Book Title: Yatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Author(s): Jinprabhvijay
Publisher: Saudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
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यतीन्द्रसूरी स्मारक ग्रन्थ : व्यक्तित्व - कृतित्व -
आचार्यश्री के प्रथम पुण्यदर्शन
मा
मदनलाल जोशी, 'शास्त्री'....
साहित्यिक अध्ययन एवं साहित्यकारों के साथ ही कतिपय अन्य अनुभवशील व्यक्तित्त्वशाली व्यक्तियों के सम्पर्क में रह कर मैं प्राय: यह सुना करता था कि 'यथासाध्य यत्नशील होने पर भी अधिकांश कार्य योगवश ही सम्पन्न होते हैं, वास्तव में अनुश्रुति एवं जीवनगत अनुभूतियों के आधार पर यह स्पष्ट एवं सैद्धांतिक सत्य सा प्रतीत हुआ कि कार्यों की सम्पन्नता एवं उनके साफल्य का सम्पूर्ण श्रेय योग को ही है। यह है योग-संयोग का महत्त्व, जिसको आधुनिक युगीन अधिकांश संस्कृति-विहीन पाश्चात्य प्रेमी अपनी प्रतिष्ठा को रसातल में जाती हुई समझ, हेय दृष्टि से देखते हैं। इधर कतिपय तथाकथित वेगवान् विद्वान् यह समझकर इससे घृणा करते हैं कि यदि उन्होंने योग को महत्त्व दिया तो उन की प्रगतिशीलता कम हो जाएगी। इसलिए कि आज के युग में प्राचीन परम्परा का सर्वथा परित्याग कर, नवीन मार्ग का निर्माण करना ही प्रायः प्रगतिशीलता की परिभाषा है। ऐसी स्थिति में योग को कैसे महत्त्व दिया जा सकता है? स्पष्ट है-तथापि अनुभूतिजन्य तात्त्विक तथ्यों के आधार पर मुझे यह लिखने में तनिक भी संकोच नहीं हो रहा है कि प्रयत्न करने पर भी जब तक सम्पन्नशीलता का स्वर्णिम संयोग नहीं आता है, तब तक कार्य सम्पन्न होना नितान्त असंभव है। यह मेरा व्यक्तिगत मत है, संभव है अन्यों का इसमें मतैक्य न हो।
महत्त्वसम्पन्न योग की महत्ता के सम्बन्ध में इतना लिखने के पश्चात् यहाँ यह व्यक्त करना भी अनुचित न होगा कि जिस कार्य की हम स्वप्न में भी कल्पना नहीं करते वह कार्य भी केवल संयोग की महत्ता के फलस्वरूप इतनी सफलता के साथ सम्पन्न होता है, जैसे हमने उसको सफल बनाने के हेतु प्रारम्भ से ही तत्परता के साथ रूपरेखा निर्धारित एवं निश्चित कर ली हो।
प्रायः प्रत्येक व्यक्ति के जीवन इसी योग के कारण कभी-कभी ऐसी अकल्पित घटनायें घट जाती हैं, जिनका जीवन से किसी भी समय सम्बन्ध नहीं रहता है।
मेरे जीवन में भी एक बार ऐसा ही स्वर्णिम एवं संस्मरणीय सुन्दर संयोग आया। सहसा एक ऐसी कल्पनातीत घटना घटित हुई कि मैं हर्षोत्फुल्ल तथा आश्चर्यचकित होकर अपने भाग्य की सराहना करने लगा। तबसे मैं योग-संयोग को विशेष महत्त्व देता रहा हूँ।
यौगिक महत्त्व के आधार पर घटित जीवन की जिस आदर्श घटना का मैं निम्न पंक्तियों में चित्रण कर रहा हूँ, उसका शिलान्यास बारह वर्ष पूर्व चातुर्मास के सांस्कृतिक पर्वशील एवं प्राकृतिक मनोहर दिवसों में हुआ था जब मेरे जीवन की कुंडली में किसी शुभ योग ने पदार्पण कर जीवन के इतिहास में एक अभिनव पृष्ठ जोड़ने की धारणा बनाई थी।
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