Book Title: Yatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Author(s): Jinprabhvijay
Publisher: Saudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
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- यतीन्द्र सूरि स्मारकग्रन्थ - जैन-साधना एवं आचार - को प्रमाण की कोटि में नहीं रखते हैं। किन्तु जैन-दर्शन इसे ८. जैनधर्मदर्शन- डा. मोहनलाल मेहता, पृ. ३१९ प्रमाण मानता है। अपने मत की पष्टि के लिए जैन-दर्शन जो ९. वही कुछ कहता है उसमें व्यावहारिकता भी एक है। व्यवहार में १०. जैनधर्मदर्शन, पृष्ठ ३२० स्मृति को अच्छा स्थान प्राप्त है। स्मृति के बिना व्यवहार नहीं
११. परीक्षामुख- माणिक्यनन्दी, ३/५ चल सकता और जो सिद्धान्त व्यवहार को छोड़कर चलेगा, वह
१२. वही- ३/५
१३. प्रमाणमीमांसा-आचार्य हेमचन्द्रसूत्र, १/२/४ निश्चित ही कमजोर होगा। अतः स्मृति की प्रामाणिकता की
१४. जैनदर्शन : मनन और मीमांसा-मुनि नथमल, पृष्ट ५८० सिद्धि के लिए व्यवहार को आधार मानना उचित जान पड़ता है।
न्यायावतार, तात्पर्यटीका, पृष्ठ १३९ . प्रत्यभिज्ञान भी एक स्वतंत्र प्रमाण है। इसकी आंशिक पुष्टि तो १६. न्यायमञ्जरी पप ४ER न्याय, मीमांसा आदि करते ही हैं। जब वे उपमान को प्रमाण
१७. जैनदर्शन--महेन्द्र कुमार जैन, पृष्ठ २२८ मान लेते हैं। विवेचन के आधार पर यह ज्ञात होता है कि १८. प्रसिद्धार्थसाधार्थ साध्यसाधनमुपमानम्प्रत्यभिज्ञान का ही सादृश्य लक्षण उपमान के नाम से जैनेतर -न्यायसूत्र १/१/६। दर्शनों में प्रतिष्ठित है। अतः प्रयभिज्ञान को पूर्णरूपेण प्रमाण १९. अभिधानराजेन्द्रकोश, भाग-४, पृ. २१६९ मानना गलत नहीं कहा जा सकता। तर्क के विषय में जैन एवं २०. हलायुधकोश-जयशंकर जोशी, पृ. ३२२ जैनेतर सभी दर्शन अधिक जागरुक मालम पड़ते हैं। जैनमत में २१. कठोपनिषद्-द्वितीयावल्ली-९ व्याप्तिज्ञान ही तर्क है। व्याप्तिज्ञान की प्राप्ति के समय ज्ञानी
२२. मनुस्मृति-१२/१०६ योगी की तरह हो जाता है। ऐसा कहकर, जैन विचारकों ने तर्क
२३. महाभारत ३/१९९/१०८
२४. आचारांगसूत्र-- को ज्ञान और प्रमाण के सामान्य धरातल से ऊपर उठा दिया है।
२५. जैनदर्शन-महेन्द्र कुमार जैन, पृष्ठ २३२ प्रमाण की आवश्यकता साधारण व्यक्तियों के लिए होती है।।
२६. भारतीय दर्शन-चट्टोपाध्याय एवं दत्त, पृष्ठ १७५ योगज ज्ञान और योगियों के लिए नहीं। यदि इस रूप में ही तक २७. न्यायदर्शन (भाष्य) - १/१/९ को प्रमाण मानना है तब तो वह न्याय-दर्शन का योगज प्रत्यक्ष २८. मीमांसा दर्शन-शाबभाष्य- ९/१/१ है ही। अतः ऐसा प्रतीत होता है कि जैन-विचारकों ने तर्क या २९. न्यायमञ्चरी, पृष्ठ ५८६ व्याप्ति-ज्ञान को योगज स्तर पर लाकर इसके साथ न्याय नहीं ३०. तत्वार्थाधिगमभाष्य-१/१५ किया है।
३१. Elementary Lessoons in Logic - W.S. Jevons, Page-1 संदर्भ सूची
३२. परीक्षामुख- ३/११ तथा प्रमाणमीमांसा- १/२/५ प्रमाणनिर्णय, पृष्ठ ३३१
३३. प्रमाणमीमांसा--आचार्य हेमचन्द्र- २/१०-११ जैनन्याय- पंडित कैलाशचन्द्र शास्त्री, पृ. १९३
३४. जैनधर्मदर्शन- डा. मोहनलाल मेहता, पृ. ३२३ ३. परीक्षामुख- ३/३
३५. प्रमाणमीमांसा- १/२/६ प्रमाणमीमांसा-आचार्य हेमचन्द्र-१/२/३
३६. (अ) जैनदर्शन में तर्कप्रमाण का आधुनिक सन्दर्भो में
मूल्यांकन- डा. सागरमल जैन, दार्शनिक त्रैमासिक, ५. आधुनिक मनोविज्ञान, लालजी राम शुक्ल ६. जैन-दर्शन- डॉ. महेन्द्रकुमार जैन, पृष्ठ २२४
वर्ष २४, अक्टूबर १९७८, अंक-४, पृ. १९३-१९४, जैनन्याय- पं. कैलाशचन्द्र शास्त्री, पृष्ठ १९४-१९६
A modern Introduction of Indian logic-SS Barlinga Page-123-125
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