Book Title: Yatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Author(s): Jinprabhvijay
Publisher: Saudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
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• यतीन्द्रसूरी स्मारक ग्रन्थ : व्यक्तित्व - कृतित्व
२. भेंसवाड़ा में ईदाजी और भूतिबहन की पुत्री भली बहन धर्मपत्नी अचलदास जी को वैशाख शुक्ला २ को लघु दीक्षा प्रदान कर साध्वी श्री पुण्य श्री के नाम से पू. मानश्री की शिष्या घोषित किया। रतलाम में पूनमचंद जी एवं श्रीमती मोतीबाई के पुत्र जबरचंद निवासी राजगढ़ को वि.सं. १९८० में मार्गशीर्ष शुक्ला ५ को समारोहपूर्वक लघुदीक्षा प्रदान कर मुनिसागर विजय जी. म. के नाम से प्रसिद्ध किया।
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४. रतलाम श्री संघ के आग्रह से आपने बालमुनि वल्लभ विजय जी एवं विद्या विजयजी को वि.सं. १९८० में माघ शुक्ल ५ को शुभमुहूर्त में समारोहपूर्वक बड़ी दीक्षाएँ प्रदान कीं।
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रिंगनोद में झाबुआ निवासी नथमल और वरधीबहन की सुपुत्री रुखी बहन धर्मपत्नी चुन्नीलाल जी निवासी झाबुआ को वि.सं. १९८१ चैत्र शुक्ला३ को शुभमुहूर्त में लघु दीक्षा दीक्षा प्रदान कर साध्वी
विमलश्रीजी के नामसे प्रसिद्ध किया।
वि.सं. १९८१ में बागनगर के वर्षावास में ज्ञानपंचमी के दिन मुनि सागरानंद जी को बड़ी दीक्षा प्रदान की।
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सियाणा में वि.सं. १९८३ में माघ शुक्ला ६ को टाण्डा (मालवा) निवासी धन्नालाल जी और सकमाबाई की पुत्री जन्म्मूबाई धर्मपत्नी जड़ावचंद जी निवासी रिंगनोद को तथा लूणा जी एवं बरदीबाई की पुत्री मिश्रीबाई धर्मपत्नी हेमराज जी निवासी राजगढ़ को समारोहपूर्वक लघु दीक्षा प्रदान की और जम्मूबाई को चेतनश्रीजी तथा मिश्रीबाई को चतुरश्रीजी के नाम से प्रसिद्ध कर दोनों को गुरुणीश्री भाव श्रीजी की शिष्या घोषित किया।
आहोर में वि.सं. १९८४ फाल्गुन कृष्णा ५ को आकोली निवासी शाह सूजा एवं बालीबाई की पुत्री रूपी बहन धर्मपत्नी केसरी मलजी निवासी मांडोली को लघु दीक्षा प्रदान कर साध्वी शांतिश्रीजी के नाम से प्रसिद्ध किया।
आहोर में वि.सं. १९८८ आषाढ़ कृष्णा १३ को नाडोल निवासी मोतीलाल को लघुदीक्षा प्रदान कर मुनि उत्तम विजयजी के नाम से प्रसिद्ध किया।
१०. कुक्षी में वि.सं. १९९३ मार्गशीर्ष शुक्ला १० को शुभमुहूर्त में समारोहपूर्वक मुनिश्री प्रेम विजय जी म. को दीक्षा प्रदान की।
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११. डूडसी में वि.सं. १९९५ आषाढ़ शुक्ला ११ को खाचरोद निवासी कस्तूरचन्द्र ने धुलीबाई के पुत्र कन्हैयालाल को शुभमुहूर्त में दीक्षाव्रत प्रदान कर मुनि न्यायविजयजी म. के नाम से विख्यात किया । १२. अकोली में वि.सं. १९९५ मार्ग शीर्ष शुक्ला १२ को सूरत निवासी गांधी धन्नाजी भूता व भानी बहन की सुपुत्री मिश्री बहन धर्मपत्नी शा. छोगा जी संघवी निवासी आलासण को दीक्षा व्रत प्रदान कर साध्वी लावण्यश्रीजी के नाम से प्रसिद्ध कर गुरुणी श्री मानश्रीजी की शिष्या घोषित किया।
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