Book Title: Yatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Author(s): Jinprabhvijay
Publisher: Saudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
View full book text
________________
- यतीन्द्रसूरी स्मारक ग्रन्य : व्यक्तित्व - कृतित्व - रामरत्न भी अपने विचारों को गुरुदेव के समक्ष प्रस्तुत करने का साहस नहीं जुटा पा रहा था। एक रात्रि में तो रामरत्न की व्यग्रता इतनी अधिक तीव्र हो गयी कि सारी रात्रि चिंतन में ही व्यतीत हो गयी, किन्तु संकल्प कर लिया कि अपनी भावना गुरुदेव के समक्ष प्रकट कर ही दूंगा। ममा प्रात: होते ही देवदर्शन करके गुरुदेव जी सेवा में पहुँचे वंदन किया और विनम्र शब्दों में निवेदन किया 'भगवन मुझे अपने शिष्य रूप में स्वीकार कीजिये। मैं आपकी शरण में दीक्षाव्रत अंगीकार करना चाहता हूँ।'
'अभी तुम्हारी आयु मात्र चौदह वर्ष की है। साधु-जीवन का पालन खड्ग की दुधारा पर चलने से भी अधिक कठिन है।' गुरुदेव ने कहा। फिर भी कुछ दृष्टान्त देकर रामरत्न को समझाया। रामरत्न तो दृढ़संकल्प ले चुके थे। उन्होंने गुरुदेव के समक्ष अपना संकल्प दोहराया। उनकी एक ही बात थी 'गुरुदेव मुझे स्वीकार कीजिये। मैं अब प्रतीक्षा नहीं कर सकता।' 'रामरत्न विचलित होने की आवश्यकता नहीं है। तुम रत्न हो। योग्य अवसर उपस्थित होने पर तुम्हारी इच्छापूर्ति हो जायेगी।' गुरुदेव ने आश्वस्त किया। इससे रामरत्न का मनमयूर नृत्य कर उठा।
गुरुदेव श्रीमद् विजय राजेन्द्र सूरीश्वर जी म. अपने धर्म-परिवार के साथ महिदपुर से विहार कर मार्गवर्ती ग्रामों में धर्मप्रचार करते हुए जावरा पधारे और फिर जावरा से खाचरौद पधारे। इस अवधि में रामरत्न का सभी प्रकार का परीक्षण हो चुका था। अत: खाचरौद में आषाढ कृष्णा द्वितीया वि.सं. १९५४ सोमवार का दिन दीक्षा के लिए निश्चित हुआ। शुभ मुहूर्त निकलने के साथ ही यह समाचार चारों ओर प्रसारित भी हो गया। दीक्षोत्सव प्रारंभ होते ही किसी विघ्नसंतोषी व्यक्ति ने राजसभा में शिकायत कर दी कि एक बालक को जबरन दीक्षा दी जा रही है। राज्या धिकारियों ने जाँच की। रामरत्न से प्रश्न किये। रामरत्न ने दृढ़ता से उत्तर देकर स्वेच्छा से दीक्षाव्रत अंगीकार करने की बात कही तो मामला समाप्त हो गया। शुभ मुहूर्त में विशाल जनसमुदाय की साक्षी में गुरुदेव श्रीमद् विजय राजेन्द्र सूरीश्वर जी म. ने रामरत्न को जैन भागवती दीक्षा प्रदान कर उनका नाम मुनिश्री यतीन्द्र विजय जी म. रखा। इसके साथ ही आपका नवीन जीवन प्रारंभ हुआ। तथा आपकी इच्छा की पूर्ति हो गयी।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org