Book Title: Yatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Author(s): Jinprabhvijay
Publisher: Saudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
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यतीन्द्रसूरी स्मारक ग्रन्थ : व्यक्तित्व-कृतित्व - प्रमाणकर्तागणानां हस्ताक्षराणि : -
१. सदानन्द शर्मा गाण की कटीकरीशानडाही म नाथद्वारीय - गोवर्द्धन संस्कृत पाठशाला प्रधानाध्यापकः -काशा
न्यायव्याकरणतीर्थलब्धधौतप्रतिष्ठः नासिता । २. मधुसूदनमिश्रः श्रोत्रियः नाक कालिका कागज लब्धधौतप्रतिष्ठिव्याकरणकाव्यतीर्थःकर
शामगार ३. रामेश्वरशर्मा मैथिल: माणिकडा गि व्याकरण काव्यतीर्थरत्नोपाधिकप्राप्तधौतप्रतिष्ठः शकीय शालाई कार ४. व्रजनाथ शर्मा गायक कामगार महाप्राजकारणाशि-काए कि - व्याकरणतीर्थभूषणः
मार कर निकाली तिजोरका ५. पं. शम्भनाथ त्रिपाठी
मारामारनामा व्याकरणाचार्य : महाविद्यालय इन्दौर (मालवा) पं. छोटेलालशास्त्री जैनः जैन पाठशालाध्यापकः बड़नगर (मालवा) बालशास्त्री भट्टः राजकीय वेदशाला प्रधानाध्यापकः इन्दौर (मालवा)
गीता ८. पं. श्रीधर शास्त्री, इन्दौर (मालवा)
शविनाको ९. दुर्लभराम शास्त्री झाबुआनरेशाश्रितो विद्याभषण: झाबआ (मालवा)P
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काय-काही १०. पं. सदाशिव दीक्षितः
साहित्याचार्यः एफ.ए. बनारस (काशी) कायाकारणावामन ११. पन्नालाल शास्त्री भारतधर्ममहामण्डलस्य महामहोपदेशको रतलामनरेशाश्रितश्च,
रतलाम (मालवा) पाठकगण उपर्युक्त सम्मति पत्र को पढ़कर तथा श्वेता-म्बर सम्प्रदाय पद का अर्थ विचार कर भी बुद्धि से सहज समझ सकते हैं कि जैन साधुओं को श्वेत अथवा पीति वस्त्र धारण करने चाहिए।
सम्मति-पत्र में साक्षीधरों ने लिखा है कि व्याख्यानवाचस्पति यतीन्द्र विजय मुनिपुंगव द्वारा आचारांगादि अनेक जैनागमों के प्रमाण पटलों से हम सर्वजनों को प्रतीति करवा दी गई कि जैन साधु एवं साध्वियों के निकट श्वेत वस्त्र धारण करना ही उनका सनातन शिष्टाचार है।
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