ग्रन्थों की गाथाएँ एवं आभ्यन्तर परिग्रह का परित्याग, सर्वजीवों से क्षमा-याचना, कहीं शब्द रूप में, तो कहीं भाव रूप से ही गृहीत हैं। फिर भी समाधिमरण आत्मालोचन, ममत्व का छेदन, आत्मस्वरूप का ध्यान, मूल एवं उत्तर सम्बन्धित सभी विषयों को एक स्थान पर प्रस्तुत करने की दृष्टि से गुणों की आराधना, एकत्व भावना, संयोग सम्बन्धों के परित्याग आदि यह ग्रन्थ अति महत्त्वपूर्ण है। इसमें ६६३ गाथाएँ हैं। यह ग्रन्थ संक्षिप्त की चर्चा करते हुए आलोचक के स्वरूप का भी विवरण दिया गया होते हुए भी भगवती-आराधना के समान ही अपने विषय को समग्र है। इसी प्रसङ्ग में पाँच महाव्रतों एवं समिति, गुप्ति के स्वरूप की रूप से प्रस्तुत करता है। विस्तार-भय से यहाँ इसकी समस्त विषय-वस्तु चर्चा भी है। साथ ही साथ तप के महत्त्व को बताया गया है। फिर का प्रतिपादन कर पाना सम्भव नहीं है। इसमें १४ द्वार अर्थात् अध्ययन अकृत-योग एवं कृत-योग की चर्चा करके पण्डितमरण की प्ररूपणा हैं। इस ग्रन्थ में भी संस्तारक के समान ही पण्डित-मरणपूर्वक मुक्ति की गयी है। इसी प्रसङ्ग में ज्ञान की प्रधानता का भी चित्रण हुआ प्राप्त करने वाले साधकों के दृष्टान्त हैं। जिनमें से अधिकांश भगवतीहै। अन्त में संसारतरण एवं कर्मों से विस्तार पाने का उपदेश देते आराधना एवं संस्तारक में मिलते हैं। इसी ग्रन्थ में अनित्य आदि बारह हुए आराधना रूपी पताका को फहराने का निर्देश है। साथ ही पाँच भावनाओं का भी विवेचन है। प्रकार की आराधना व उनके फलों की चर्चा करते हुए धीरमरण इसके अतिरिक्त आराधनापताका नामक एक ग्रन्थ और है। यह (समाधिमरण) की प्रशंसा की गयी है।
ग्रन्थ अभी तक अप्रकाशित है। कुछ विद्वानों का ऐसा कहना है कि संस्तारक प्रकीर्णक का विषय भी समाधिमरण ही है। इस प्रकीर्णक ___ यह ग्रन्थ यापनीय ग्रन्थ भगवती-आराधना के आधार पर आचार्य वीरभद्र में १२२ गाथाएँ हैं। प्रारम्भ में मङ्गल के साथ-साथ कुछ श्रेष्ठ वस्तुओं द्वारा निर्मित हुआ है, किन्तु इस ग्रन्थ में भक्तपरिज्ञा, पिण्डनियुक्ति
और सद्गुणों की चर्चा है। इसमें कहा गया है कि समाधिमरण परमार्थ, और आवश्यकनियुक्ति की अनेकों गाथाएँ भी हैं। अत: यह किस ग्रन्थ परम-आयतन, परमकल्प और परमगति का साधक है। जिस प्रकार के आधार पर निर्मित हुआ है, यह शोध का विषय है। पर्वतों में मेरुपर्वत एवं तारागणों में चन्द्र श्रेष्ठ है, उसी प्रकार सुविहित इसी प्रकार श्वेताम्बर-परम्परा में समाधिमरण से सम्बन्धित अनेक जनों के लिए संथारा श्रेष्ठ है। इसी में आगे १२ गाथाओं में संस्तारक ग्रन्थ परवर्ती श्वेताम्बराचार्यों द्वारा भी लिखे गये हैं, जिनमें पूर्ण विस्तार के स्वरूप का विवेचन है। इस प्रसङ्ग में यह बताया गया है कि कौन के साथ समाधिमरण सम्बन्धी विवरण है, किन्तु ये ग्रन्थ परवर्तीकाल व्यक्ति समाधिमरण को ग्रहण कर सकता है? यह ग्रन्थ क्षपक के लाभ के हैं और हम अपने विषय को अर्धमागधी आगम साहित्य तक ही एवं सुख की चर्चा करता है। इसमें संथारा ग्रहण करने वाले कुछ सीमित रखने के कारण इनकी विशेष चर्चा यहाँ नहीं करना चाहेंगे। व्यक्तियों के उल्लेख हैं, यथा- सुकोशल ऋषि, अवन्ति-सुकुमाल, यह समस्त चर्चा भी हमने सङ्केत रूप में ही की है। विद्वानों से अनुरोध कार्तिकेय, पाटलीपुत्र के चंदक-पुत्र (सम्भवत: चन्द्रगुप्त) तथा चाणक्य है कि वे इस तुलनात्मक अध्ययन को आगे बढ़ायें। इस सम्बन्ध में आदि।
अनेक आगमिक व्याख्या-ग्रन्थ जैसे आचाराङ्गनियुक्ति, सूत्रकृताङ्गनियुक्ति, ज्ञातव्य है कि इसकी अधिकांश कथाएँ यापनीय-ग्रन्थ भगवती- आवश्यकनियुक्ति, निशीथभाष्य, बृहत्कल्पभाष्य, व्यवहारभाष्य, निशीथचूर्णि आराधना में भी उपलब्ध होती हैं। विद्वानों से अनुरोध है कि संस्तारक आदि भी उनके उपजीव्य हो सकते हैं। इसी प्रकार आगमों की शीलाङ्क एवं मरणविभक्ति में वर्णित इन कथाओं की बृहत्कथाकोश तथा आराधना और अभयदेव की वृत्तियाँ भी बहुत कुछ सूचनायें प्रदान कर सकती कोश से तुलना करें। अन्त में संस्तारक की भावनाओं का चित्रण है। हैं। उदाहरण के रूप में क्षपक अर्थात् संलेखना लेने वाले श्रमण के इसकी अनेक गाथाएँ आतुरप्रत्याख्यान एवं चन्द्रवेध्यक प्रकीर्णक में मरणोपरान्त देह को किस प्रकार विसर्जित किया जाये, इसकी चर्चा भी मिलती हैं।
भगवती-आराधना और निशीथचूर्णि में समान रूप से मिलती है। आशा श्वेताम्बर आगम-साहित्य में समाधिमरण के सम्बन्ध में सबसे है विद्वानों की आगामी पीढ़ी इस तुलनात्मक चर्चा को पूर्णता प्रदान विस्तृत ग्रन्थ मरणविभक्ति है। वस्तुत: मरणविभक्ति एक ग्रन्थ न होकर करेंगी।
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