Book Title: Yatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Author(s): Jinprabhvijay
Publisher: Saudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
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- यतीन्द्रसूरी स्मारक ग्रन्थ : व्यक्तित्व - कृतित्व पीताम्बरविजेता - आचार्यश्री यतीन्द्रसूरि
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कु. सोनाली लोढा, जावरा....
मानव जीवन का महत्त्व भौतिक पदार्थों के अम्बारों से नहीं आंका जा सकता। मानव-जीवन का महत्त्व तो दरअसल आध्यात्मिक संस्कारों में निहित है जिस मानव का जीवन सत्संस्कारों से परिपूर्ण होता है वह भौतिकता की चकाचौंध से दूर हटकर आध्यात्म की ओर बढ़कर अपना आत्मरूपी दीप प्रज्ज्वलित करता है। आध्यात्म की पथरीली राह पर सहज रूप से बढ़ने वालों में से एक थे आचार्य श्री यतीन्द्र सूरिजी म.सा.। उनसे साक्षात्कार तो हुआ नहीं, परन्तु मुझे प्रसन्नता है कि आज उनके जीवन के विषय में मुझे कुछ लिखने का अवसर प्राप्त हुआ है। उन महान आचार्य श्री यतीन्द्र सूरिजी म.सा. के विषय में, मैं क्या शब्द लिखू। मैं तो उस पूजा के थाल में अपनी स्मृति के कुछ अक्षत ही रख सकती हूँ। आज मेरी स्मृति में उनके जीवन में हुआ एक विवाद अंकित हो रहा है, जिसका उन्होंने बड़ी सहजता से शास्त्रार्थ के सहारे पुष्टिकरण कर दिया था। उस विवाद के समय मेरा वजूद तो था नहीं, परन्तु उस घटना के पढ़ने मात्र से मैं अत्यंत प्रभावित हुई और वही घटना शब्दों के माध्यम से मैं आपके समक्ष प्रस्तुत करना च
वि.सं. १९८० का चातुर्मास मुनि श्री यतीन्द्र विजयजी म.सा. ने आचार्य श्रीभूपेन्द्र सूरिजी म.सा. की आज्ञा से रतलाम में किया। उसी समय श्रीमद् सागरानन्द सूरिजी म.सा., जो जैनाचार्यों में आगमज्ञान के प्रखर धारक माने गए हैं, वे भी चातुर्मास हेतु वहीं रतलाम की धरा पर विराजमान थे। दोनों ही अपने प्रखर पांडित्य एवं दिव्य तेज के लिए विश्रुत थे। सागरानन्द सूरिजी म.सा. को यतीन्द्र विजयजी म.सा. की शोभा, अपने से छोटी आयु में ही अतिशय बढ़ती हुई, सहन नहीं हो रही थी। उन्होंने मुनि श्री यतीन्द्र विजयजी म.सा. के साथ शास्त्रार्थ करने का प्रस्ताव रखा, जिसे मुनि श्री यतीन्द्र विजयजी म.सा. ने सहर्ष स्वीकार किया। शास्त्रार्थ का विषय था -
"जैन श्वेताम्बर साधुओं को श्वेत वस्त्र धारण करने चाहिए या पीत' संस्कृत, प्राकृत, व्याकरण, न्याय शास्त्रों के बड़े-बड़े विद्वानों, नगर के जैनेतर प्रतिष्ठित व्यक्तियों एवं दोनों ओर के प्रतिष्ठित वयोवृद्ध अनुभवी सज्जनों की साक्षी में दोनों मुनिराजों के बीच अधिकतर मुद्रित पत्रों के द्वारा शास्त्रार्थ प्रारम्भ हुआ। यह शास्त्रार्थ सात मास पर्यन्त चलता रहा। जैन श्वेताम्बर साधुओं को श्वेत वस्त्र धारण करने चाहिए, इस आशय की पुष्टि हेतु मुनिश्री यतीन्द्र विजयजी म.सा. ने निम्नलिखित प्रमाण प्रस्तुत किए - ॐ १. प्रथमतः श्वेताम्बरी शब्द से ही स्पष्ट है कि श्वेत वस्त्र धारण करना, अतः श्वेत वस्त्र धारण
करने वाले साधु-साध्वी ही यथार्थत: जैन साधु होने चाहिए। गान २. शुकुकम्बरा श्रमणाः, निरंबराश्च, जिनकल्पिकारयः श्वेतभिक्षुणां सेयंवरो सेवस्याणं
मायाकीमकामगाउका - सुकुंबरा श्रमण Poinindiannavaraa e ? horontoineinternational
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