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(७) उसका प्रथम वर्गमूल निकालना और जितना प्रदेश प्रथम वर्गमूल में भावे उतने असूरकुमारके वैक्रिय शरीरका बंधेलेगा है। जैसे असत्य कल्पनासे प्रदेश २५६ है जिसका प्रथम वर्गमूल १६ दूसरा १ और तीसरा २ है तो यहां प्रथम वर्गमूलके असंख्यातमें भाग जितना अाकाशप्रदेश आवे उतने असुरकु० हैं और तैजस, कार्मणका बंधलगा वैक्रियवत् तीनोंका मुकेलगा अनन्ते समुच्चयवत्.
एवं नागादि नव निकायके देवता भी समझना.
पृथ्वीकायमें वैक्रीय, आहारकि के बंधेलगा नहीं हैं, मुकेलगे अनन्ते हैं। समुचयवत् पृथ्वीकायमें औदारिक शरीरके दो भेद हैं (१) बंधेलगा (२) मूलगा जिसमें बंधेलगा असंख्याते है. कालसे एकेक समयमें एकेक औदारिक शरीर निकाले तो असं० उत्सर्पिणि, अवसर्पिणि व्यतीत हो जाय, क्षेत्रसे एकेक पाकाशप्रदेशपर एकेक औदारिक शरीर रखते २ सम्पूर्ण लोक और ऐसे असंख्याते लोक पूर्ण हो जाय । मुकेलगा अनन्ते अभव्यसे अनन्तगुणा और सिद्धोंके अनन्तमें भाग हैं. तेजस् कार्मणका बंधेलगा औदारिक जितना और मूलगा अनन्ते समुचयवत् इसी माफक अपकाय, तेऊकाय, वायुकाय और वनसतिकाय भी समझना, परन्तु वायुकायमें वैक्रीय शरीरका बंधेलगा असं० हैं। वे समय २ निकाले तो क्षेत्र पल्योपमके भसं. ख्या में भाग समय हो उतना और वनस्पतिमें, तेजस कार्मणका बधेलगा अनन्ते हैं । कानसे अनन्ती उत्सर्पिणि, अवसर्पिणि, क्षेत्रसे अनन्ते लोकाकाश जितना, द्रव्यसे सर्व जीवसे अनन्ते.