Book Title: Yatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Author(s): Jinprabhvijay
Publisher: Saudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
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- यतीन्दगरि स्मारकग्रन्थ - जैन दर्शन - नेमिचन्द्र के अनुसार" - मूल शरीर को न छोड़कर तैजस ८. अनु. मार्टिन ग्रीण्डलिंजर- मॉलेकूल्स, मीर पब्लिशर्स, कार्मण रूप उत्तर देह के साथ-साथ जीव प्रदेशों के शरीर से मास्को १९८६, पृ. १४ । बाहर निकलने को समुद्घात कहते हैं। यद्यपि यह सन्दर्भ जीव सतीशचन्द्र चट्टोपाध्याय एवं धीरेन्द्र मोहन दत्त- भारतीय तत्त्व से जुड़ा है, जबकि हमारा विवेचन अजीव तत्त्व से संबंधित दर्शन, पुस्तक भंडार, पटना पृ. ३९, १५८-१५९, १३३ है। अत: यहाँ कुछ विरोधाभास हो सकता है, लेकिन उसे दूर १०. मॉलेकूल्स, पृ. १४ करने के लिए हम इतना ही कहना चाहेंगे कि व्यतीकरण की ११. संपा. डेक्स्टर एस किम्बल द बुक ऑफ पॉपुलर साइंस, पराकाष्ठा को समझने के लिए इससे अच्छा सन्दर्भ शायद उपलब्ध
I, द ग्रोलियर सोसाइटी इक्लेटा, न्यूयार्क १९५१, पृ. ३०८ न हो, शायद यह भी एकपक्षीय मत ही हो, परंतु विवादास्पद
१२. पुरी एवं शर्मा- प्रिंस्पल्स ऑफ इनआर्गेनिक केमिस्ट्री, पृ. नहीं। वैज्ञानिकों ने भी इस दिशा में प्रयोग किए। यद्यपि इनका
१-४ चिंतन और प्रयोग इतना ज्यादा व्यापक नहीं है लेकिन परमाण्विक
१३. वही, पृ.४
१४. द बुक ऑफ पापुलर साइंस I, पृ. ३१२-३१३ विखण्डन तथा इसी तरह के अन्यान्य प्रकल्पों के माध्यम से
१५. ए.पी. कोवी- ऑक्सफोर्ड एडवांस्ड लर्नर्स डिक्शनरी, जो वैज्ञानिक तथ्य प्रकाश में आ रहे हैं वे वस्तुत: परमाणुओं के .
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, नवम संस्करण, पृ. १०२३ व्यतीकरण के सिद्धांत को ही संपुष्टि प्रदान करते प्रतीत होते हैं।
१६. द बुक ऑफ पॉपुलर साइंस ।- पृ. ३०८ इस प्रकार जैन एवं वैज्ञानिक परमाणुवादी अवधारणा को १७. लीवर लॉज- एटम्स एंड रेज-अरनेस्ट बेन लि. लंदन कुछ मान्यताओं के आधार पर तुलनात्मक रूप में प्रस्तुत करने १९२४, पृ. ४० का एक प्रयास किया गया है। कहीं-कहीं यह तुलना अत्यन्त १८. पुरुषोत्तम भट्ट चक्रवर्ती- परमाणु-संरचना, म.प्र. हिंदी सार्थक प्रतीत होती है, तो किसी क्षण इसमें अल्प व्यतिक्रम भी ग्रंथ अकादमी, भोपाल १९७३ पृ. ३८, एटम्स एण्ड रेज आया है जो स्वाभाविक भी है। उस अंतर का मुख्य कारण पृ. १०० परंपरा एवं प्रणालीगत व्यवस्था है।
फिजिकल साइंस- मैन्स कन्क्वेस्ट ऑफ मैटर एण्ड
स्पेश, ओडम्स प्रेस लि., लॉग आर्क, लंदन, पृ. ८९ सन्दर्भ
२०. परमाणु-संरचना, ३. १९, ३१ १. तत्वोपप्लवसिंह (जयराशि)- सम्पा.- पं.सुखलालजी, २१.
२१. फिजिकल साइंस-मैन्स कन्क्वेस्ट ऑफ मैटर एण्ड स्पेश, गायकवाड़ ओरियण्टल इंस्टीट्यूट, बड़ौदा १९४०, पृ.१ पृ. ९०, परमाणु संरचना, पृ. ३१ सांख्यकारिका (ईश्वरकृष्ण)- सम्पा. हरिदत्त शर्मा, द. २२. डिफिनिशनल डिक्शनरी-केमेस्टी केन्द्रीय हिन्दी ओरियण्टल बुक एजेंसी, पूना १९३३, ३.१०.१६
डायरेक्टोरेट, दिल्ली यूनिवर्सिटी १९७८, पृ. ४२५ तत्त्वकौमुदी- सम्पा.-कृष्णनाथ न्याय पंचानन, कलकत्ता, २३. परमाणु-सरंचना, पृ. ११ ३.१०.१६
२४. डिफिनिशनल डिक्शनरी-मॉर्डन फिजिक्स, केंद्रीय हिन्दी वैशेषिकसूत्र (कणाद)- सम्पा. नंदलालसिंह, इंडियन प्रेस
डाइरेक्टोरेट, दिल्ली यूनिवर्सिटी १९७८, पृ. १५८-१६० इलाहाबाद, १.१.५
द बुक ऑफ पॉपुलर साइंस, पृ. ३१२ प्रभाकर मीमांसा- संपा. गंगानाथ झा, इलाहाबाद, पृ. ३५-३६ २५. परमाणु संरचना, पृ.८-९ ४. ब्रह्मसूत्र-शंकरभाष्य- निर्णयसागर प्रेस, बंबई १.४३
२६. फिजिकल साइंस-मैन्स कन्क्वेस्ट ऑफ मैटर एण्ड स्पेश, ५. श्रीभाष्य रामानुज- संस्कृत बुक डिपो, मद्रास १९३७, १.४३ __ पृ. ९८-९९, आपेक्षिकता के सिद्धांत, पृ. ६९ ६. अभिधर्मकोश वसुबन्धु- सम्पा. आचार्य नरेन्द्रदेव, २७. तत्त्वार्थसत्र (उमास्वाति), ५/११ हिन्दस्तानी एकेडेमी, इलाहाबाद १९५९, १.२४
२८. सव्वेसिं खंधाणं जो अंतो तं वियाण परमाण। तत्त्वार्थसूत्र उमास्वाति- विवे. सुखलाल संघवी, पार्श्वनाथ सो सस्सदो असद्दो एक्को अविभागी मुत्तिभावो। १७७१, विद्याश्रम शोध संस्थान, वाराणसी १९९३, ५.१०.११
पंचास्तिकाय, मूल परमश्रुत प्रभावक मण्डल, बम्बई,
१९.
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