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विसुद्धिमग्गो छअनुस्सतिनिद्देसो
सत्तमो परिच्छेदो १. असुभानन्तरं' उद्दिट्ठासु पन दससु अनुस्सतिसु पुनप्पुनं उप्पज्जनतो येव अनुस्सति। पवत्तितब्बट्ठानम्हि येव वा पवत्तत्ता सद्धापब्बजितस्स कुलपुत्तस्स अनुरूपा सती ति पि अनुस्सति।
(१) बुद्धं आरब्भ उप्पन्ना अनुस्सति बुद्धानुस्सति। बुद्धगुणारम्मणाय सतिया एतं अधिवचनं। (२) धम्मं आरब्भ उप्पन्ना अनुस्सति धम्मानुस्सति। स्वाक्खाततादिधम्मगुणारम्मणाय सतिया एतं अधिवचनं। (३) सङ्घ आरब्भ उप्पन्ना अनुस्सति सङ्घानुस्सति। सुप्पटिपन्नतादिसङ्घगुणारम्मणाय सतिया एतं अधिवचनं । (४) सीलं आरब्भ उप्पन्ना अनुस्सति सीलानुस्सति। अखण्डतादिसीलगुणारम्मणाय सतिया एतं अधिवचनं। (५) चागं आरब्भ उपप्पन्ना अनुस्सति चागानुस्सति। मुत्तचागतादिचागगुणारम्मणाय सतिया एतं अधिवचनं । (६)
षडनुस्मृतिनिर्देश
सप्तम परिच्छेद
दश अनुस्मृतियाँ १. अशुभ (कर्मस्थान) के बाद निर्दिष्ट दश अनुस्मृतियों में, पुनः पुनः उत्पन्न होने वाली स्मृति ही अनुस्मृति कहलाती है। अथवा, प्रवर्तित होने योग्य स्थान में ही प्रवर्तित होने से, श्रद्धा के कारण प्रव्रजित हुए कुलपुत्र की अनुरूप स्मृति भी अनुस्मृति कहलाती है।
(१) बुद्ध को लक्ष्य बनाकर उत्पन्न अनुस्मृति बुद्धानुस्सति है। बुद्ध के गुणों को आलम्बन बनाने वाली स्मृति का यह अधिवचन (संज्ञा) है।।
(२) धर्म के प्रति उत्पन्न अनुस्मृति धम्मानुस्सति है। स्वाख्यात (=भलीभाँति कहा गया) होना आदि धर्म के गुणों को आलम्बन बनाने वाली स्मृति का यह अधिवचन है।
(३) सङ्घ के प्रति उत्पन्न अनुस्मृति सङ्गानुस्सति है। सुप्रतिपन्नता (-अच्छे मार्ग पर चलना) आदि सङ्घ के गुणों को आलम्बन बनाने वाली स्मृति का यह अधिवचन है।
(४) शील के प्रति उत्पन्न अनुस्मृति सीलानुस्सति है। खण्डित न होना-आदि शील के गुणों को आलम्बन बनाने वाली स्मृति का यह अधिवचन है।
(५) त्याग के प्रति उत्पन्न अनुस्मृति त्यागानुस्सति है। मुक्त त्याग (खुले हाथों से किया गया दान) आदि त्याग के गुणों को आलम्बन बनाने वाली स्मृति का यह अधिवचन है।
१. असुभानन्तरं ति। असुभकम्मट्ठानानन्तरं ।
२. अनुस्सतिसू ति। अनुस्सतिकम्मट्ठानेसु।