Book Title: Yatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Author(s): Jinprabhvijay
Publisher: Saudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
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यतीन्द्र सूरिस्मारकग्रन्थ - जैन-साधना एवं आचार -- का रास्ता नाप कर हलवाई की दुकान पर पहुँचा। वहाँ उसने है। आज आहार नहीं लाना है, व्रत रखेंगे। पेट भर खाना खा लिया। मगर स्त्री के लिए यह समस्या कितनी
गुरु का उत्तर सुन कर युवक विचार में पड़ गया। फिर कठिन थी? युवक ने तो अपना पेट भर लिया, मगर स्त्री बेचारी
उसने कहा - गृहस्थ धर्म से मैं ऊब गया, महाराज। अब मैं क्या करती? वह उसके बिना खाना कैसे खाती? उसे भूखा
साधु-धर्म का पालना करना चाहता हूँ। आज्ञा दो महाराज। रहकर ही दिन गुजारना पड़ा।
गुरु बोले - मिल जाएगी आज्ञा। । दूसरी बार फिर इसी प्रकार की घटना घटी। संयोगवश समर्थ गुरु रामदास भी वहाँ पहुँच गए। उन्हें देख कर स्त्री ने
मगर युवक के लिए तो एक-एक पल, पहर की तरह कट सोचा - कहीं इन्हीं के पास न मड जाएँ और वह जोर-जोर से रहा था। उसने कहा - गुरुदेव, भूख के मारे मेरी तो आतं रोने लगी।
कुलबुला रही हैं। गरु विचार में पड़ गए। स्त्री फफक-फफक कर रो रही
गुरु - अच्छा, नीम के पत्ते संत लाओ और उन्हें पीसकर थी और जब उन्होंने रोने का कारण पूछा तो वह और ज्यादा रोने गाल बना ली। लेगी। गुरु ने कहा - आखिर बात क्या है? घर में तुम दो प्राणी उसने ऐसा ही किया। नीम के पत्ते पीस कर गोले बना हो और वर्षों से साथ-साथ रह रहे हो। फिर भी दृष्टिकोण में मेल लिये। नहीं बैठा सके।
फिर वह सोचने लगा- यह खाने की चीज नहीं है, किन्तु तब स्त्री ने कहा - इनको मेरे हाथ का बना खाना अच्छा गुरु जादूगर हैं तो उनके प्रभाव से यह गोले मीठे बन जाएँगे। नहीं लगता है और कहते हैं कि साधु बन जायेंगे।
गोले तैयार हो गए देख गुरु ने कहा - अब तुम्हें जितना गुरु ने यह बात सुनी तो कहा - तुम्हें यह डर है तो उसे खाना हो सो खा लो। निकाल दो, क्योंकि मियाँ की दौड़ मस्जिद तक ही है। साध
युवक ने ज्योंही एक गोला मुँह में डाला तो वह जहर था। बनने के लिए आएगा तो मेरे पास ही। मैं देख लूँगा कि वह कैसा
उसे वमन हो गया। जब वमन हो गया तो गुरु ने कहा - दूसरा साधु बनने वाला है। तुझे धमकी दे तो तू कह देना कि साधु
उठाकर खाओ। और फिर वमन किया तो इस डंडे को देख बनना है तो बन क्यों नहीं जाते। इतना कहकर गुरु लौट गए।
रखो। यहाँ तो रोज यही खाने को मिलेगा। ___ एक दिन जब फिर वैसा ही प्रसंग आया, तो युवक ने
युवक ने कहा - महाराज, इसे आदामी तो नहीं खा सकता। कहा - अच्छा तो मैं साधु बन जाऊँगा। स्त्री ने कह दिया - रोज-रोज साधु बनने का डर दिखलाने
तब समर्थ रामदास ने एक लड्डू उठाया और झटपट खा से क्या लाभ है? आपको साधु बनने में ही सुख मिलता हो तो आप साधु बन जाइए। मुझे जीवन चलाना है तो किसी तरह युवक - आप तो खा गये, पर मुझसे तो नहीं खाया जा। चला लूँगी।
गुरु -तेरी वाणी पर साधुपन आया है, अन्दर नहीं आया। - युवक ने भी भड़क कर कहा- अच्छा, यह बात है। तो अरे मूर्ख, उस लड़की को क्यों तंग किया करता है? साधु बनने अब जरूर साधु बन जाऊंगा।
का ढोंग क्यों करता है? साधु बनकर भी क्या करेगा? साधु बन
गया और बाद में गड़बड की तो ठीक नहीं होगा। यह कह कर वह घर से निकल पड़ा। मन में सोचा - साधु ही बनना है। और वह समर्थ रामदास के पास जाकर बैठ अब युवक की अक्ल ठिकाने आई। वह घर लौट आया। गया। बहुत देर तक बैठा रहा। बातचीत करने के बाद उसने गुरु फिर उसने यह देखना बन्द कर दिया कि रोटी सख्त है, या नरम से कहा - आज आहार लेने नहीं पधारे?
है. कच्ची है या पक्की है, चुपचाप शान्त भाव से वह लगा। गुरु ने कहा - आज चेला आया है, इस कारण हमें प्रसन्नता जिनके घर में खाने-पीने के लिए ही महाभारत का अध्याय androidroraniwandraridrorditor-ordinatorrord-6-९ idroridororanirbrowdnironiriranditaniudwidwidhwar
लिया।
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