Book Title: Yatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Author(s): Jinprabhvijay
Publisher: Saudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
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दैनिकभास्कर
इन्दौर - सोमवार, 27 नवम्बर 2000
संतों के बताए मार्ग पर चलने से जीवन सार्थक
शोभायात्रा निकाली जायेगी, जो नगर के विभिन्न मार्गों से होती हुई दोपहर ३.०० बजे श्रीमद् राजेंद्रसूरि जैनदादावाड़ी पहुँचेगी, जहाँ श्रीमद् यतींद्र सूरि दीक्षा शताब्दी स्मारक ग्रंथ का विमोचन समारोह संपन्न होगा। इस अवसर पर अ.भा. श्री सौधर्म बृहत्तपागच्छीय त्रिस्तुतिक जैन श्वेतांबर श्रीसंघ में अपना अमूल्य योगादन देने वाले देश-प्रदेश के गुरुभक्त श्रेष्ठिवर्यो का बहुमान भी किया जायेगा। समारोह के अंत में संपूर्ण नवकार मंत्राराधक जैन समाज के स्वामीवात्सल्य का आयोजन भी रखा गया है। इस संपूर्ण आयोजन का लाभ खाचरौद निवासी राजमल मन्नालाल नागदा परिवार, मनावर निवासी, रमेशचंद्र माँगीलाल खटोड़ परिवार, मुंबई निवासी राजेंद्र मेहता परिवार ने लिया है। इस अवसर पर आगम वाचस्पति डा. सागरमल जैन, शाजापुर एवं डा. रमणभाई ची. शाह, मुंबई के प्रवचनों का लाभ भी प्राप्त होगा। श्री सौधर्म बृहत्तपागच्छीय जैन श्वेतांबर श्रीसंघ अध्यक्ष जीतमल लुक्कड़ कार्यवाहक अध्यक्ष माणकलाल कोठारी, श्रीमद् राजेंद्र सूरि जैन दादावाड़ी चेरिटेबल ट्रस्ट अध्यक्ष सुजानमल आंचलिया, श्रीमद् यतींद्र सरि दीक्षा शताब्दी स्मारक ग्रंथ विमोचन समिति स्वागताध्यक्ष बाबूलाल खेमसरा, कार्यक्रम संयोजक धरमचंद चपड़ोद ने समस्त धर्मप्रेमी नागरिकों से कार्यक्रम को सफल बनाने की अपील की है।
दैनिकभास्कर
इन्दौर - शनिवार, 25 नवम्बर 2000 ग्रंथ का तीन वर्षों तक
सतत कार्य हुआ जावरा । श्रीमद् यतींद्रसूरि दीक्षा शताब्दी ग्रंथ में देश के सवा सौ से अधिक विद्वान लेखकों के विचारों का समावेश है। मुनिश्री जयप्रभविजयजी के निर्देशन में इस ग्रंथ पर पिछले तीन वर्षों से सतत कार्य हुआ। मुनिश्री यतींद्रसूरिजी की कर्मभूमि जावरा रही थी इसलिए इस ग्रंथ का विमोचन यहीं किया गया जा रहा है। ग्रंथ के प्रधान संपादक डा. सागरमल जैन (आगम वाचस्पति) व संपादक डा. रमणभाई ची. शाह (मुंबई) हैं। ग्रंथ की सामग्री को संयोजित करने वाले ज्योतिषाचार्य मुनिराज श्री जयप्रभविजयजी बताते हैं ग्रंथ में गुरुजी यतींद्रसूरिजी के व्यक्तित्व व कृतित्व के बारे में संपूर्ण जानकारी के साथ ही जैन दर्शन, इतिहास व पुरातत्व, जैन धर्म की आराधना के विषय में अलग-अलग खंड हैं। एक-एक खंड अंग्रेजी व गुजराती में भी है । मुनिश्री बताते हैं ग्रंथ की कल्पना बहुत पहले से थी लेकिन 