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ज० स्थिति पुगल म. " " उ० , , ज. काला गुण पुद्गल २ म० " "
,६४ ४ २०१० एवं पांच वर्ण पांच रस भी समझना. ज० सुरभिगंध पुद्गल २ तु. ६ | ४|४|१ तू १८
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उ० , , , ३ | ४ | ४ १ तू १८ एवं दूगिन्ध तथा ८ स्पर्श भी समझ लेना. सेवं भंते से भंते तमेव सचम्।
थोकडा नं. १४१ श्री पन्नवणा सूत्र पद ६ (विरहद्वार) जिस योनि में जीव हैं वह उस योनि से निकल कर मना योनि में जावे । अगर उस योनि से नहीं निकले तो कितने कार तक नहीं निकले । यह इस थोक द्वारा बतलावेंगे | सब योनि में जघन्य एक समय का विरहकाल हैं, उत्कृष्ट नीचे प्रमाणे
समुच्चय चारगति, संझीमनुष्य, संज्ञीतियंचमें निकलनेका विरह पड़े तो उत्कृष्ट १२ मुहूर्त । पहिलीनारकी, १० भुवनप्रति १ व्यंतर, १ ज्योतिषी, सौधर्म, ईशान दे० और असंझी मनुध्य में २४ मुहूर्त का विरहकाल हैं।