Book Title: Yatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Author(s): Jinprabhvijay
Publisher: Saudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
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यतीन्द्रसूरी स्मारक ग्रन्ध : व्यक्तित्व-कृतित्व आचार्यश्री एवं मुनि-मण्डल खाचरौद वर्षावास सम्पूर्ण कर जावरा पधारे और कार्यक्रम की तैयारियों ने नई ऊँचाइयाँ प्राप्त की। दादावाड़ी-प्रांगण और नई मंडी का विशाल क्षेत्र कार्यक्रम स्थल बन चुके थे। सभी गुरुभक्तों का प्रवाह जावरा की ओर था और जावरा का समस्त जैन समाज अतिथि-भक्ति का लाभ लेने को तत्पर था।
अगहन् सुदी ५ का स्वर्णिम प्रभात, जावरा के इतिहास का एक स्वर्णिम दिन । आज गुरुदेव की मूर्ति का विशाल चल-समारोह तथा प्रमुख गुरुभक्तों की शोभयात्रा नगर में निकलने वाली थी। ज नगर तोरण द्वारों से सजा हुआ था। नगर में चल समारोह के लिए निर्धारित सम्पूर्ण मार्ग फूलों और गुलाल से सराबोर हो गया था।
नगर के बुजुर्गों का कहना था कि 'हमने ऐसा चल समारोह अपने जीवन में पहली बार देखा है।' इस तीर्थ में गुरुमंदिर निर्माण के सहयोगी श्री मूलचंदजी बाफना तथा इस तीर्थ में पेढ़ी के संस्थापक श्री किशोरचन्दजी वर्धन ने जावरा में पाए स्नेह को अपने जीवन की अविस्मरणीय उपलब्धि अवसर बताया।
अगहन सुदी ५ का रत्नजडित प्रभात । हर कदम दादावाड़ी की ओर बढ़ रहा है। उत्साह और उमंगों के बीच श्रद्धा से परिपूर्ण वातावरण। जय-जयकार के घोष के मध्य आचार्यदेव श्रीमद् विजय विद्याचन्द्र सूरीश्वरजी म.सा., मुनिराज श्री देवेन्द्र विजयजी म.सा., मुनिराज श्री जयप्रभ विजयजी श्रमण तथा मुनि मंडल साध्वी मंडल की उपस्थिति में प्रातः स्मरणीय विश्व वंद्य गुरुदेव श्रीमद् विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. की मनमोहिनी मूर्ति की प्रतिष्ठा विधि आचार्यश्री ने पूर्ण कराई और इसी के साथ अपने गुरु के संकल्प की पूर्ति का पुष्प गुरुदेव के चरणों में अर्पित किया।
आज यह गुरु तीर्थ एक रजिस्टर्ड ट्रस्ट के माध्यम से अपने परामर्शदाता ज्योतिषाचार्य शासन - दीपक मुनिराज श्री जयप्रभ विजयजी श्रमण के मार्गदर्शन में आवास एवं भोजन शाला युक्त विशाल परिसर वाले तीर्थ का स्वरूप ग्रहण करता जा रहा है। यहाँ प्रतिवर्ष आषाढ़ वदी १० को लगने वाला क्रियोद्धारक दिवस मेला आज भी उन स्मृतियों को नवीन चेतना से भर देता है, जब गुरुदेव ने यहाँ की रज को अपने स्पर्श से पवित्र किया था।
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