Book Title: Yatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Author(s): Jinprabhvijay
Publisher: Saudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
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- यतीन्द्रसूरि स्मारकग्रन्थ - जैन दर्शन - (१) विरुद्धकार्यानुपलब्धि--यह व्यक्ति व्याधिग्रस्त है, देखा जाता। सिद्धसेन, दिवाकर ने दृष्टांत, अकलंक ने दृष्टांत और क्योंकि इसकी चेष्टाएँ स्वस्थ जैसी नहीं हैं।
निदर्शन, माणिक्यनंदी ने दृष्टांत, निदर्शन और उदाहरण तथा हेमचंद्र _(२) विरुद्धकारणानुपलब्धि--इस व्यक्ति में दःख है, ने दृष्टांत और उदाहरण के प्रयोग किए हैं। क्योंकि इष्ट संयोग नहीं है।
दृष्टान्त के प्रकार - ब्राह्मण परंपरा के अक्षपाद ने दृष्टांत (३) विरुद्धस्ववानुपलब्धि--वस्तु अनेकान्तात्मक
या निदर्शन के दो भेद माने हैं - साधर्म्य एवं वैधर्म्य १। इसी तरह
जैनाचार्य सिद्धसेन दिवाकर ने दृष्टांत के दो प्रकारों साधर्म्य और क्योंकि एकान्त स्वरूप उपलब्ध नहीं होता है।वादिदेवसूरि ने
वैधर्म्य पर प्रकाश डाला है। २ माणिक्यनंदी ने उन्हीं दृष्टांत के भेदों अकलंक और माणिक्यनंदी के हेतु संबंधी विचारों का समर्थन
को अन्वय और व्यतिरेक के रूपों में व्यक्त किया है। इसी प्रकार किया है, किन्तु माणिक्यनंदी ने विरुद्धोपलब्धि के छह तथा
आचार्य हेमचन्द्र ने दृष्टान्त के प्रकारों को साधर्म्य तथा वैधर्म्य और विरुद्धानुपलब्धि के तीन भेद किए हैं। और वादिदेवसूरि ने
आचार्य धर्मभूषण ने अन्वय व व्यतिरेक की संज्ञा दी है ५। विरुद्धोपलब्धि का एक भेद स्वभावविरुद्धोपलब्धि अधिक तथा . विरुद्धानुपलब्धि के दो भेद विरुद्धव्यापकानुपलब्धि तथा
दृष्टांत की सीमा - दृष्टांत की आवश्यकता को व्यक्त विरुद्धसहचरानुपलब्धि अधिक बताया है।
करते हुए आचार्य अकलंक ने यह कहा है कि सभी स्थलों पर
दृष्टांत अनिवार्यतः प्रस्तुत किया ही जाए ऐसी बात नहीं देखी जाती आचार्य हेमचन्द्र ने कणाद, धर्मकीर्ति तथा विद्यानंद की
है। पदार्थों की क्षीणता सिद्ध करने में किसी पदार्थ को दृष्टांत के तरह हेतुओं का विभाजन किया है, लेकिन इनके द्वारा किए गए
रूप में प्रस्तुत करना संभव नहीं है। यदि अमुक पदार्थ दृष्टांत के वर्गीकरण में अनुपलब्धि विधि साधक रूप में नहीं है। धर्मभूषण रूप में हमारे सामने है तो हम उसे क्षणिक कैसे कह सकते हैं। विद्यानंद के हेत संबंधी विचारों से सहमत देखे जाते हैं। इससे यह जाहिर होता है कि दृष्टांत की आवश्यकता सीमित है। यह यशोविजय का वर्गीकरण विद्यानंद, माणिक्यनंदी, देवसूरि और विषयवस्तु को स्पष्ट करने में सहायक है किन्तु सर्वत्र नहीं। धर्मभूषण के वर्गीकरणों के आधार पर हुआ है। विशेषतः
उपनय (उपसंहार)- साध्य का उपसंहार उपनय के देवसूरि और धर्मभूषण का प्रभाव उस पर लक्षित होता है।
नाम से जाना जाता है दृष्टांत (दिईत) - न्यायसूत्रकार गौतम ने दृष्टान्त को
उदाहरण की अपेक्षा से यह उपसंहार दो तरह से होता है। परिभाषित करते हुए कहा है कि - लौकिकपरीक्षकाणां यस्मिन्नर्थे
महर्षि गौतम ने जैसा प्रतिपादन किया है। उपसंहार इस प्रकार बुद्धिसाम्यं स दृष्टान्तः।
होता है-'तथा इति' उसी प्रकार यह भी वैसा है अथवा न तथा, अर्थात् जिसमें लौकिक तथा परीक्षक की बुद्धि समान उसी प्रकार यह भी वैसा नहीं है। उपसंहार एक प्रकार का पुनर्कथन रूप से पाई जाए उसे दृष्टांत कहते हैं।
होता है। उपसंहार या उपनय में व्याप्ति उसी अनुपात में देखी
जाती है जिस अनुपात में वह साध्य और साधन के बीच दृष्टांत जयंत भट्ट ने लौकिक और परीक्षक के स्थान पर वादी
में होती है। न्याय तथा वैशेषिकों दर्शनों में चूँकि पञ्च अवयवों तथा प्रतिवादी शब्दों के प्रयोग किए हैं, और उन्होंने वादीप्रतिवादी
को मान्यता मिली है, इसलिए उपनय भी उनमें आ ही जाता है। की समान बुद्धि के विषयभूत पदार्थ को दृष्टान्त कहा है।
भट्ट-मीमांसकों ने अवयवों को दो प्रकार से उपयोगी साबित न्यायावतार के भाष्यकार सिद्धर्षिगणि ने कहा है कि जिसमें किया है--प्रतिज्ञा-हेत-उदाहरण तथा उदाहरण-उपनय-निगमन। साध्य साधन रहे वह दृष्टांत है। दृष्टांत के लिए उदाहरण तथा यहाँ उपनय की स्थिति को इस प्रकार समझा जा सकता है-- निदर्शन शब्दों के प्रयोग भी मिलते हैं। इसीलिए हेमचन्द्र ने कहा
उदाहरण - जहाँ-जहाँ धूम है, वहाँ-वहाँ अग्नि है जैसेहै --दृष्टांतवचनमुदाहरणम्।
पाकगृह। अर्थात् दृष्टांतवचन उदाहरण है। दृष्टांत, उदाहरण तथा निदर्शन
उपनय - वह पर्वत भी धमयक्त है। के प्रयोग सभी आचार्यों के द्वारा समान रूप से हए हों ऐसा नहीं
निगमन - अतः पर्वत अग्नियुक्त है।
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