Book Title: Yatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Author(s): Jinprabhvijay
Publisher: Saudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
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यतीन्द्रसूरी स्मारक ग्रन्थ : व्यक्तित्व-कृतित्व भी आचार्य श्रीमद्विजय यतीन्द्रसूरि-विरचित चरित्र एवं अन्य साहित्य : एक सिंहावलोकन
या कानगा किशोरचन्द्र एम. वर्द्धन
अध्यक्ष अखिल भारतीय भारत जैन महामण्डल मुम्बाई कोषाध्यक्ष श्री आदिनाथ राजेन्द्र जैन श्वेताम्बर ट्रस्ट, श्री मोहनखेड़ा तीर्थ
आचार्य श्रीमद्विजय यतीन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. उच्चकोटि के साधक होने के साथ-साथ उत्तम संगठक, प्रवचनकार, समाज सुधारक तो थे ही, आप उच्च कोटि के विद्वान भी थे। आप ने न केवल जैनागमों का तलस्पर्शी अध्यन किया था, वरन् अन्य अनेक साहित्यिक, ऐतिहासिक ग्रंथों का भी अध्ययन किया था। आप को साहित्य के प्रति विशेष रुचि थी। यही कारण था कि आप ने लगभग साठ पुस्तकों की रचना की तथा उन्हें प्रकाशित भी करवाया। इतना ही नहीं, आप विद्वानों को भी पर्याप्त सम्मान देते थे। आप ने विभिन्न विषयों की पुस्तकों की रचना की है। हम यहाँ आप द्वारा रचित जीवनचरित्र विषयक तथा कुछ अन्य स्फुट रचनाओं का परिचय प्रस्तुत कर रहे हैं।
१. जीवनप्रभा - यह ४४ पृष्ठ की पुस्तक है। इसमें आप जैनाचार्य श्रीमद् विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. का जीवन परिचय संक्षेप में दिया है। गुरुदेव के लोकोपकारी जीवन का इसमें सजीव चित्रण किया गया है। इस पर अपना मंतव्य प्रकट करते हुए पं. जयदेव शास्त्री प्रधानाध्यापक, संस्कृत पाठशाला परसरपुर (गोंडा) ने लिखा है - "जीवनप्रभा पुस्तकमद्य मम चक्षोर्गोचरतामध्यगमत्। अतः कार्यान्तराण्यपास्य प्रभूतप्रणयतया तदेवाद्राक्षम्। दो जीवन चरितमतीवोपयुक्तं विद्यते। अत्रानेके गुणा दृश्यन्ते। आर्य भाषातीवसरला निरर्थकशब्दाडम्बर - विकला, संक्षिप्तसारार्थ प्रदर्शिनी, चास्ति, अमुना जीवनसुधारणा भवितुमर्हति। भवान् आर्य भाषायाः सुलेखकोऽजनिष्ट। एवं लोकोपकारकान्, बहुशो ग्रंथान्, विरचयन्, धर्म प्रचारादिकृत्यं, चानुतिष्ठन् भवान् सूरीश्वरत्वमधिगन्तुं शक्नोति एवमस्ति, महती मे मानसप्रसक्तिः ।'
२. संक्षिप्त जीवन चरित्र - इस १७३ पृष्ठ वाली पुस्तक में गुरुदेव श्रीमज्जैनाचार्य श्रीमद् विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. के पट्टधर आचार्य श्रीमद् धनचन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. की जन्म से लेकर स्वर्ग गमन तक की जीवनचर्या का लेखा-जोखा है। यह चरित्र केवल कहानी मात्र या खाली आलंकारिक बाह्याडम्बर का पोषक नहीं, वरन् आचार्यों के विशेष कर्तव्यों कार्यों का समर्थक है। आचार्य-परम्परा की दृष्टि से भी यह पुस्तक उपयोगी है। 22 ३. श्री मोहन जीवनादर्श - इस पुस्तक की पृष्ठ संख्या ५६ है। श्री सौधर्मबृहत्तपागच्छीय जैन संघ में उपाध्याय श्री मोहन विजयजी म. नामक एक उच्चकोटि के मुनिराज हुए हैं। यह पुस्तक उनके जीवन पर आधृत है। इसमें उपाध्याय श्री मोहन विजयजी म. के जीवन का सजीव चित्रण किया गया है इसके अध्ययन करने से अनेक शिक्षाएँ भी मिलती हैं। इस दृष्टि से पुस्तक उपयोगी है।
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