Book Title: Yatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Author(s): Jinprabhvijay
Publisher: Saudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
View full book text
________________
यतीन्द्रसूरी स्मारक ग्रन्थ : व्यक्तित्व - कृतित्व
उसके भिन्न ग्रंथ में भिन्न-भिन्न दृष्टियों से प्रयोग और प्रयोजन को समझने, देखने में पाठकों के लिए अत्यन्त सरलता एवं सुगमता हो गई है। इस कोश को जैन-साइक्लोपीडिया भी कहा जाए, तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।
इस कोश का निर्माण जितना कठिन था, उससे अधिक कठिन उसे व्यवस्थित रूप से सम्पादित कर प्रकाशित करवाना था। कोई आगममर्मज्ञ मुनिराज अथवा विद्वान ही उसका सम्पादन कर सकता था । अन्य किसी के सामर्थ्य की बात नहीं थी । मुनिराज श्री यतीन्द्र विजयजी म. (कालांतर में आचार्यप्रवरश्रीमद् विजययतीन्द्रसूरीश्वरजी म.) ने आचार्य श्रीमद् विजय भूपेन्द्र सूरीश्वरजी म. के सान्निध्य में इस कोश का सम्पादन एवं प्रकाशन का कार्य प्रारम्भ किया और सत्रह वर्षों के कठोर अध्यवसाय के फलस्वरूप यह कोश ग्रंथाकार रूप में समाज के सामने आ सका। अभिधान राजेन्द्र कोश के कुशल सम्पादन से भी स्पष्ट हो जाता कि आचार्य भगवन् श्रीमद्विजययतीन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. आगममर्मज्ञ थे। इतना ही नहीं, आप जैन शास्त्रों के भी तलस्पर्शी अध्येता थे। इससे यह बात भी स्पष्ट हो गई कि संस्कृत और प्राकृत भाषा पर भी आपका पूर्ण अधिकार था।
उपर्युक्त सभी संक्षिप्त प्रमाणों के आधार पर हम सहज ही यह कह सकते हैं कि आचार्य भगवन् श्रीमद् विजययतीन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. जैनागममर्मज्ञ थे। आप ने स्वार्जित ज्ञान का वितरण अपने शिष्यों और अनुयायियों में मुक्त हस्त से किया।
ल 7033158
TISE SE
Jain Education International
5 SX GF FIE FIOR
जाग
無假
कि
की
APPRENDRE
18
डाक
For Private & Personal Use Only
ह
कार
कि
pas
Conta
www.jainelibrary.org