Book Title: Yatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Author(s): Jinprabhvijay
Publisher: Saudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
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यतीन्द्रसूरी स्मारक ग्रन्थ : व्यक्तित्व - कृतित्व १. सदानंद शर्मा प्रधानाध्यापक नाथद्वारीय गोवर्धन संस्कृत पाठशाला
मधुसूदन मिश्र श्रोत्रिय, व्याकरण काव्य तीर्थ
रामेश्वर शर्मा मैथिल-व्याकरण के लब्धप्रतिष्ठित विद्वान् ४. ब्रजनाथ शर्मा व्याकरणतीर्थभूषण ५. पं. शंभूनाथ त्रिपाठी, व्याकरणाचार्य, महाविद्यालय, इंदौर ६. पं. छोटेलाल शास्त्री जैन, अध्यापक, जैन पाठशाला, बड़नगर ७. बाल शास्त्री भट्ट, प्रधानाध्यापक, राजकीय वेदशाला, इंदौर
काम ८. पं. श्रीधर शास्त्री, इंदौर ९.. दुर्लभ राम शास्त्री, विद्याभूषण, झाबुआ
ਸਾਲ ਦੀ ਉ ਸਿ ਗਾਇ ਏ । १०. पं. सदाशिव दीक्षित, साहित्याचार्य, एफ-ए, बनारस लाश
किती का ११. पन्नालाल शास्त्री, रतलाम
इनके अतिरिक्त नगर के जैनेतर प्रतिष्ठित व्यक्तियों और दोनों ओर के प्रतिष्ठित वयोवृद्ध अनुभवी सज्जनों को भी साक्षी के रूप में रखा गया था। दोनों मुनिराजों के मध्य अधिकतर मुद्रित पत्रों के द्वारा शास्त्रार्थ प्रारंभ हुआ। यह शास्त्रार्थ सात माह तक चलता रहा। मुनिराज श्री यतीन्द्र विजयजी म.सा. के आचारांगादि अनेक आगम ग्रंथों के प्रमाणों से युक्तियुक्त तर्कों के सम्मुख श्रीमद् सागरानंद सूरि का हठाग्रह सबकी निंदा का कारण बनने लगा। तथापि उनके हठाग्रह में कोई कमी दिखायी नहीं दी। परिणाम यह हुआ कि जब निंदा अधिक बढ़ती दिखायी दी तो वे एकरात्रि में सूर्योदय के पूर्व ही बिना अपने पक्ष के श्रावकों को अथवा किसी अन्य को सूचित किये रतलाम से विहार कर गये। प्रात:काल सूर्योदय के पश्चात् श्रीमद् सागरानंद सूरि के रतलाम छोड़कर विहार कर जाने का समाचार पवनवेग से पूरे रतलाम नगर में प्रसारित हो गया। उसी वेग से मुनिराज श्री यतीन्द्र विजयजी म.सा. की कीर्ति भी प्रसारित हो गयी। आप की प्रतिभा पर पाण्डित्य की सर्वत्र प्रशंसा होने लगी। तत्पश्चात् निर्णायक मंडल (जिसे उस समय साक्षी जनों का नाम दिया गया था), की बैठक हुई और उन्होंने संस्कृत में लिखित शास्त्रार्थ में विजेता का प्रमाण पत्र मुनिराज श्री यतीन्द्रसूरीश्वर जी म. सा. को समर्पित किया। शास्त्रार्थ का यह प्रकरण यहाँ सिद्ध करता है कि आचार्य भगवन श्रीमद् विजयतीद्र सूरीश्वर म.सा. शास्त्रार्थ करने में प्रवीण थे। - ना स्मरण रहे कि आप ने वि.स. १९७९ में 'पीतपटाग्रह मीमांसा' नामक एक पुस्तक की रचना की थी। इसकी रचना का संबंध पीतवस्त्र विषय को लेकर हुए विवाद से अंत में जुड़ा है। इस पुस्तक में उन सब युक्तियों तथा प्रयत्नों का भी यथासंभव वर्णन है, जिनका पूर्व भूतवादियों ने अपने को परास्त होते समझकर ।
शास्त्रार्थ में मिली विजय एक बात और सूचित करती है कि आप का आगम ज्ञान अगाध था। अर्थात् आप ने आगमसाहित्य का तलस्पर्शी अध्ययन किया था।
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