Book Title: Yatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Author(s): Jinprabhvijay
Publisher: Saudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
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आगमिक चूर्णियाँ और चूर्णिकार
डॉ. मोहनलाल मेहता.....)
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___ आगमों की प्राचीनतम पद्यात्मक व्याख्याएँ नियुक्तियों है। इससे यह सिद्ध होता है कि आवश्यकचूर्णि दशवैकालिक और भाष्यों के रूप में प्रसिद्ध हैं। वे सब प्राकृत में हैं। जैनाचार्य चूर्णि से पूर्व की रचना है। उत्तराध्ययनचूर्णि में दशवैकालिकचूर्णि इन पद्यात्मक व्याख्याओं से ही संतष्ट होने वाले न थे। उन्हें उसी का निर्देश है जिससे प्रकट होता है कि दशवैकालिकचर्णि स्तर की गद्यात्मक व्याख्याओं की भी आवश्यकता प्रतीत हई। इस उत्तराध्ययनचूर्णि के पहले लिखी गई है। अनयोगद्वारचर्णि में आवश्यकता की पर्ति के रूप में जैन-आगमों पर प्राकत अथवा नंदीचूर्णि का उल्लेख किया गया है ससे सिद्ध होता है कि संस्कृतिमिश्रित प्राकृत में जो व्याख्याएँ लिखी गई हैं. वे चर्णियों के नंदीचूर्णि की रचना अनुयोगद्वारचूर्णि के पूर्व हुई है। इन उल्लेखों रूप में प्रसिद्ध हैं। आगमेतर साहित्य पर भी कुछ चूर्णियाँ लिखी गई
को देखते हुए श्री आनन्दसागर सूरि के मत का समर्थन करना हैं, किन्तु वे आगमों की चूर्णियों की तुलना में बहुत कम हैं।
अनुचित नहीं है। हाँ, उपर्युक्त रचनाक्रम में अनुयोगद्वारचूर्णि के उदाहरण के लिए कर्मप्रकृति, शतक आदि की चूर्णियाँ उपलब्ध है।
बाद तथा आवश्यकचूर्णि के पहले ओघनियुक्तिचूर्णि का भी समावेश
कर लेना चाहिए, क्योंकि आवश्यकचूर्णि में ओधनियुक्तिचूर्णि का चूर्णियाँ
उल्लेख है, जो आवश्यकर्णि के पूर्व की रचना है। निम्नांकित आगम ग्रंथों पर आचार्यों ने चूर्णियाँ लिखी हैं- भाषा की दृष्टि से नन्दीचूर्णि मुख्यतया प्राकृत में है। इसमें १. आचारांग, २. सूतकृत्रांग, ३. व्याख्याप्रज्ञप्ति (भगवती), ४. संस्कृत का बहुत कम प्रयोग किया गया है। अनुयो जीवाभिगम, ५. निशीथ, ६. महानिशीथ, ७. व्यवहार, ८. मुख्य रूप से प्राकृत में ही है, जिसमें यत्र-तत्र संस्कृत के श्लोक दशाश्रुतस्कन्ध, ९. बृहत्कल्प, १०. पंचकल्प, ११. ओधनियुक्ति, और गद्यांश उद्धृत किए गए हैं। जिनदासकृत दशवैकालिकचूर्णि १२. जीतकल्प, १३. उत्तराध्ययन, १४. आवश्यक, १५. की भाषा मुख्यतया प्राकृत है, जबकि अगस्त्यसिंहकृत दशवैकालिक, १६. नंदी, १७. अनुयोगद्वार, १८. जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति। दशवैकालिकचूर्णि प्राकृत में ही है। उत्तराध्यनचूर्णि संस्कृतमिश्रित निशीथ और जीतकल्प पर दो-दो चूर्णियाँ लिखी गईं, किन्तु प्राकृत में है। इसमें अनेक स्थानों पर संस्कृत के श्लोक उद्धृत वर्तमान में एक-एक ही उपलब्ध है। अनुयोगद्वार, बृहत्कल्प किए गए हैं। आचारांगचूर्णि प्राकृत-प्रधान है, जिसमें यत्र-तत्र एवं दशवैकालिक पर भी दो-दो चूर्णियाँ हैं।
संस्कृत के श्लोक भी उद्धृत किए गए हैं। सूत्रकृतांगचूर्णि की चूर्णियों की रचना का क्या क्रम है, इस विषय में निश्चितरूप
भाषा एवं शैली आचारांगचूर्णि के ही समान है। इसमें संस्कृत का से कुछ नहीं कहा जा सकता। चूर्णियों में उल्लिखित एक-दूसरे
प्रयोग अन्य चूर्णियों की अपेक्षा अधिक मात्रा में हुआ है। के नाम के आधार पर क्रम-निर्धारण का प्रयत्न किया जा
जीतकल्पचूर्णि में प्रारंभ से अंत तक प्राकृत का ही प्रयोग है। सकता है। श्री आनन्दसागर सूरि के मत से जिनदासगणिकृत
- इसमें जितने उद्धरण है, वे भी प्राकृत ग्रंथों के हैं। इस दृष्टि से यह निम्नलिखित चर्णियों का रचनाक्रम इस प्रकार है--नन्दीचर्णि चूणि अन्य चूर्णियों में विलक्षण है। निशीथविशेषचर्णि अल्प अनुयोगद्वारकचूर्णि, आवश्यकचूर्णि, दशवैकालिकचूर्णि,
संस्कृतमिश्रित प्राकृत में है। दशाश्रुतस्कन्धचूर्णि प्रधानतया प्राकृत उत्तराध्ययनचर्णि, आचारांगचर्णि, सत्रकतांगचर्णि और में है। बृहत्कल्पचूणि संस्कृतमिश्रित प्राकृत में है। व्याख्याप्रज्ञप्तिचूर्णि।
चूर्णिकार आवश्यकचूर्णि में ओघनियुक्तिचूर्णि का उल्लेख है। इससे
चूर्णिकार के रूप में मुख्यतया जिनदासगणि महत्तर का प्रतीत होता है कि ओधनियुक्तिचूर्णि आवश्यकचूणि से पूर्व नाम प्रसिद्ध है। इन्होंने वस्तुतः कितनी चूर्णियाँ लिखी है, इसका लिखी गई है। दशर्वकालिचूणि में आवश्यकचूणि का नामोल्लेख कोई निश्चित उत्तर नहीं दिया जा सकता। परंपरा से निम्नांकित dowardwidiosariwariramiranddarswarodarirdia- २४Hainitarinitariandiandominadiranidratarianitarian
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