1997 से नियमित कार्य शुरू किया गया। मुनिश्री का मानना है कि ग्रंथ में कोई भी विषय छूटा नहीं है । ग्रंथ के लिए मुनिश्री के साथ ही साध्वी प्रवर्तिनी दक्षशिरोमणी मुक्तिश्रीजी व परम विदुषी साध्वी जयंतश्रीजी तथा शिष्य हितेशचंद्र विजयजी व दिव्यचंद विजयजी ने कार्य किया। मुनिश्री ने बताया 23 वर्ष की आयु में ही यतींद्रसूरिजी के कंधों पर पर त्रिस्तुतिक समाज की बागडोर आ गई थी। उनकी समाज की सेवाओं अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए ग्रंथ की योजना बनाई गई। कुल 1200 पृष्ठ वाले इस ग्रंथ का आवरण पृष्ठ बहुरंगी होकर अनेक दुर्लभ चित्रों से संयोजित है।
जावरा, 26 नवम्बर । हमारा देश ऋषि मुनियों का देश है तथा संतों की वाणी एवं उनके द्वारा लिखे गए ग्रंथ हमारे जीवन को निखारते हैं। हम उनके बताए मार्ग पर चलकर ही अपने जीवन को सार्थक बना सके हैं।
उक्त विचार मध्यप्रदेश शासन की उपमुख्यमंत्री श्रीमती जमुनादेवी ने आज श्री राजेन्द्र सूरि जैन दादावाड़ी प्रांगण में श्री त्रिस्तुतिक श्री संघ के आचार्य प्रवर हेमेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. के आज्ञानुवर्ती श्री ज्योतिषाचार्य श्री जयप्रभविजयजी म.सा. श्रमण द्वारा संयोजित श्रीमद् यतीन्द्र सूरि दीक्षा शताब्दी स्मारक ग्रंथ का विमोचन किया। इस अवसर पर हितेशचंद्र विजयजी म.सा. सहित समारोह के विशिष्ठ अतिथि एवं पूर्व गृहमंत्री भारतसिंह, मंदसौर के विधायक नवकृष्ण पाटिल, कृषिमंत्री महेन्द्रसिंह कालूखेड़ा के प्रतिनिधि के रूप में के.के. सिंह कृषि निर्देशक भोपाल, सांसद प्रतिनिधि डॉ. राजेन्द्र पांडेय आदि ने संबोधित कर अपनी शुभकामनाएं व्यक्त की। प्रमुख अतिथि वक्ता के रूप में समारोह को आगम वाचस्पति डॉ. सागरमल जैन शाजापुर एवं डॉ. रमणभाई शाह मुंबई ने संबोधित किया।
समारोह के अतिथियों का स्वागत अध्यक्ष जीतमल लक्कड कार्यवाहक अध्यक्ष, माणकलाल कोठारी, दादावाड़ी ट्रस्ट अध्यक्ष सुजानमल आंचलिया, राजेन्द्र जैन नवयुवक मंडल के अध्यक्ष महेन्द्र गोखरू, सचिव अभयकुमार चौपड़ा, स्वागत अध्यक्ष बाबूलाल खेमसरा एवं संयोजक धरमचंद चपड़ोद ने किया।
इस अवसर पर ज्योतिषाचार्य जयप्रभविजयजी म.सा.का श्रीसंघ की ओर से कमली ओढ़ाकर बहुमान किया गया। समाज के दानदाताओं का भी प्रतीक चिन्ह प्रदान कर सम्मान किया गया। समारोह का संचालन आनंदीलाल संघवी ने किया।
समारोह के पूर्व लगभग एक किलोमीटर लंबी विशाल ग्रंथ शोभायात्रा नगर के प्रमुख मार्गों से होती हुई दादावाडी प्रांगण में समारोह में बदल गई। समारोह के पश्चात् नवकार मंत्र आराधकों का स्वामी वात्सल्य उल्लास के साथ संपन्न हुआ।
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