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परिस्थिति। संसारके बहुत बड़े भागको जीतनेवाले बादशाह सिकंदरने इसी भारतमें ऐसे ऐसे खगोलवेत्ता, वैद्य, भविष्यवक्ता, शिल्पी, त्यागी, तत्त्वज्ञानी, खनिजशास्त्री, रसायनविद्, नाट्यकार, कवि, स्पष्टवक्ता, कृषिशास्त्री, नीतिपालक, राजनीतिज्ञ, शूरवीर और व्यापारी देखे थे कि, जिनकी समता करनेवाले किसी देशमें उसको दिखाई नहीं दिये थे। अभिप्राय यह है कि, सब बातोंमें भारतवर्ष अद्वितीय था । भारतवर्षकी समता करनेवाला दूसरा कोई भी देश नहीं था । श्रीयुत बंकिमचंद्र लाहिडी अपनी 'सम्राट अकबर' नामकी बंगला पुस्तकके ८ वें पृष्ठमें लिखते हैं कि,
"भारतेर मृत्तिकाय रत्न, स्वर्ण, रौप्य, ताम्र प्रभृति जन्मित । जगतेर सुप्रसिद्ध कहिनूर मारतेइ उत्पन्न हइया छिल । एखानकार वृक्ष लौहर न्याय दृढ़ । एखाने पाहाड़ श्वेत मर्मर, समुद्र मुक्ताफल, वृक्ष चंदनवास ओ वनफूल सौगन्ध प्रदान करे । स्वर्णप्रसू भारते किसेर अमाव छिल ।" ___अभिप्राय इसका यह है कि, भारतकी मिट्टीमें रत्न, स्वर्ण, चाँदी और ताँबा आदि उत्पन्न होते थे। जगत्प्रसिद्ध कोहेनूर ( हीरा) इस भारतहीमें उत्पन्न हुआ था। यहाँके वृक्ष लोहेके समान दृढ़ होते हैं। यहाँके पर्वत संगमरमर, समुद्र मुक्ताफल, वृक्ष चंदन-वास और वनपुष्प सुंगध प्रदान करते हैं । स्वर्णप्रसू भारतमें किस चीजका अभाव था ?
इतिहासके पृष्ठ, मथुरा, श्रावस्ति, राजगृही, सोपारक, सारनाथ, तक्षशिला, माध्यमिका, अमरावती और नेपालके कीर्तित्थंभ, शिलालेख
और ताम्रपत्र आदि इस समय इस बातकी सप्रमाण साक्षी दे रहे हैं कि, भारतवर्षके भूषण समान चंद्रगुप्त, अशोक, संपति, विक्रमादित्य, श्रोहर्ष, श्रेणिक, कोणिक, चंद्रप्रद्योत, अल्लट, आम (नागावलोक) शिलादित्य, कक्कुक प्रतिहार, वनराज, सिद्धराज और कुमार
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