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(२२) (६४) प्रश्न-घणेन्द्रिय अपने कबजेमें रखनेसे क्या फल होता है।
(उ) घणेन्द्रिय अपने कबजेमें रखनेसे अच्छे और बुरे? गन्ध पर राग द्वेष उत्पन्न न होगा इन्हीसे नये कर्म न बन्धेगा और जो पुराणा बन्धा हुवा कर्म है उन्होंकि निर्जरा होगा।
(६५) प्रश्न-रसेन्द्रिय अपने कबजे करनेसे क्या फल होगा।
(उ) रसेन्द्रिय अपने कबजे करनेसे अच्छे और बुरे स्वाद पर राग द्वेष न होगा-इन्होंसे नये कर्म न बन्धेगा पुराणे बन्धे हुवे कर्मोकी निर्जरा करेगा।
(११) प्रश्न-स्पर्शेद्रिय अपने कबजे करनेसे क्या फल होगा।
(उ) स्पशेंद्रिय अपने कबजे रखनेसे अच्छे और बुरे स्पश पर राग द्वेष न होगा इन्होंसे नये कर्म न बन्धेगा पुराणे बन्के हुवे कर्म है उन्होंकी निजरा होगा।
(६७) प्रश्न-क्रोध पर विजय करनेसे क्या फल होता है।
(उ) क्रोधपर विजय अर्थात् क्रोधकों जितलेनेसे जीवोंकों क्षमा गुणकि प्राप्ती होती है इन्होंसे क्रोधावरणीय * कर्मका नया बन्ध नही होता है पुरणे बन्धे हुवे कर्मोकी निजीरा होती है।
(६८) मानपर विनय करनेसे क्या फल होता है ।
(उ) मानको जित लेनेसे जीवोंकों मईव (कोमलताविनय) गुणकि प्राप्ती होती हैं इन्होंसे मानावरणीय कर्मका नया बन्ध न होगा पुराण बन्धा हूवा है उन्होंकि निर्जरा होगा।
. *कोध मान माया और लोभ यह मोहनीय कर्मकि प्रकृति है वास्ते क्रोधावरणीय केहनेसे मोहनिय कर्म ही समझना एवं मान माया लोग।