Book Title: Yatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Author(s): Jinprabhvijay
Publisher: Saudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
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यतीन्द्रसूरि स्मारकग्रन्थ साथ ही भगवान् ने बताया एक सामायिक भाव से की जाय तो देवलोक के आयुष्य का बंध पड़ता है।
ऐसी अद्भुत सामायिक की आराधना समूह में करना मंडल रूप में करना, अनेक नये जीवों के लिए धर्मप्रेरक योग है। लेकिन जितनी अधिक सावधानी रखेंगें उतने ही अंश में अपनी सामायिक पुणिया श्रावक के समान बनती जाएगी। अभ्यास करते-करते एक दिन ऐसा भी आना चाहिए कि हमारी सामायिक समभाव की सिद्धि-साधिका बन जाये ।
बुजुर्ग एवं मंडल के अग्रजनों का फर्ज बन जाता है कि वे स्वयं ऐसी सुंदर सामायिक करें, जिससे बाल एवं नये धर्म में जुड़ने वाले जीवों पर उसका प्रभाव पड़े। याद रखें कि मंडल में हाजिरी, प्रभावना, यात्रा एवं दण्ड आदि विषयों को लेकर कभी विवाद नहीं होना चाहिए।
हाजिरी - इसका प्रयोजन व्यवस्था है, अनव्यस्था नहीं ।
प्रभावना – इसका प्रयोजन आराधकों की अनुमोदना है, जबर्दस्ती नहीं । विशेष निर्जरा के इच्छुक प्रभावना कर सभी आराधकों के सामायिक का लाभ उठा सकते हैं।
यात्रा - सामायिक मंडल में कभी यात्रा का आयोजन दर्शन-शुद्धि के लिए किया जाय तो उसमें विशेष ध्यान रखें कि
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सभी अपनी टिकिट से यात्रा करें यात्रा में मंडल के लिए पैसा एकत्र करने का लालच बिल्कुल न करें। किसी को सामायिक कराने का भाव हो तो शक्ति के अनुसार खर्च कर सकते हैं। परंतु अपनी तरफ से कोइ माँग नहीं होनी चाहिए।
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दण्ड - अगर कारणवशात् सामायिक के दिन हाजिर नहीं हो सकें तो व्यवस्था टूट न जाये तथा दूसरे भी आलस में आकर सामायिक का त्याग न करें इस हेतु दण्ड रखा जाता है। दण्ड रुपयों का ही रखना जरूरी नहीं है। मंडल में सामायिक न हुई हो तो कारण टल जाने पर उपाश्रय में आकर सामायिक करें एवं साथ में ४ पक्की माला या एकासणा या साधुपद के २७ खमा खड़े-खड़े दें, या २ रु. फाइन भरें।
इस प्रकार शांत चित्त से की गई आराधना अनेक भव्य जीवों के लिए अनुमोदना एवं सम्यक्त्व का निमित्त बनती है। प्रत्येक छोटे - बड़े जैनसंघों में इस प्रकार के सामायिक मंडल जोरत्नत्रयी के प्रचारक एवं प्रभावक बन सकें, परम आवश्यक हैं। अपने संघ के अनुरूप महीने में प्रति येषृमी, चतुर्दशी, शुक्ल पंचमी आदि सामायिक रख सकते हैं।
सभी संघों में इस प्रकार के विवेक पूर्ण सामायिक मंडलों की खूब स्थापना हो एवं आराधना ।
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