Book Title: Yatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Author(s): Jinprabhvijay
Publisher: Saudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
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यतीन्द्रसूरी स्मारक ग्रन्य : व्यक्तित्व - कृतित्व - वि.सं. २००९ का वर्षावास आपश्री ने बागरा में व्यतीत किया। वर्षावासकाल में एकाएक आचार्य भगवन् मूत्रावरोध से ग्रसित हो गए। स्मरण रहे यह बीमारी आपश्री को पहले भी दो तीन बार हो चुकी थी। समुचित उपचार प्रारम्भ हुआ। आपरेशन भी करवाया गया। उसके कई सप्ताह बाद तक भी उपचार चलता रहा। पूर्ण स्वस्थ्य होने में पूरे तीन मास लग गए। कमजोरी काफी थी। विहार करने की स्थिति नहीं थी। सर्दी भी शुरु हो गईक्ष थी। इस अवधि में आपश्री बागरा में ही विराजमान रहे। स्वस्थ्य होने के पश्चात् चैत्र कृष्णा तृतीया को बागरा से विहार कर दिया। चैत्र पूर्णिमा के अवसर पर माण्डव पुरतीर्थ में मेला लगता है। इस वर्ष का यह मेला सियाणा के श्रावक की ओर से लगने वाला था। उनकी विनंती स्वीकार कर आचार्य भगवन माण्डवपर तीर्थ पधारे।
चैत्र पूर्णिमा पर इस क्षेत्र के चौबीस ग्रामों के श्रीसंघ भी उपस्थित हुए थे। इस क्षेत्र को दिया पट्टपट्टी के नाम से जाना जाता है। इस अवसर पर श्री संघों ने यहां प्रतिष्ठा विचार किया और उन्होंने इस सम्बन्ध में आचार्य भगवन से निवेदन किया। आचार्य भगवन ने श्री संघों की प्रार्थना स्वीकार कर शुभ मुर्हत्त प्रदान कर दिया। यह शुभ मुहूत्त श्रेष्ठ शुक्ला दसमी का था। आचार्य भगवन् का विहार स्थगित हो गया। श्रावकगण प्रतिष्ठोत्सव की तैयारी में लग गए। विशेष उल्लेखनीय तथ्य यह है कि इस अवसर पर आगन्तुक अतिथियों के आवास के लिये ग्राम की अजैन जनता ने अपने आवास खाली कर दिये थे और स्वयं अपने कुओं पर रहने लगे थे। ऐसा सहयोग कम ही३ देखने को मिलता है। यह उल्लेख करना भी प्रासंगिक ही होगा कि माण्डवपुर तीर्थ एकदम वनखण्ड में स्थित है। ग्राम बहुत ही छोटा है। आगन्तुक अतिथियों के लिये आवास हेतु टेंट आदि में भी समुचित व्यवस्था की गई थी। प्रतिष्ठोत्सव जिस धूमधाम के साथ सम्पन्न हुआ, उसकी स्मृति आज भी लोगों के मानस पटल पर है। लोग यह कहते पाये गये कि ऐसा प्रतिष्ठोत्सव कई सौ वर्षों में भी नहीं हुआ था। यह सब आचार्य भगवन के पुण्य प्रभाव का परिणाम कहा जा सकता है। स्वयं अस्वस्थ होते हुए भी आपने लगन एवं निष्ठा से यह प्रतिष्ठोत्सव सम्पन्न करवाया था इसमें मुनिराज श्री विद्याविजयजी स्वाद में आचार्य श्रीमद् विजय विद्याचंद्र सूरीश्वर जी म. की भूमिका भी सराहनीय रही थी।
वि.सं. २०१० का वर्षावास सियाणा में हुआ। यहां मुनिश्री वल्लभ विजय जी म. अस्वस्थ्य हो गये थे। इस कारण वर्षावास की समाप्ति के पश्चात् भी आपश्री का विहार नहीं हो पाया। माघ व. अमावस्या को मुनिजी वल्लभ विजयजी का देहावसान हो गया।
सियाणा में ही वि. सं. २०१० माघ शुक्ला चतुर्थी रविवार को आचार्य भगवन ने दो को दीक्षा व्रत प्रदान किया। जिन्हें मुनिश्री जयंत विजय जी म. एवं मुनिश्री जयप्रभ विजयजी म. के नाम से अपने शिष्य रूप में प्रसिद्ध किया। तत्पश्चात् यहां से विहार कर दिया और ग्रामानुग्रानम जैन धर्म की ध्वजा फहराते रहे। आगामी वर्षावास आहोर में व्यतीत किया। वि.सं. २०११ में आपश्री द्वारा रचित निम्नांकित पुस्तकें प्रकाशित हुईं--
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