Book Title: Yatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Author(s): Jinprabhvijay
Publisher: Saudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
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– यतीन्द्रसूरी स्मारक ग्रन्थ : व्यक्तित्व - कृतित्व - आचार्य भगवन् का इकतालीसवां एवं बयालीसवां वर्षावास थराद में हुआ। वर्षावास के बाद पुनः वर्षावास सकारण था। प्रथम वर्षावास वि.सं. २००४ में हुआ था। इस अवसर पर आपश्री का नगर प्रदेशोत्सव जितने भव्य रूप में हुआ वह ऐतिहासिक था। ज्ञात जैन इतिहास में ऐसा भव्य नगर प्रवेश्योत्सव किसी का भी देखने-सुनन में नहीं आया। नगर के जिन-जिन मार्गों से होकर आचार्य भगवन् को ले जाना था, वे सभी मार्ग रेशन एवं जरी के सुन्दर पट्टों से और तोरण द्वारों से सजाये गये थे। नगर के बाहर से वर्षावास स्थल तक श्री मूदर भाई जवेरी के नव निर्मित भवन तक मार्ग के उपरस्थन्द्रवाँ बाँधकर सूर्य की धूप को रोका गया था। बाजार की दुकानों की सजावट तो और भी अद्भुत थी। किसी दुकान पर रजतोरण, किसी पर नगद रुपयों की झूलती हुई मालायें, किसी की दुकान पर दस-दस के नोटों की बनी हुई मूल और किसी की दुकान पर चांदी और स्वर्ण के बने हुए पुष्पों की हार मालायें लटक रही थीं। नगर प्रवेशोत्सव के अवसर पर आसपास के ग्रामों से हजारों की संख्या में श्रद्धालु भक्त उपस्थित हुए थे। जब आप वर्षावास स्थल पर पहुंचे तो श्री मूदर भाई जवेरी और उनकी धर्म पत्नी ने पक्के मोतियों का स्वस्तिक बनाकर गुरुदेव को बधाया/ स्वागत किया। उल्लेखनीय है कि इस दम्पत्ति ने शीलवत अंगीकार कर लिया था। आपश्री का यह वर्षावास अतिभव्य एवं ऐतिहासिक रहा। इस वर्षावास काल में तपाराधना भी अच्छी हुई। जब वर्षावास समाप्ति की ओर था तब एकाएक आचार्य भगवन अस्वस्थ हो गए। आपको निमोनिया हो गया था। उपचार नियमित चलता रहा, किन्तु फिर भी डबल निमोनिया हो गया। कहा भी गया है - इदं शरीरं व्याधिमंदिरम। इस कहावत के अनुसार आचार्य भगवन् अस्वस्थ्य अवश्य थे। योग्यतम् वैद्यों और डॉक्टरों ने उनकी चिकित्सा करवाई गई। श्री संघ ने अपनी ओर से कोई भी कमी नहीं होने दी। स्थिति यहां तक आ गई कि उपचार कर रहे वैद्यों और डॉक्टरों ने आचार्य भगवन से किसी को भी मिलने की अनुमति देने से मना कर दिया। बातचीत करना तो ठीक, दर्शन देने के लिए भी मना कर दिया। उपचार एवं विश्राम का प्रभाव दिखाई देने लगा। आचार्य भगवन् के स्वास्थ्य में सुधार होने लगा। वृद्धावस्था भी थी। स्वास्थ्य लाभ होते-होते काफी समय लग गया। कमजोरी इतनी अधिक हो गई थी कि चलने फिरने में भी असुविधा होती थी। इन सब कारणों से वर्षावास के बाद और फिर शीत ऋतु में भी आपश्री की .... में सकारण रुकना पड़ा।
आचार्य भगवन् की अस्वस्थावस्था में भराव श्री संघ ने तन, मन और धन से सेवा कर अपनी सेवा भक्ति का अपूर्व परिचय दिया। एक डॉक्टर तो प्रतिक्षण आपश्री की सेवा में ही उपस्थित रहता था। आपश्री के स्वास्थ्य में आशाजनक सुधार न हो तब तक डॉक्टर बराबर आपकी सेवा में उपस्थित रहता था। गरुभक्तों ने आपश्री के स्वस्थ्य होने और दीर्घाय होने की शभाकांक्षा से तप, व्रत, पौषधादि धर्मकार्य भी किये। आचार्य भगवन के स्वस्थ्य होते-होते और विहार करने की स्थिति में आते-आते आगामी वर्षावास का समय आ गया। विहार करने की स्थिति में थे कि मुनि श्री सागरानन्दजी म. के पेट में दर्द होने लगा। यह उदर थूल इतना तीव्र था कि वे मरणासन्न हो गये। परिणामस्वरूप उनकी चिकित्सा की व्यवस्था की गईक्ष। विहारक्रम रूक गया। अंततः वर्ष २००५ का वर्षावास भी थराव में ही व्यतीत करना पड़ा। वर्षावास काल में गुरुभक्तों का उत्साह बना रहा। सभी धार्मिक क्रियायें यथावत सम्पन्न हुईं। यह Arianorariantarandhra porn
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