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बड़ी ही कृपा करी है अब इस भवमें तो क्या परन्तु भवान्तरम भी मेरे पश्चाताप करनेका काम नही रहा है। हे भगवान् में अच्छी तरहसे समझ गया कि आपका फरमान सत्य है जेसे आपने फरमाया वेसे ही जीव और काया अलग अलग हैं यह बात मेरे ठीक ठीक समझमें आगइ है अब तो म्है आपकि वाणीका 'प्यासा हो रहा हूं वास्ते कृपा कर केवली परूपीत धर्म मुझे सुनावे। केशीश्रमण भगवानने विचित्र प्रकारकी धर्मदेशना देना प्रारंभ किया। हे राजन तीर्थकरोंने मोक्षका दरवाजे च्यार बतलाये है यथा दान धर्म, शोलधर्म, तपश्चर्यधर्म, भावधर्म निस्मे भी दान धर्मको प्रधान बतलानेके लिये स्वयं तीर्थकरोंने प्रथम वर्षी दान देकेही योगारंम धारण कीया है जब मनुष्योंके सूमतारूपी हृदयके कमड खुलके हृदयमे उद्धारताका प्रवेश होता है तब दुसरे अनेक गुण स्वयंही आ जाते है इत्यादि केहके फीर केहेते है कि हे राजन् भगवन्तोंने साधुधर्म और श्रावक धर्म यह दो प्रकारके धर्म भक्षय -मुखका दातार बतलाये है इसपर खुब ही विस्तार हो शक्ता है परन्तु यहापर हम प्रश्नोत्तरका ही विषयकों लिख रहे है वास्ते इतना ही केहना ठीक होगा कि केशीश्रमण भगवान्ने विचित्र देशना राजाको सुनाई।
प्रदेशी राजा धर्म देशना श्रवणकर हर्ष हृदयसे बोला कि हे भगवत् दीक्षा लेनेकों तो म्है असमर्थ हु आप कृपाकर मुझे श्रावकके १२ व्रतोंकि कृपा करा दीनीये । तब केशीश्रमण मग सबने प्रदेशी राजाकों सम्यक्त्व मूह ब्रोंका उच्चारण कराया।