Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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श्रीपाल चरित्र प्रथम परिच्छेद]
[ १७
अन्वयार्थ --(यत्र) जहाँ-जिस मगध देश में (नित्यं) निरन्तर (वने) जंगल में (अरण्ये) सधन वन में (नगेषु) पर्वतों पर (मुनीश्वरा:) वीतरागी दिगम्बर साधुगशा (सारं स्वर्गापवर्गकम्) सारभूत स्वर्ग और मोक्ष को (उच्चैः सदाचारैः) श्रेष्ठ आचारतपश्चरणादि रत्नत्रय साधन' के द्वारा साधत) सिद्ध करते हैं।
__भावार्थ वह मगध देश अद्भुत था । वहाँ भव्यजन अनेकों-अपूर्व विभूतियों को पाकर भी विषयासक्त नहीं होते थे अपितु समयानुसार गृह त्याग, सम्यक् तप धारण कर आत्मसाधनार्थ कठोर तपश्चरण करते थे । संयम धारण महाव्रती हो जाते थे । आत्म शोधन में दत्तचित्त ध्यानारूढ़ हो करणंकलङ्क का विनाश कर यथायोग्य स्वर्ग और मोक्ष की सिद्धि करते थे । अतः सर्वत्र मुनिदर्शन सुलभता से प्राप्त हो जाते थे। सतत सदाचार-सम्यक् चारित्र की वाटिका फलती फूलती रहती थी ।। ४१ ।।
स्वर्गागतैर्जनयंत्र कृत्वा धर्म जिनेशिनाम् ।
दानपूजातपश्शीलं प्राप्यते सुखमुत्तमम् ॥४२॥ अन्वयार्थ -(यत्र) जहाँ पर (स्वर्गागतर्जनः) स्वर्ग में अवतरित हुए मनुष्य के द्वारा (जिनेशिनाम् ) जिनेन्द्र प्रभु के अर्थात् जिन शासन में वरिंगत (दान पूजातपश्शील धर्म) चतुर्विधदान, जिन पूजा तप और शील रूप धर्म को (कृत्वा) पालकर (उत्तमम्) श्रेष्ठतम् (सुखं) सुख (प्राप्यते) प्राप्त कर लिया जाता है ।
भावार्थ . उस पुण्य रूप भूमि-क्षेत्र में स्वर्ग की आयु पूर्ण कर पुण्यात्मा जीव जन्म लेते है। पुण्य रूप धार्मिक संस्कारों के अनुसार वे श्रद्धापूर्वक जैनधर्म का ही आचरण करते तथा थावकधर्म का अर्थात् दान, पूजा, शील तप आदि का याचरण करने वाले थे । स्त्री पुरुष सभी सदाचारी, गोलवान दयालु और धर्मज्ञ थे। नारियाँ पातिव्रतादि गुणों से मण्डित और पुरुष भी उसी प्रकार सत्कर्मी सज्जन थे। महिलायें अपने गृहाचार में दक्ष थीं । क्षमा, दयाशोलादि से मण्डित तत्त्वज्ञ और सम्यक्त्व गुण युक्त थीं । सभी प्रामोद प्रमोद से सात्विक सरल जीवन यापन करते थे। ।।४२।।
इत्यादि सम्पदोपेतः स देशो मगधाभिधः ।
वर्ण्यते केन यत्रोच्चः प्रभावं जगदद्भुतम् ॥४३।।
अन्वयार्थ-(मगधाभिधः देशो) मगध नामक देश, जो (इत्यादिसम्पदोपेतः) पूर्वोक्तवरिणत वैभव से सहित था उसका (जगदद्भुत प्रभावं) जगत-पाश्चर्यकारी प्रभाव (उच्च:) विशेषताओं के साथ (केन) किसके द्वारा (वर्ण्यते ) वर्णित किया जा सकता है ?
- मावार्थ- यहाँ प्राचार्य कहते हैं कि अनुपम वैभव से युक्त उस मगध देश की शोभा अनिर्वचनीय एवं आश्चर्यकारी थो ।।४३।।