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३८ (१) नामद्वार-वैमानिकदेवोंका नाम यथा सौधर्मदेवलोक, इशान देवलोक सनत्कुमार० महेन्द्र० ब्रह्म० लंताक० महाशुक्र० सहस्र० अणत्० पाणत्. अरण० अचुतदेवलोक । । १२ । नौग्रीवैग भद्धे, सुभद्धे, सुजाये, सुमाणसे, सुदर्शने, प्रयदर्शने, आमोये, सुप्रतिवन्धे, यशोधरे, । ६ । पाचाणुत्तर वैमान-विजय, विजयन्त, जयन्त, अप्राजित, सर्वार्थसिद्ध, ।५। पांचमा देवलोकके तीसरा परतरमें नव लोकान्तीक तथा तीन कब्लिषीदेव मीलके सर्व ३८ जातका देवोंकों वैमानिकदेव कहा जाता है.
(२) वासाद्वार-संभूमिसे ७६० जोजन उर्ध्व जावे तब जोतीषीदेव आते है वह ११० जोजनके जाडपणामें अर्थात् ६०० जोजन संभूमिसे उर्ध्व जावे वहां तक जोतीषीदेव है वहांसे असंख्यात कोडनकोड उर्ध्व जावे तब वैमानिकदेवोंका वैमान आते है वहां वैमानिकदेवोंका निवास है उन्होंकि राजधानी ओर प्रत्यक इन्द्रके पांच पांच सभा स्वस्ववैमानमें है शकेन्द्र, ईशानेन्द्रके प्रासाद या इन्होंके लोकपाल तथा देवांगनाकि राजधानीयों तीरच्छालोकमें भी है।
[३] संस्थानद्वार-पेहला दुसरा तीसरा चोथा तथा भवमा दशमा इग्यारवा बारहवा यह आठ देवलोक आदा चक्रके संस्थान है अथवा कुंभकारका लागलके आकार है